घड़ी में तीन काँटे होते हैं जो समय को बताते हैं। एक सेकेंड का कांटा होता है, जो चलता नहीं, भागता है। इसी से ज्ञात होता है कि घड़ी चल रही है। जिसका विशेष कार्य होता है वह चलता नहीं, भागता है जैसे आप को विशेष कार्य हो तो आप चलते नहीं भागते हैं। घंटे का कांटा चलता है किन्तु ज्ञात नहीं होता कि ये चल रहा है इसे अनुमान से जान सकते हैं कि ये चल रहा है क्योंकि अपने स्थान से दूसरे स्थान पर चला गया है।
सेकेंड का कांटा चरित्र का प्रतीक है। जो भागता है उसे कुछ कहने सुनने की फुर्सत नहीं रहती है। जब कहीं आग लग जाती है तब एक पानी से भरी गाड़ी (फायर ब्रिगेड) तेज रफ्तार से घंटी बजती हुई भागती जाती है,वह रूकती नहीं अथवा जैसे विशेष रोगी को लेकर जाती हुई एम्बुलेंस होता है वह भी नहीं रुकती है। उसके आते-जाते कलेक्टर मंत्री को भी रास्ते से हटना पड़ता है। इसी प्रकार चारित्रधारी चलता ही रहता है रुकता नहीं।
सेकेंड के कांटे के साथ मिनट और घंटे के दो काटे और चलते रहते हैं। मिनट का कांटा ज्ञान का प्रतीक है और घंटे का कांटा आस्था का प्रतीक है। इन तीनों का सम्बन्ध एक ही केन्द्र से रहता है। बारह बजे ये तीनों एक हो जाते है जो यथाख्यात चारित्र की दशा को बताते है। जैसा छहढाला में कहा भी है
तीनों अभिन्न अखिन्न शुध, उपयोग की निश्चल दशा।
प्रकटी जहाँ दूग ज्ञान व्रत, ये तीन धा एकै लसा॥
एक चौथा कांटा और होता है जो स्वयं चलता नहीं, इसका उन तीनों कांटों से कोई सम्बन्ध नहीं भी रहता। उसे अलार्म कांटा कहते हैं। गुरु अलार्म का काम करते है। जो सोने वालों को जगा देते हैं। मराठी में इसे अल्लाराम कहते हैं अर्थात् जिसे अल्ला भी जगाये और राम भी जगाये वह है अल्लाराम–अलार्म। वर्तना परिणाम आदि तो अनादिकाल से काल द्वारा होता रहा है फिर भी काल (समय) कभी भी किसी को उठा (जगा) नहीं सकता गुरु का वचन रूपी अलार्म ही उठा सकता है। आप लोग ऐसे अर्ध चेतना की अवस्था में हैं कि जब अलार्म बजने लगता है तब आप उसके स्विच पर हाथ रख देते हैं और वह बंद हो जाता है आवाज आना बंद हो जाती है। इसी प्रकार बेहोशी की दशा में हित अहित क्या है और हेय उपादेय क्या है इसका ज्ञान नहीं हो पाता है।
मोक्ष मार्ग सो मोक्षमार्ग है बिना मार्ग के मंजिल नहीं है। उस मोक्ष मार्ग के ४ उपकरण हैं। सर्वप्रथम यथाजात बालकवत् जिनलिंग। अर्थात् बालक जन्म के समय बाहर भीतर से नग्न रहता है। उसके काया तो रहती है किन्तु माया नहीं रहती। दूसरा उपकरण गुरुवचन। वचन अलग और प्रवचन अलग होते हैं जैसे बच्चा कहीं जाता है और जाने से पूर्व कहता है माँ कुछ कहो। तो माँ कुछ कहती है वह सदा याद रखता है यही है वचन। गुरु अपने अनुभव से शिष्य को ऐसे वचन दे देते हैं, कि शिष्य को मार्ग में कोई कष्ट नहीं होता। तीसरा विनय होता है विनय मंजिल तक पहुँचाने का एक मार्ग है। चौथा है श्रुताभ्यास। गुरु के बिना यदि कोई श्रुतज्ञान प्राप्त करता है तो वह रहस्यों को जान नहीं सकता, जिनवाणी के रहस्यों को गुरुवाणी ही बताती है। ये चारों चीजें जिस के पास है उसे मोक्ष मार्ग से कोई नहीं, रोक सकता है।
ज्ञानार्जन के लिए अपने आप को हमेशा जवान समझना चाहिए और धर्म के लिए वृद्ध समझना चाहिए। अर्थात् ज्ञानार्जन करते समय सोचना चाहिए कि अभी मुझे बहुत जीना है और धर्म करते समय सोचना चाहिए मौत सामने खड़ी है।
रत्नकरण्डक श्रावकाचार रत्नत्रय की प्ररूपणा करने वाला ग्रन्थ है। जब पेटी ही रत्नों की हो तो उसमें रखी वस्तु कितनी कीमती होगी अर्थात् ज्ञानसागर जी गुरु महाराज ने इस ग्रन्थ को रत्नत्रय स्तुति ग्रन्थ कहा है पानी की गति है मिट्टी की नहीं। अत: पानी की गति के लिए मिट्टी निकालो पानी अपने आप आ जायेगा। जितना खोदोगे उतना मीठा पानी आयेगा।
धर्म ध्यान ना, शुक्ल से, मोक्ष मिले आखिर।
जितना गहरा कूप हो, उतना मीठा नीर॥
खुदा तो मौन रहते हैं, उनसे वास्ता क्या है।
गुरुवर बोलते तुम हो, बता दो रास्ता क्या है।
अज्ञानमयी कोठी में, आस्था बिन पड़ा रहा।
करुणा कर बता दो नाथ, सम्यग् आस्था क्या है॥
संसार में भटका फिरा, मोह से, अज्ञान से।
इसको हटाने का बता दो, सच्चा रास्ता क्या है।
भूखे ना मुझसे हो सकेगी, यात्रा उस मोक्ष की।
उस रास्ते का तुम बता दो, अच्छा नास्ता क्या है॥
मिथ्यात्व में लिपटे पड़े हैं, शास्ता इस काल में।
अब बता दो हे गुरुवर, सम्यग् शास्ता क्या है॥
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