यह तो सत्य है कि किसी क्षेत्र का पावन पुण्य ही हमको अपनी ओर आकर्षित करता है। यह नर्मदा का वही तट है जहाँ से साढ़े पाँच करोड़ मुनियों ने अपनी कठोर तपस्या/साधना से सिद्धत्व की प्राप्ति की थी। यहाँ वे सिद्ध हुए थे, अपनी आत्मा के कर्म मलों को धोकर आत्मा को साफ किया था और इस संसार से हमेशा के लिए मुक्ति पाई। अत: यह नर्मदा का पावन तट बहुत पवित्र है।हमको यहाँ आकर उन पवित्र आत्माओं की आराधना करना चाहिए, उनका गुणगान करना चाहिए उनकी पूजा करना चाहिए और अपनी आत्मा को भी उनके समान पवित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। यह बात भी कभी नहीं भूलना चाहिए कि जीवन में कर्मोदय के कारण अनेक कष्ट आते हैं, परेशानी आती हैं लेकिन यदि हमारे सामने धर्म रहता है तो उस कष्ट, परेशानी को आनन्द से जीतने की शक्ति भी हमारे भीतर प्रकट हो जाती है। अत: हमको अपने जीवन में किसी भी कष्ट या परेशानी से डरना नहीं चाहिए अपितु उसका मुकाबला करना चाहिए निश्चित ही उसमें हमारी विजय होगी और हम एक अपने निश्चित लक्ष्य तक पहुँच जायेंगे।
नर्मदा के पावन तट पर आत्मा के निकट होने के लिए आपको पैसों की आवश्यकता नहीं, पैसों को भूलने की आवश्यकता है। भले आप पैसा कमाना न भूलें लेकिन पैसा को अवश्य भूलें यानि पैसा तो कमाएँ परंतु उसका दान करें उसको जोड़कर तिजोरी में न रखें दान करने के बाद उस पैसे को याद न करें यही पैसा को भूलने का अर्थ है।
यह आज की तिथि आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी, बहुत महत्वपूर्ण तिथि है क्योंकि इस तिथि का इंतजार श्रावक और साधु दोनों करते हैं। साधु इस तिथि से अपने आवागमन को चार माह के लिए रोक लेते हैं। वर्षा योग करते हैं और जबकि श्रावक इस बात के इंतजार में रहते हैं कि महाराज आज से चार माह के लिए बन्धन में हो जावेंगे यानि विहार नहीं करेंगे। धन्य है वह युग जब साधकगण इस वर्षाकाल में जंगल के किसी वृक्ष के नीचे बैठकर आत्मा में लीन हो जाते थे लेकिन आज विषम काल में शारीरिक शक्ति के ह्रास के कारण हम साधुओं को जंगल छोड़ कमरों में निवास करना पड़ रहा है। फिर भी यह कम बात नहीं कि आज भी साधना की धारा वही है जो पहले थी।
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