प्रकृति को रोकना डेन्जर (खतरा) है प्रकृति को मत रोकिए यदि तुमने प्रकृति को रोकना चाहा तो समझ लो तुम्हारा जीवन खतरे में है। आज हमने प्रकृति से छेड़छाड़ करके अनेक खतरे पैदा कर लिए हैं, हमने नदियों को रोक लिया बांध बना लिया। याद रखो, नदियों में कमी भी 'डेजर' नहीं लिखा रहता जबकि बांधों में ‘डेंजर" लिखा रहता है क्योंकि हमने प्रकृति से छेड़छाड़ किया है, नदियों को रोक कर हमने कई खतरे पैदा कर लिए हैं। प्रकृति में रहो लेकिन प्रकृति के अनुसार रहो प्रकृति के अनुसार चलने में ही मानवजाति का भला है, यदि मानव जाति को खतरों से बचाना चाहते हो तो प्रकृति के प्रतिकूल मत चलो। जीवन में राइट नॉलेज (समीचीन ज्ञान) होना चाहिए, यह दुनियाँ भटक रही है क्योंकि इसके पास राइट नॉलेज नहीं है, हमारे पास सब कुछ है किसी बात की कमी नहीं है लेकिन हमारे पास सबसे बड़ी गरीबी राइट नॉलेज की है। यदि तुम आत्मशांति की खोज करना चाहते हो तो बाहर की यात्रा बंद कर दी। शांति बाहर नहीं मिलेगी शांति भीतर मिलती है और आत्मशांति के लिए समीचीन ज्ञान की आवश्यकता है। जब हमको राइट नॉलेज हो जाता है तब हम अपने (राइट) अधिकार की बात करना छोड़ देते हैं यानि हम कर्तव्य की ओर बढ़ जाते हैं। बात कर्तव्य की करो, अधिकार की नहीं, कर्तव्य ही जीवन है, अधिकार नहीं। यदि हम दुनियाँ का भला करना चाहते हैं तो हमको कर्तव्यशील बनना होगा और अधिकार की बात को छोड़ना होगा। सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमको भीतरी चेतना को समझना होगा। वह सच्चा ज्ञान मंदिर में ही नहीं रणांगन (युद्ध भूमि) में भी हो सकता है। इसका ज्वलंत उदाहरण है भारतीय इतिहास का आदर्श नरेश सम्राट अशोक महान्, अशोक महान् को सच्चा ज्ञान मंदिर में नहीं युद्ध में हुआ था, अशोक ने जब युद्ध भूमि में लाशों का ढेर देखा उसकी आत्मा काँप उठी, वह रो पड़ा, उसका दिल दहल उठा और उसकी आत्मा चिल्ला उठी, ये नरसंहार आखिर किसके लिए? नहीं, नहीं राष्ट्र की रक्षा के लिए, प्रजा की उन्नति के लिए? यह खून खराबा उचित नहीं और उसने आजीवन युद्ध का त्याग कर दिया। उसने सोचा दूसरों के खून से राष्ट्र की उन्नति संभव नहीं, प्रजा की रक्षा और राष्ट्र की उन्नति के लिए अहिंसा ही एक मात्र सच्चा साधन है।
उस अशोक महान् की मुद्रा ही आज हमारा राष्ट्रीय चिह्न है। हमारे देश का राष्ट्रीय चिह्न ही अहिंसा का प्रतीक है। जब हमारे देश की राष्ट्रीय मुद्रा ही अहिंसा का प्रतीक है तो फिर देश हिंसा का सहारा लेकर राष्ट्र की उन्नति का स्वप्न क्यों देख रहा है। अशोक ने युद्ध का त्यागकर दिया था, क्या भारत को नहीं मालूम कत्लखानों में युद्ध से भी बदतर स्थिति है। जहाँ जिन्दा जानवरों का कत्ल कर दिया जाता है फिर अशोक महान् की मुद्रा को राष्ट्रीय चिह्न बनाने का क्या अर्थ? यदि हमारी राष्ट्रीय मुद्रा अहिंसा का प्रतीक है तो हमको भी अहिंसा का अनुपालन करना चाहिए। अन्यथा राष्ट्रीय मुद्रा का अपमान है। जिस मुद्रा में 'सत्यमेव जयते' का वेद वाक्य लिखा हो फिर भी सरकार मांस का निर्यात करे यह कौन सा आदर्श है।
जिसको आप माँ कहते हैं और उसी गौ माँ का मांस बेचकर राष्ट्र का उत्थान चाहना यह कितनी लज्जा शर्म की बात है। भले ट्रेक्टर से कृषि हो जाये लेकिन ट्रेक्टर से दूध नहीं मिल सकता, घी नहीं मिल सकता, खोवा, गोबर नहीं मिलेगा।
अत: गौ रक्षा अनिवार्य है। यदि गैय्या नहीं रही भैय्या तो याद रखो भगवान् की आरती के लिए भी पेट्रोल की आवश्यता होगी क्योंकि घी गाय से मिलेगा ट्रेक्टर से नहीं। गाय एक चेतन धन है जड़ धन के लिए चेतन धन को नाश करके धन की वृद्धि करना बिल्कुल बेकार है यह तो अभिशाप है, इससे देश का कुछ भी उत्थान नहीं होगा। भारत को किस बात की कमी है। भारत के पास कृषि के लिए बहुत जमीन है फिर आज मछली की खेती, अण्डों की खेती, मांस की खेती क्यों की जा रही है?
