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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • प्रवचन सुरभि 31 - क्षमा क्यों ?

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    “पढ़ते-पढ़ते शास्त्र को, फाड़ दिये बहु शास्त्र।

    फिर भी सत्य नहीं मिला, भव का मिटा न त्रास ।“

    प्राय: करके हमें उपसंहार में कुछ मिला ही नहीं। इतने (दस दिनों) दिनों में धर्म चर्चाएँ हुई, शास्त्र-पढ़े, व्रतादि किए, लेकिन यह विचार नहीं किया कि ये नसियाँ छूट रही हैं। ये आनन्द सुख छूट रहा है। ये नसियाँ धर्मायतन हैं, अनायतन नहीं। जिन स्थानों में कष्ट का अनुभव हो, वह है अनायतन। ये धार्मिक स्थान आयतन है। आयतन वह है, जहाँ सुख सुविधा हो, जहाँ विश्राम ले सकें। इन आयतन में आत्मरंजन होता है, मनोरंजन नहीं।

     

    आपने कल क्षमावाणी पर्व मनाया, आप सिर्फ क्षमा चाहते ही है, पर क्षमा करते भी हैं या नहीं? सिर्फ क्षमा चाहना, क्षमा की अधूरी परिभाषा है। सर्वप्रथम क्षमा करना, इसका मतलब दुनियाँ में कोई वैरी नहीं। क्षमा चाहने में बहुत से छूट जाते हैं। क्षमा करोगे तभी वास्तविक क्षमाधारी, समताधारी बनोगे। जहाँ चैत्य, तीर्थ, मन्दिर आदि शास्त्र स्वाध्याय है, वहाँ वास करना। अभी आपने ५ रोज पूर्व से रत्नत्रय जी के व्रत किए। घर से चले मन्दिर की ओर, तब विचार किया कि मुझे ५ दिन बाद घर आना है, इसकी बजाये यह विचार करना कि मुझे ५ दिन नसियाँ में रहना है। जाने के पहले ही आने का विचार नहीं होना चाहिए। सभी का परिणमन भिन्न-भिन्न है, कोई भी व्यक्ति सत्ता के द्वारा किसी प्रकार का कार्य नहीं करा सकता। 'मैं' कर रहा हूँ, यह गलत है, अहंकार को लिए है। कुत्ता छाया के कारण गाड़ी के नीचे चलता हुआ यह विचार करे कि गाड़ी मेरे कारण ही चल रही है, यह उसकी भूल है। क्षमा करने में अहिंसा महाव्रत अपने आप आ जाता है। लेकिन पैर तो आपके दूसरों की गर्दन पर है। क्षमा करने से आत्मा संतुष्ट होगा, चाहने से नहीं, हमारा बिगाड़ तब है, जब हम क्षमा नहीं करें। क्रोध दूसरा नहीं दिलाता, वह बाहर से नहीं आता है। वह कुछ देर के लिए विश्राम ले के बैठा था, अवसर आते ही प्रकट हो गया। कोई किसी को न दबा सकता है न प्रोत्साहित कर सकता है। क्रोध करने वाले को उत्साहित किया जा सकता है, पर क्रोध दिया नहीं जा सकता है। गाली तो ज्यादा से ज्यादा कान में घुस सकती है, पर वीतराग भावों में नहीं घुस सकती है। गाली को लेकर जो छुपा हुआ गुस्सा था, उसको प्रकट कर दिया फिर वह कषायों का ढेर लगा देता है। अगर आत्मा जागरुक है तो गाली (असभ्य वचन), क्रोध रूपी कीचड़ को नहीं उछाल सकती।

     

    तूने किया विगत में कुछ पुण्य पाप,

    जो आ रहा उदय में स्वयमेव आप।

    होगा न बंध तब लों, जब लों न राग,

    चिंता नहीं उदय से बन वीतराग ।

    जब ये विचार हम कर लेते हैं कि गाली मुझे नहीं है, तो आनन्द होता है, वरना तो बहुत वेदना होती है। क्षमा करने से आत्मा का उत्थान होता है, क्षमा मांगने से वैरी बच जाता है। वैरियों के प्रति वात्सल्य बढ़ाने के लिए क्षमा करो। जब दृष्टि शरीर पर आ जाती है, तब क्रोध जागृत होता है। उदय से उपसर्गों से क्रोध कोई दिलाता है, तो उससे दूर रहो और क्षमा का ही एक मात्र चिंतन करो। जीवन भर भगवान् की उपासना करके जो अन्त में सल्लेखना धारण करता है तब पूरा फल मिलता है। सल्लेखना एक प्रकार से परीक्षा है। क्षमा करना गुणस्थान को बढ़ाना है और क्षमा मांगना गुण स्थान को सुरक्षित रखना है।


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