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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सिद्धोदयसार 24 - जाप करो पाप नहीं

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    जाप करना महान् तप है, अत: प्रतिदिन जाप करना चाहिए। जाप का अभ्यास पाप को छुड़ा देता है इसीलिए पाप से बचने के लिए जाप करना चाहिए। जब हम जाप करते हैं तो हमारा मन स्थिर हो जाता है जो मन सांसारिक विलासिता में भटक रहा था, वह उससे बच जाता है, उसकी चंचलता समाप्त हो जाती है। भगवान् की पूजा उपासना का अर्थ ही यह होता है कि हम अपने मन को एकाग्र कर लें अपने मन पर विजय प्राप्त कर लें, मन पर विजय प्राप्त करना ही सही जाप है। जाप करते समय मन को एकाग्र कर लेना चाहिए एवं अपने मन को फ्री कर लेना चाहिए। यदि हम प्रतिदिन शुद्ध मन से जाप करते हैं तो निश्चित ही चिंता और तनाव दूर हो जाते हैं। भगवान् की भक्ति, प्रार्थना अच्छे भावपूर्वक की जाये तो मन की सारी थकान दूर हो सकती है। जाप में मन हल्का होना चाहिए जाप ध्यान का अच्छा साधना है जो व्यक्ति ध्यान करना चाहता है उसको पहले जाप करने का अभ्यास करना चाहिए।

     

    सुबह-शाम कम से कम कुछ समय जाप के लिए निकालो मन को हल्का करने का यह सबसे अच्छा उपाय है। जाप मानव मंत्र की साधना का विज्ञान है, जाप आत्मा का विज्ञान है। शर्त है कि जाप के लिए मन को शांत होना चाहिए। जाप करने से पहले मन से तमाम अशुद्धियों को फेंक दो, मन को खाली कर दो, मन से विचारों की कब्जियत निकाल दो, तुम्हारा जाप सफल हो जायेगा और तुम प्रशान्त हो जाओगे। यदि सुख और स्वास्थ्य को चाहते हो तो जाप की कला सीखी अशांति से बचने के लिए भगवान् के नाम के मंत्र की माला (जाप) शुरू कर दी

     

    भगवान् का मरण नहीं होता। मरण भत्तों का होता है। भगवान् का मरण इसलिए नहीं होता, क्योंकि भगवान् की कोई उम्र नहीं होती। हमारी उम्र होती है, इसलिए हम मरते हैं। यदि भक्त भगवान् की उपासना करता है, भगवान् बनने की साधना करने लगता है तो वह भी एक दिन अमर हो जाता है क्योंकि वह स्वयं भगवान् बन जाता है। भगवान् बनने की क्षमता हमारे अन्दर है। हम भी भगवान् बन सकते हैं, लेकिन हमको पहले भक्त बनना होगा। भक्त बनकर ही भगवान् बना जा सकता है। यदि तुम भगवान् बनना चाहते तो भगवान् के चरणों में चले जाओ और भगवान् का जाप करना शुरू कर दो, तुम भगवान् बन जाओगे।

     

    खातेगाँव से आचार्य विद्यासागर हाईस्कूल की तमाम छात्राएँ अपने स्कूल के समस्त शिक्षकगणों के साथ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन के लिए पधारीआचार्य श्री के दर्शन के उपरांत समस्त छात्राओं ने एक स्वर मेंइतनी शक्ति हमें देना गुरुवर, मन का विश्वास कमजोर हो ' गीत का मधुर पाठ किया। इसके उपरांत स्कूल के प्राचार्य महोदय ने आचार्य श्री जी से निवेदन किया कि गुरुदेव छात्राओं के लिए कुछ आशीष वचन प्रदान करें। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने तमाम छात्राओं को संक्षेप में आशीर्वचन देते हुए कहा कि विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य, शील, कर्तव्य, विनय, सादगी एवं सदाचार का पालन करना चाहिए। विद्याध्ययन ब्रह्मचर्य के साथ ही करना चाहिए। भारत में पहले गुरुकुल होते थे, उन गुरुकुलों में विद्यार्थी विद्या का अध्ययन ब्रह्मचर्य के साथ ही करते थे। ब्रह्मचर्य के बिना विद्याध्ययन अधूरा है। ब्रह्मचर्य विद्याध्ययन का विज्ञान है। ब्रह्मचर्य का अर्थ शक्ति का संचय। ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए हमको अपनी दृष्टि पवित्र रखना चाहिए। विद्यार्थी जीवन में फैशन को सबसे पहले छोड़ना चाहिए। फैशन करने से विद्याध्ययन में बाधा उपस्थित हो जाती है। सदाचार का पालन करते रहना चाहिए। शाकाहार का ही सेवन करना चाहिए एवं अपव्यय से बचना चाहिए। माता-पिता एवं गुरुजनों की विनय करना चाहिए। सम्मान करना चाहिए, सेवा करना चाहिए। मन के विचारों को पवित्र रखना चाहिए। नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए एवं पढ़-लिखकर एक आदर्शवान नागरिक बनना चाहिए और समाज एवं राष्ट्र की सेवा करना चाहिए।

     

    आज के प्रदूषित वातावरण से अपने मन को बचाना चाहिए। अश्लील साहित्य और पिक्चर नहीं देखना चाहिए। ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाना चाहिए। सूर्योदय से पहले उठकर भगवान् की प्रार्थना एवं अपना अध्ययन करना चाहिए। प्रमाद से बचना चाहिए। हम शिक्षित होकर मानवीय सभ्यता और सिद्धांतों का पालन करें, समाज और राष्ट्र के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करें।

    Edited by admin


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    रतन लाल

       1 of 1 member found this review helpful 1 / 1 member

    लक्ष्य पर नजर रखो इधर उधर नहीं

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