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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सिद्धोदयसार 6 - नन्दी की रक्षा ही शंकर की पूजा है

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    शंकर का नन्दी कत्लखानों में कट रहा है और आप शंकर जी के मंदिर में पूजा कर रहे हैं। यह ठीक नहीं, अब मंदिर नहीं, कत्लखाने में कट रहे शंकर के नन्दी को बचाओ यही सबसे बड़ी शंकर की पूजा है। पशु वध रोकना ही सबसे बड़ी पूजा है। पूजा के लिए मंदिर अनिवार्य नहीं। मंदिर तो हम अपने अंदर ही बना सकते हैं, यदि हमारे दिल में करुणा और अहिंसा की वेदी बनी है तो समझ लो अवश्य तुम्हारे अन्दर परमात्मा का मंदिर बना हुआ है, और तुम उस परमात्मा की पूजा कर रहे हो। हम आज मंदिर में पूजा कर लेते हैं और समझ लेते हैं कि हमने परमात्मा को खुश कर लिया, नहीं, नहीं, जब तक हमारे अन्दर से हिंसा, क्रूरता, बर्बरता निकल नहीं जायेगी तब तक हम अपने भीतरी भगवान् को नहीं समझ पायेंगे। अब मंदिर में जाकर भगवान् की पूजा करने की अपेक्षा, जो कत्लखानों में पशु कट रहे हैं उन पशुओं की हत्या रोको उनकी जान बचाओ यही सबसे बड़ी पूजा है।

     

    पशुओं की रक्षा के लिए उनके संरक्षण के लिए हमको अपने गाँव में गो-शाला का अवश्य निर्माण करना चाहिए। गौ-शाला भी मंदिर से कम नहीं है उस गौ-शाला में भी आपको परमात्मा के दर्शन हो सकते हैं वहाँ आपकी पूजा हो सकती है, वहाँ भी आपका भजन हो सकता है। अहिंसा के दर्शन आपको गी शाला में भी हो सकते हैं इसलिए आप गो-शाला का अवश्य निर्माण करें। दूसरी बात, यदि आपके घर में गाय, बैल, भैंस आदि जानवर हैं और जब वे वृद्ध हो जाते हैं तो आप उनको बेचें नहीं। यदि आप बूढ़े गाय-बैल आदि पशुओं को बेचते हैं तो अवश्य आप पाप के भागीदार हैं क्योंकि वे बूढ़े जानवर कसाई के यहीं जावेंगे और वह उनका कत्ल करेगा और मांस बेचेगा। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हमने जिनसे जीवनभर काम लिया उनसे खेती की, उनका दूध पिया अब उनको अपने माता-पिता के समान पालन पोषण करें, यही सबसे बड़ा धर्म है।

     

    इस प्रकार से पशुओं को कत्ल होने से बचाने के लिये यह बहुत सरल उपाय है (१) गौशाला (२) बूढ़े जानवरों को नहीं बेचना (३) गाँव-गाँव में चौकियाँ स्थापित करना, अर्थात् जहाँजहाँ से ट्रकों में भर-भर कर पशु कत्लखानों में कटने के लिए चले जाते हैं उनको उन चौकियों में पकड़ना और ले जाने वालों को पुलिस के हवाले करना। गाँव-गाँव में इस प्रकार का प्रचार प्रसार करना कि कसाई जानवरों को कहीं से भी खरीद न सकें। इस प्रकार से पशु वध रोकने के उपाय हम कर सकते हैं, करना चाहिए। यदि हम गाँव-गाँव में इस प्रकार की व्यवस्था कर लें तो कत्लखाने आज बन्द हो सकते हैं।

     

    धर्म एक नदी के समान है, धर्म एक सूर्य के समान है जिस प्रकार नदी किसी जाति, समाज, अमीर-गरीब आदि के भेद-भाव बिना जो उसके तट पर जाता है उसको जल प्रदान करती है, वह नदी किसी को मना नहीं करती कि तुम मेरा पानी मत पियो। इसी प्रकार सूर्य प्रकाश बिना भेद-भाव के सबके घरों में अपना प्रकाश प्रदान करता है। बस धर्म भी इसी प्रकार होता है। धर्म वही है जो सबको जीना सिखलाता है, धर्म वही है जो पक्षपात करना छुड़वाता है। धर्म वही है जो सुख से जीना सिखलाता है। धर्म वही है जो शांति से जीना सिखलाता है। धर्म को समझो, धर्म हमारी ईष्या, राग, द्वेष छुड़वाता है, विरोध प्रतिशोध छुड़वाता है धर्म का अर्थ कर्तव्य होता है और कर्तव्य का अर्थ करने योग्य कार्य। करने योग्य क्या है? अच्छाई करने योग्य है। करने योग्य क्या नहीं है? बुराई करने योग्य नहीं है। बुराई निन्दा, चुगली, कलह, झगड़ा यह सब अयोग्य कार्य हैं इनको नहीं करना चाहिए।

     

