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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सिद्धोदयसार 1 - मांस निर्यात रोकने अब हस्ताक्षर नहीं हस्तक्षेप चाहिए

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    पशुओं का वध बिना मौत के हो रहा है, इस पशु वध को रोकने में आपका क्या सहयोग है? क्या मात्र संकल्प पत्र में हस्ताक्षर? नहीं, नहीं, पशु वध को रोकने के लिए अब हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं अब हस्तक्षेप चाहिए। हस्तक्षेप का अर्थ बाधा उत्पन्न करना, और वह बाधा किसमें? हिंसा में, अहिंसा में नहीं। पशु वध हिंसा है, कत्लखाने हिंसा है, मांस निर्यात हिंसा है, इस हिंसा में बाधा उत्पन्न करो, यह पशुओं की हिंसा हस्ताक्षर से रुकने वाली नहीं है इसके लिए अब हस्तक्षेप की आवश्यकता है। स्वतंत्र होने के बाद पशुओं का हमारे ऊपर डिपेन्ड होना, यानि उनका संरक्षण करते लेकिन यह भारत इतना गरीब हो गया कि पशुओं पर डिपेन्ड हो गया, यानि पशुओं को मारकर उनका खून मांस बेचकर अपनी गरीबी भगाना चाहता है उनसे पैसा कमाना चाहता है। पशुओं का मांस बेचकर क्या भारत धनी बन जायेगा पशुओं की हत्या करके यह भारत अपने कर्ज को मिटा लेगा? मांस बेचने से न भारत का उत्थान होगा और न उसकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । कत्लखाने कृषि प्रधान देश के लिए कलंक हैं।

     

    देश में बढ़ती हिंसाएं, बर्बरताएं हमारे विनाश का मानसून तैयार कर रही हैं। कत्लखाने, पशु हत्या, मांस निर्यात, वृक्षों की कटाई पक्षियों की तस्करी, फैलता प्रदूषण, बिगड़ता पर्यावरण हमारे जीवन मरण का प्रश्न है। यदि हमने इस बढ़ते पापाचार पर प्रतिबंध नहीं लगाया तो प्रकृति के प्रकुपित होने में अब देर नहीं है। प्रकृति का प्रकुपित प्रकोप भूकम्प, ज्वालामुखी, दुर्भिक्ष के भीषण विकराल दाडों में दुनियाँ को चबा जायेगा। अत: आवश्यकता है एक 'जन क्रांति' की जो दुनिया के हिंसक वातावरण को अहिंसा और करुणा में बदल दे।

     

    आप गाँव में रहें या शहर में अथवा कहीं भी रहें आपको ‘ मांस निर्यात' के खिलाफ एक आन्दोलन करना है। इसके लिए आप अपने यहाँ एक 'मांस निर्यात निरोध परिषद' का गठन करें और जनमत तैयार करें और यह मात्र जैनों का जनमत नहीं अपितु आपके गाँव- शहर में रहने वाले जितने भी समुदाय हैं उनसे मिलकर विचार विमर्श करके उन सबके साथ अपनी आवाज को बुलन्द करें। रैलियां निकालें, धरना दें, दैनिक समाचार पत्रों में पशु वध से होने वाली आर्थिक, धार्मिक, पर्यावरणीय जानकारियाँ लेख मालाएं प्रकाशित कराएं इस आन्दोलन को मंद न होने दें।

     

    खून मांस बेचकर, कत्लखाने खोलकर, पशुओं का कत्ल करके क्या आप ईश्वर से प्रार्थना करने के काबिल हैं? क्या आप ईश्वर से राष्ट्र की सुख समृद्धि की दुआएं माँग सकते हैं? किस मुँह से माँगोगे? किस मन से माँगोगे? किन भावनाओं से माँगोगे? ईश्वर की उपासना करने वाले देश में कत्लखानों की क्या आवश्यकता? ईश्वर की उपासना तो हिंसा, कत्ल से घृणा कराती है, सभी जीवों को जीने का सन्देश देती है, सभी से प्रेम, स्नेह, वात्सल्य सिखाती है। कत्लखाने खोलना, मांस का निर्यात करना धर्म का अपमान है। सरकार को किसी भी धर्म का अपमान करने का अधिकार नहीं, कोई भी हिंसा को अच्छा नहीं कहता, इन कत्लखानों से धार्मिकता कम हो रही है। इन कत्लखानों से समाज को क्या शिक्षा मिलेगी? समाज तो पशुओं की रक्षा के लिए, पशु सेवा के लिए, पशु संरक्षणालय बनाता है, गौ शाला बनाता है और सरकार कत्लखानों का लाइसेंस देती है। मांस निर्यात से धार्मिक भावनाएँ आहत हो रही हैं।

     

