मानव जीवन में ड्यूटी की आवश्यकता है ब्यूटी की नहीं, जीवन को कर्तव्य चाहिए सुन्दरता नहीं क्योंकि समीचीन ज्ञान की शोभा कर्तव्य है, सुन्दरता नहीं। सुन्दरता तो बाहरी होती है, शरीर की होती है लेकिन कर्तव्य आत्मा का होता है, भीतर का होता है। हमारे जीवन में आज ब्यूटी (सुन्दरता) की कमी नहीं है। हमारे घरों में सैकड़ों सौन्दर्य प्रसाधन की सामग्री रखी है, सुन्दरता की सामग्री बाजारों में मिल रही है लेकिन कर्तव्य की वस्तु बाजारों में नहीं मिलती। जीवन में लाइट जलाने की आवश्यकता नहीं अपितु जीवन को लाइट में लाने की आवश्यकता है। जीवन को लाइटिड ( प्रकाशित) करिए लेकिन लाइट से नहीं कर्तव्य से। जब आपका जीवन कर्तव्य से लाइटिड हो जायेगा, तो यह सारी दुनियाँ के लोगों की भलाई का साधन बन जायेगा। वस्तुत: जो व्यक्ति कर्तव्यों का पालन कर रहा है वह प्रतिदिन पर्व मना रहा है, कर्तव्य का पालन ही तो सबसे बड़ा पर्व है। आप अपने कर्तव्यों की ओर देखिए, अपने जीवन का एक निश्चित लक्ष्य अपनाइए। और अपने मानव जीवन को सफल बनाइए। मानव जीवन को कर्तव्य की ओर लगाना ही इसकी सफलता है।
हिंसा को रोकने के लिये क्रोध करना भी क्षमा है। यानि कोई निरपराध प्राणियों को सताता है और यदि आप उन प्राणियों की रक्षा के लिए क्रोध भी करते हैं तो आपका वह क्रोध भी उत्तम क्षमा है। क्रोध और क्षमा ये दोनों बाहरी चीजें नहीं यह तो विचारों के ऊपर डिपेण्ड है। यदि आपका उद्देश्य ठीक है, विचारों में अहिंसा है, भावनाओं में करुणा है, हृदय में विशालता है तो आपका क्रोध करना भी उत्तम क्षमा है। क्योंकि आप जो क्रोध कर रहे हैं वह किसी को धमकाने, डराने के लिए नहीं कर रहे हैं, अपितु जो भयभीत है, डरा हुआ है, घबड़ा रहा है, उसका जीवन खतरे में है और यदि आप उसकी जान बचा लेते हैं, उसको जीवन दान देते हैं तो आपका यह सारा प्रयास महान् अहिंसा की कोटि में आता है, क्षमा की कोटि में आता है।
जीवों की रक्षा करना ही पर्व है, किसी जीव को मत सताओ, जो जीवों की रक्षा कर रहा है वह प्रतिदिन पर्व मना रहा है। पशुओं से प्रेम करना भी पर्व है, पशुओं की रक्षा करना, पशुओं का संरक्षण करना, उनका पालन पोषण करना महान् पर्व है। पर्व क्या चीज है? हमारे द्वारा जो कर्तव्यनिष्ठा के साथ सद्वयवहार किया जाता है वही तो पर्व है। आज पशुओं पर बहुत जुल्म हो रहे हैं, पशुओं का कत्ल हो रहा है, पशुओं का मांस निर्यात हो रहा है, जो व्यक्ति इतनी बड़ी हिंसा को रोकने की आवाज लगा रहा है, पशु हिंसा का विरोध कर रहा है, वह व्यक्ति बहुत बड़ा पर्व मना रहा है, वह तो संसार की बहुत बड़ी भलाई कर रहा है। आज आवश्यकता इसी बात की है कि हम मानवता को जिन्दा रखें। जीवों की रक्षा मानवता की पहिचान है। मानवता ही तो धर्म है, मानव की कीमत नहीं होती कीमत तो मानवता की होती है, हमारे अन्दर मानवता लगे, पशुता का अभाव हो। हिंसा पशुता की पहचान है जबकि अहिंसा मानवता का चिह्न है, पशुओं को सताना हिंसा है जबकि उनकी जान बचाना महान् अहिंसा है।
तन कमजोर है रहने दो लेकिन मन को कमजोर मत करो यदि तुम्हारा मन कमजोर हो गया तो तुम कुछ भी नहीं कर सकोगे। मन की ताकत अपूर्व है धन की शक्ति, वचन की शक्ति और शरीर की शाक्त से कई गुना अधिक है मन की शक्ति। इसी लिये तो मन को कमजोर मत होने दो तुम अपना मन बलवान करो तुम्हारी जीत होगी, अपनी भावना को कमजोर मत होने दो तुम अपना मन बलवान करो तुम्हारी जीत होगी, अपनी भावना को सात्विक बनाओ। हृदय की हाईट बढ़ाना हृदय की विशालता नहीं है वह तो खतरे की निशानी है अपने अभिप्रायों, विचारों, उद्देश्यों, भावनाओं को बड़ा, तभी आप विशाल हृदय कहला सकते हैं। जिसकी भावनाएँ बड़ी हैं वही बड़ा व्यक्ति है, जिसके विचार बड़े हैं वही बड़ा व्यक्ति है जिसका उद्देश्य महान् है वही बड़ा व्यक्ति है।
खर्च कम और आमदनी ज्यादा यह हमारी आर्थिक उन्नति का लक्षण है। हम अपनी उन्नति करना चाहते हैं, अपना विकास चाहते हैं लेकिन खर्च अधिक करते हैं, जबकि हमारी आमदनी बहुत कम है। हमारी खर्चीली आदतें, विलासितापूर्ण जीवन ही हमारे लिए गरीबी का कारण सिद्ध हो रहा है। हमको अपनी प्राचीन प्रणाली को लागू करना होगा जो हमारे पूर्वजों के पास थी, उनका जीवन सादगीपूर्ण था हमारा आडम्बरपूर्ण है। हम प्रदर्शन में जी रहे हैं जबकि हमारे पूर्वज दर्शन में जीते थे। हमको आडंबरों को छोड़कर, सन्तोष और सरलता की जिंदगी अपनाना होगी तभी हमारा विकास हो सकता है अन्यथा कुछ नहीं।
दुकान तो नौकरों के द्वारा भी चल सकती है लेकिन धर्म का पालन नौकरों के हाथ नहीं हो सकता, धर्म दूसरों की चीज नहीं धर्म के लिए हमको अपनी कमर ही कसना होगी। क्योंकि धर्म आत्मा की वस्तु है। धर्म भावों पर जीता है, भावों पर चलता है। हमारे भाव हमारे लिए हैं दूसरों के भाव हमारे लिए नहीं हो सकते। अपने पास संतोष होगा उससे शांति हमको मिलेगी, हमारे पास लोभ होगा हमारे पास अशान्ति होगी। आत्म शांति की अनुभूति दूसरों के द्वारा हमको नहीं हो सकती। मानव जीवन मिला है, जीवन को समझो अपने मन को बलवान बनाओ आगे की ओर चलो जीना चाहते हैं तो जीवन को 'जीना' पर अर्थात् सीढ़ी पर अग्रसर करो जीवन का विकास 'जीना' पर चढ़े बिना नहीं हो सकता। जीवन विकास की सीढ़ियाँ करुणा और अहिंसा हैं, हिंसा को रोकने का काम करो, देश में, परिवार में, घर में शांति की स्थापना करो। और अपने देश और समाज की सेवा करो, जिससे अपना और दूसरों का भला हो।