विदाई बेला पर
आचार्य समन्तभद्राचार्य जी कहते हैं कि अनादि से मिथ्या अंधकार फैला है आत्मा की शक्ति लुप्त हो रखी है, उसको प्रकाशमान करने के लिए ही महान् आत्माओं का जन्म लेना होता है। स्व के साथ पर का उद्धार भी होता है। जब तक संसार में प्राणी रहता है, तब तक दूसरे के लिए ही कार्य होता है। एक बार वीतराग विज्ञानता आ जायेगी तो सभी जीवों के दुख दूर हो जाएँगे, उन्हीं के विचारों के अनुरूप तथा गुरुवर्य आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज का आशीर्वाद यह बल देता है कि स्व पर कल्याण हो, जीवन का यही लक्ष्य बना रहे। मिथ्यांधकार का नाश हो, प्रकाश का अन्त न हो, मल दोष न हो, शक्ति नष्ट न हो।
हम अनन्त शक्ति के धारक बनें, दुनियाँ को मार्ग मिले। अन्धकार वही है जो मिथ्या है। भ्राँति महान् खतरे की चीज है। विपरीत बुद्धि संसार में दुख देने वाली है। महाराज श्री ने अन्तिम समय में यहीं इसी जिले में जीवन व्यतीत किया, उनके पार्थिव शरीर का विमोचन भी इसी जिले में हुआ, चातुर्मास भी इसी जिले में हुए। लोगों का भाग्य था तब ही आचार्य श्री का यहीं रहना हुआ। यहाँ के लोगों का भाग्य है कि मैंने दूर जाकर भी यहाँ चातुर्मास किया। अब आपको जीवन के लक्ष्य के बारे में सोचना चाहिए।
धर्म ध्यान व प्रभावना की दृष्टि से अजमेर जिला उत्कृष्ट है। इस अजमेर क्षेत्र में मुझे धर्म ध्यान हुआ, उसे मैं भूल नहीं सकता। नदी के पानी के रुकने पर पानी के स्वाद में कमी आ जायेगी। बादल एक जगह रहेंगे तो एक बार बरसकर रुक जाएँगे बारिश नहीं होगी। बादलों के हवा के द्वारा आगे जाने पर नये बादल आएँगे और बरसात होगी। नवीनता आती जाएगी, उत्साह बढ़ता जायेगा। अभी जीवन का वास्तविक मौलिक, पुनीत अवसर आया है, जिसे प्राप्त करने के लिए आपने बहुत प्रयत्न किया होगा। २५००वें निर्वाणोत्सव के लिए कहीं विरोध नहीं है। जहाँ भी कार्य हो रहे हैं, अद्भुत हो रहे हैं। शक्ति को न छिपाकर इसी में लगाना है। यह मुझे विश्वास है कि आप अपनी पूरी शक्ति इसमें लगाएँगे। एक साल तक कार्यक्रम चलाते रहे तो जीवन भर चलाने की कोशिश करेंगे इससे अलौकिक प्रभावना होगी। आपका भी अवश्य कल्याण हो जाएगा। महावीर के गुणगान, कीर्ति, यश फैलाने के लिए जीवन के अन्तिम समय तक व्यस्त रहें। मैंने गुरु महाराज के परोक्ष में २ चातुर्मास किए, मैं अन्त में उनको याद करता हूँ और यह दोहा कहता हूँ।
तरणि ज्ञानसागर गुरो, तारो मुझे ऋषीश।
करुणा कर करुणा करो, कर से दो आशीष।