    जो व्यक्ति अपने लिए रोता है वह स्वार्थी कहलाता है लेकिन जो दूसरों के लिए रोता है वह धर्मात्मा कहलाता है। यदि हम दूसरों के लिए रोना सीख लेते हैं तो बहुत से लोग हँसने लगेंगे। धर्म को समझने के लिए सबसे पहले मंदिर जाना अनिवार्य नहीं अपितु दूसरों के दुखों को समझना पहले अनिवार्य है परन्तु जब तक हम हमारे दिल में किसी को जगह नहीं देंगे तब तक हम दूसरों के दुखों को नहीं समझ सकते। पहले दिल में जगह दें जमीन में नहीं, जमीन में जगह देना कोई जगह देना नहीं है यह तो सभी दे सकते हैं, लेकिन दिल में जगह देना सबके वश की बात नहीं। दिल में जगह वही दे सकता है जिसका हृदय विशाल है छोटे दिल वाला तो मात्र जमीन में जगह देता है दिल में नहीं।

     

    जीवन में सहमति की अपेक्षा सहयोग की महत्ता है। सहमति तो हर व्यक्ति दे देता है लेकिन सहयोग हर कोई नहीं दे सकता। अब हमको सहमति की नहीं सहयोग की आवश्यकता है। जनता यदि एक दूसरे को सहयोग देने लगे तो हम एक दूसरे के बहुत निकट आ सकते हैं। एक दूसरे का सहयोग करने से हृदय में आत्मीयता का संचार होता है, परस्पर मैत्री से स्नेह दृढ़ होता है। हम आदमी को नहीं पशु पक्षियों को भी सहयोग दें उनके सुख-दुख में भी अपना हाथ बटाएं, उनको कष्ट से निकालें उनकी परेशानी दूर करें, उनकी जिन्दगी का ख्याल रखें, कहीं वे हमारे द्वारा पीड़ित तो नहीं है ?

     

    नेता को वोट देने वाला भी नेता से कम नहीं होता, वह भी एक नेता होता है। वोट लेने वाला नेता होता है तो वोट देने वाला भी नेता होता है। जब दोनों ही नेता होते हैं तो वोट देने वाला नेता अपने नेता के चुनाव में गलती क्यों कर जाता है? ऐसे नेता का चयन करना चाहिए जिसके द्वारा हमारा संरक्षण हो, हमारी संस्कृति, हमारे धर्म का संवर्द्धन हो। जिस नेता के द्वारा हमारा संरक्षण न हो, हमारी संस्कृति, धर्म का ह्रास हो उसको कभी भी चयन नहीं करना चाहिए। आज हमारे देश की पशु सम्पदा का विनाश हो रहा है और यह सब कौन करा रहा है? आखिर है तो सरकार ही न? सरकार ही ने तो कत्लखाने खुलवाये हैं। फिर हमारा क्या कर्तव्य होता है? जिसको हमने वोट दिया अपना प्रतिनिधि बनाया यदि वही हमारी आवाज को न सुने तो हमको उस नेता से सत्ता वापस ले लेना चाहिए। इसमें कोई बुराई की बात नहीं, यह तो योग्यता की बात है, किसी पार्टी की नहीं। 

     

    आप अपनी ताकत जगाइये, आपके पास विराट शक्ति है। आप अपनी भावनाओं, भावों की शक्ति से सारी दुनियाँ बदल सकते हैं आप अपनी सम्प्रेषण की शक्ति को जानिए। सम्प्रेषण का अर्थ भावों का खेल है, भावों की शक्ति का चमत्कार। आप अपनी सम्प्रेषण की शक्ति से सारी दुनियाँ को हिला सकते हैं। आप अपने भावों में करुणा, अहिंसा, दया को भरिए आप अपने अहिंसक भावों का सम्प्रेषण डालिये। यदि आपके भावों में सहानुभूति है, तो बिना दवा के भी रोगी ठीक हो सकता है।

     

    हमारी दया सक्रिय होना चाहिए। निष्क्रिय नहीं। सक्रिय दया का अर्थ आचरण में उसका पालन होता है। यदि हमारी दया सक्रिय हो जाये जो आज ही कत्लखाने बन्द हो सकते हैं। हर समाज में कितनी कितनी संस्थाएँ हैं लेकिन सक्रिय न होने के कारण हमारी जीत नहीं हो पा रही है अगर हम सब मिलकर बीड़ा उठा लें और संकल्प कर लें कि हम भारत से मांस निर्यात नहीं होने देंगे तो सरकार की क्या मजाल कि वह इसको रोक सके। अपनी दया को सक्रिय करो भावनाओं में स्फूर्ति लाओ और जुट जाओ इस जीव दया के कार्य में। एक दिन अवश्य विजय मिलेगी, अवश्य जीत होगी बस आप लोग लगे रहो इसकी गति को मंद मत होने दो एक दिन अवश्य आयेगा जिस दिन मांस नियति रुक जायेगा।

    Edited by admin


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