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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सिद्धोदयसार 2 - दूध बेचो खून नहीं

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    जो बच्चे अपनी माँ को खो देते हैं यानि बच्चे को जन्म देकर जिसकी माँ मर जाती है, उन अनाथ बच्चों का पालन-पोषण गौ माता के दूध से हो जाता है। गौ का दूध आदमी के बच्चों को पुष्ट करता है, शक्ति देता है, उनको एक लम्बी उम्र देता है। जो शक्ति माँ के दूध में नहीं वह शक्ति है गी माता के दूध में। ऐसी शक्तिवर्धक, स्वास्थ्य की जननी गौ माता का आज वध हो रहा है, जिसका हमने दूध पिया, उसी का आज खून बेच रहे हैं। भारत के लिये यह बहुत बड़ा कलंक है। भारत आज गी मांस बेच रहा है, गौ की हत्या कर रहा है। भारत ने कत्लखाने खोल लिये हैं, मांस निर्यात कर रहा है, यह मांस बेचना भारतीय संस्कृति नहीं, भारत में तो जीवों को बचाया जाता है, उनका पालन-पोषण किया जाता है। भारत कृषि प्रधान देश है, मांस प्रधान नहीं। आज भारत में मांस का व्यापार हो रहा है, शराब का व्यापार हो रहा है, अण्डों की खेती हो रही है, यह सब भारत के लिये कलंक है। मांस, शराब, अण्डे, मछली को बेचकर यह भारत कभी भी उन्नति नहीं कर सकता, क्योंकि यह सब हिंसा है। यह हिंसा का पैसा, खून का पैसा, तुम्हारे मस्तिष्क को विकृत कर देगा और सारा पैसा दिमाग को ही ठीक करने में खर्च हो जायेगा फिर देश की उन्नति के लिये क्या बचेगा?

     

    राष्ट्र का विकास अहिंसा से ही हो सकता है, हिंसा से नहीं। यदि तुम भारत की उन्नति चाहते हो तो हिंसा को रोक दो हिंसा से इस देश को मुक्त कर दो। इस देश की उम्र बढ़ जायेगी, यदि हिंसा को नहीं रोक सके तो समझ लेना देश की उम्र बहुत कम बची है। हिंसा बहुत बड़ा गुनाह है। हिंसा से बढ़कर पाप नहीं है, हिंसा सब पापों की जड़ है।

     

    जीवित पशुओं को मारकर उनका मांस बेचकर हम अपने देश को अहिंसा का संदेश कैसे दे सकते हैं? मांस का निर्यात करके पैसा कमाना यह धन कमाने का साधन कतई नहीं हो सकता। भारत को खून, मांस बेचना छोड़ देना चाहिए। खून, मांस बेचकर भारत सुखी नहीं हो सकता।

     

    मांस निर्यात करना सबसे बड़ा घोटाला है, लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि इस महा घोटाले को कोई घोटाला नहीं समझ रहा है और इसके विषय में कोई आवाज नहीं उठा रहा है। देशवासियों का यह पहला कर्तव्य है कि वे सबसे पहले मांस नियति के हिंसक घोटाले को बंद करवायें, जब तक पशु हत्या का घोटाला रुकेगा नहीं, तब तक यह भारत अपना विकास नहीं कर सकता। भारत का विकास पशु हत्या को रोकने में ही है।

     

    इन जानवरों को मारकर हम कैसे जिंदा रह सकते हैं? इन गाय- बैल इत्यादि को फसल की तरह नहीं उगाया जा सकता। पेड़-पौधों को तो उगाया जा सकता है, लेकिन इनको उगाया नहीं जा सकता। भारत के अपने आदर्श हैं, लेकिन मांस बेचकर भारत ने अपने सारे आदर्श मिटा डाले। आदर्श के नाम पर उसके पास कुछ नहीं बचा। भारत को पुन: उन संस्कारों को जीवित करने की आवश्यकता है, जिनको वह भूल गया है, यदि इन अहिंसा के संस्कारों को जीवित नहीं किया गया तो हिंसा का प्रलय हम सबको तबाह कर देगा। अत: हमको मांस-निर्यात बंद करके ही अहिंसा के संस्कारों को जीवित करना है।

     

    आज के आदमी का सबसे ज्यादा पैसा दिमाग और दवाई में ही खर्च होता है, पेट में नहीं। वह अपने पेट को अच्छी- अच्छी चीज खिलाना चाहता है, लेकिन उसका दिमाग खराब होने के कारण वह खिला नहीं पाता। उसका दिमाग इसलिए खराब है, क्योंकि उसके दिल में दया मर गई। दया के समाप्त हो जाने पर दिल बेकार हो जाता है और जिसका दिल बेकार हो जाये, उसका पेट ठीक कैसे रह सकता है और खराब पेट वाला आहार नहीं दवाई खाता है। आज हम अपने दिल और दिमाग को ठीक कर लें हमारा पैसा दवाई से बच जायेगा और उस पैसे से हम अपने देश की तरक्की अच्छी तरह से कर सकते हैं।

     

    भले आप राम, महावीर को याद न करो लेकिन दया को याद रखो, क्योंकि जहाँ दया है वहीं राम हैं, वहीं महावीर हैं। दया ही राम है, दया ही महावीर है। आज भारत के पास दया नहीं रही इसलिए वह मांस निर्यात जैसे खूनी कर्म करने लगा, अन्यथा दूध का देश खून क्यों बेचता?

    Edited by admin


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