भारतीय साहित्य में लिखा मिलता है कि ‘रेवा तटे तपः कुर्यात्' इस पद की ओर मेरा ध्यान गया तथा अमरकंटक का ख्याल आ गया। यहाँ से निकली हुई नर्मदा नदी ही जैन ग्रन्थों में रेवा के नाम से आई है। जिसे कहीं-कहीं पर 'मैकल निम्न' भी कहा गया है, आम्रकूट पर्वत का भी उल्लेख आता है जैन ग्रन्थों में। इस नदी के तट पर मुनियों ने ध्यान लगाकर मुक्ति प्राप्त की है। इंदौर के पास ऑकारेश्वर और सिद्धवर कुट की संगम स्थली प्रसिद्ध है। अभी-अभी हम बिहार करते हुए आ रहे हैं। यहाँ का सुहाना शांत वातावरण और प्राकृतिक छटा देखकर सारी थकान दूर हो गई। आप सभी जानते हैं कि ठंड काफी पड़ रही है किन्तु अब इस जनवरी की ठंड में स्व में ध्यान लगाकर तपस्या का सही आनंद लिया जायगा। आसपास अंचल के लोगों का उत्साह और यहाँ के साधकों की सौहार्दमयी भावनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे हम अपने ही स्थान पर आ गये हो। अभीअभी एक साधक आद्यवता ने कहा कि संसार में दो बातें श्रेष्ठ हैं, एक विद्या और दूसरी सागर, किन्तु जिनके पास दोनों हो उनका कहना ही क्या? सुनकर मैंने भी विचार किया और मेरी दृष्टि में इससे भी श्रेष्ठ दो बातें हैं इस दुनिया में-एक गुरु और दूसरे प्रभु। गुरु सामने है और प्रभु है अदृश्य। गुरु हमारे लिये अदृश्य प्रभु तक पहुँचाने के लिए मार्गदर्शाते हैं। आज संघ का आगमन ही हुआ है, समय कम है। इस सर्वोदय तीर्थ पर आकर हम यही भावना करते हैं कि सभी का कल्याण हो सभी का जीवन मंगलमय बनें।
‘महावीर भगवान् की जय!'
गुरुवर आचार्य श्रीज्ञानसागरजी महाराज की जय!