गाँधी जी के शब्दों में () अर्थात् गाय करुणा की कविता है। उन्होंने गौ रक्षा का अर्थ भी बहुत अच्छा किया ( ) अर्थात् गौ रक्षा का अर्थ क्या है? ईश्वर के समग्र मूक सृष्टि की रक्षा करना गी रक्षा है। मूक सृष्टि का अर्थ पशु जगत् के समग्र प्राणी जैसे-गाय, बैल, भैंस, घोड़ा, बकरी, बकरा, मुर्गा, मेंढक, मछली, पक्षी इत्यादि सब। गाय का दूध पीने वालो गाय का खून मत होने दो, राष्ट्र की रक्षा और प्रजा का पालन हमारा धर्म होना चाहिए यदि हम राष्ट्र की रक्षा और प्रजा का पालन नहीं कर सके तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। हमारे पास आज राष्ट्रीय गीत है, राष्ट्रीय ध्वज,राष्ट्रीय चिन्ह है लेकिन हमारे "राष्ट्रीय चरित्र " नहीं है यदि हम अपना राष्ट्रीय चरित्र बना लें तो हमारे राष्ट्र का भला है। वह राष्ट्रीय चरित्र क्या है? सत्य और अहिंसा ही हमारा राष्ट्रीय चरित्र हो, सत्य और अहिंसा ही हमारा राष्ट्रीय धर्म हो, और यदि हमारे नस-नस में इस राष्ट्रीयता का संचार हो जाये तो फिर हमको किसी दूसरी चीज का सहारा लेने की कोई आवश्यकता नहीं। हमारा राष्ट्रीय ध्वज अहिंसा का प्रतीक है, अहिंसा की ध्वजा को फहराने वाला देश, करुणा, विश्व मैत्री, विश्व शांति का अमर सन्देश देने वाला देश, गाय की आरती और पूजा करने वाला देश मांस निर्यात कर अपने आदर्श को खो रहा है अपनी संस्कृति को कलंकित कर रहा है!!! 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' वाली कहावत चरितार्थ होने वाली है याद रखो। दूध फटने के बाद उसमें कितना भी अच्छा रसायन डालो वह दूध पुनः सही नहीं हो सकता इसी प्रकार यदि एक बार देश की संस्कृति फट गई, विकृत हो गई तो समझ लो देश बचने वाला नहीं है। भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए देश की पशु सम्पदा को बचाना आवश्यक है और इसके लिए देश के कर्णधारों को जागना है। जो कर्णधार तो हैं लेकिन उनके कानों में आवाज नहीं जाती।
आप भारत के अतीत उन पवित्र पद चिह्नों में चलिए जिससे दुनियाँ को सच्चाई का मार्ग मिले सत्य का दर्शन हो, और असत्य से घृणा हो। हमारा आचरण ऐसा हो कि हमारे द्वारा प्रजा का ही नहीं अपितु प्रतिपक्ष का भी संरक्षण हो। सन्तों का यह उपदेश है कि आप अपनी यात्रा रोकिए मत अपने जीवन को उन्नति के मार्ग पर लगाइये। अशोक महान् के आदर्श को मत भूलिये, जिससे हमारी राष्ट्रीय मुद्रा बनी है। विदेशी मुद्रा के खातिर अपनी मुद्रा (दशा) मत बिगाड़ो। सबका संरक्षण करो, सबका भला करो, किसी का वध मत करो, किसी को मत सताओ, किसी की जान पर हमला मत करो, पशुओं की रक्षा करना ही धर्म है।
Edited by admin