    यह मनुष्य मनु की सन्तान है, मनन करता है, चिन्तन करता है, विचार करता है विचारशील है लेकिन आचारशील नहीं है लेकिन अब मनुष्य को आचारशील बनना है। आचार का अर्थ नैतिक आचरण होता है हमको आज आचरण की आवश्यकता है मनुष्य के जीवन में आचरण की बड़ी कीमत होती है। आचरण के बिना मनुष्य, मनुष्य नहीं कहला सकता। कीमत मनुष्य की नहीं होती, कीमत आचरण की होती है। सदाचार की होती है, शाकाहार की होती है। यदि मनुष्य में सदाचार, सेवा, शाकाहार, सरलता नहीं तो वह मनुष्य नहीं कहला सकता। सदाचार का नाम है आदमी, सरलता का नाम है आदमी, अहिंसा का नाम है आदमी, ईमान का नाम है इंसान, मानवता का नाम है धर्म। इंसान को ईमान की पूजा करना चाहिए।

     

    योग का नाम है आदमी, भोग का नाम नहीं। जब भोग समाप्त हो जाते हैं और योग में लीन हो जाता है तब सारे विकार समाप्त हो जाते हैं वासना एक विकृति, खराबी है, वासना को जीते बिना योग साधना प्रारम्भ नहीं हो सकती। योग साधना के लिए वासना को पहले छोड़ना होगा, वासना को भूलकर उपासना करो, प्रार्थना करो, साधना करो। वासना के साथ उपासना नहीं हो सकती। उपासना करने के लिए प्रार्थना करो, साधना करो, और कामना करो कि हमारा जीवन सफल हो इसके लिए पुण्य काम करो। मनुष्य जीवन पुण्य का फल है। इसलिए पुण्य कार्य करो पाप कार्य से बचो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह से बचो। अच्छाई का कार्य करो, बुराइयों से बचो। मनुष्य जीवन की सफलता इसी में है कि हमें पापों से बचकर पुण्य करना है।

     

    आचार्य श्री ने भारत की प्राचीन कानून प्रणाली एवं दण्ड संहिता का उल्लेख करते हुए कहा कि प्राचीन भारत में दण्ड के नाम पर तीन धाराएँ थी पहला ‘हा’ दूसरा 'मा' और तीसरा ‘धिक्र' इनका अर्थ यह है कि यदि किसी ने कोई अपराध कर लिया तो उसको दण्ड के नाम पर राजा मात्र ‘हा’ कहता था यानि हाय! हाय! तूने यह क्या कर लिया। बस इतने मात्र में वह अपराधी सुधर जाता था। किसी को 'मा' यानि अब ऐसा कभी मत करो। और किसी को ‘धिक्र' यानि धिक्कार। धिक्कार। छी छी। बस ये तीन ही दण्ड थे, न सजा थी न जुर्माना और न फाँसी। मात्र शाब्दिक उच्चारण रूप दण्ड में ही उस समय का आदमी सुधर जाता था लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरता गया उद्धृण्डता बढ़ती गई और दण्ड संहिताओं का भी विस्तार होता गया और आज तो दण्ड के नाम पर सजा है, जुर्माना है, फाँसी है सब कुछ है लेकिन किसी भी प्रकार से अपराधों में कमी नहीं है दिनों दिन अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं।

     

    अपराधों को जन्म देने में हिंसक वातावरण का पहला हाथ है सरकार अपराधों को रोकने के लिए कानून बनाती है लेकिन हिंसक वातावरण का स्वयं निर्माण भी करती है। यह तो सत्य है कि कत्लखानों से कभी अहिंसक वातावरण का निर्माण नहीं हो सकता। जहाँ कत्ल होता है, खून होता है, जिन्दा जीवों को मशीनों से काटा जाता है, ऐसे वध स्थानों में अहिंसक वातावरण की क्या कल्पना की जा सकती है? इन्हीं कत्लखानों की वजह से ही आदमी के अन्दर भी अनेक प्रकार के अपराध जाग रहे हैं। इन कत्लखानों ने पशुओं की चोरी करना सिखला दिया, हजारों को कसाई बना दिया, अत्याचार करना सिखला दिया, यूजलैस (अनुपयोगी) जानवर के नाम पर दुधारू जानवरों का भी वध होने लगा है। जवान गाय-बैल का भी कत्ल होने लगा है। एक तरफ तो सरकार गौ-वंश के गीत गाती है और दूसरी और कत्लखाने खोलकर गाय-बैलों का कत्ल करके उनके मांस को डिब्बों में बन्द कर विदेश निर्यात करती है, और वहाँ से गोबर मंगाती है दूध पाउडर मंगाती है यह कौन सी नीति है? मांस निर्यात मनुष्यता के लिए अभिशाप है इसको रोकना चाहिए, कत्लखाने मानव जाति पर कलंक है, कत्लखाने भारतीय अहिंसक संस्कृति पर कुठाराघात है, मांस निर्यात को रोकना चाहिए पशु बचाओ और उसके लिए हम सबको एक जुट हो जाना चाहिए।

    Edited by admin


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