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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सिद्धोदयसार 38 - बचाओ पर्यावरण, नहीं तो अकाल मरण

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    आज इस विज्ञान के युग में भी धरती के साथ अन्याय हो रहा है, पर्यावरण का सत्यानाश हो रहा है, जल, जंगल, जमीन, जानवर और जनता प्रदूषित हो चुकी है। पर्यावरण की खराबी के लिए सबसे बड़ा प्रदूषण रासायनिक खादों का है, इन जहरीली रासायनिक खादों के कारण फसल प्रदूषित हो चुकी है, फल सब्जियाँ, अनाज प्रदूषित हो चुका है, जल और वायु प्रदूषित हो चुकी है। आज हमारे पास न शुद्ध अनाज है और न जल। जो अनाज हम खा रहे हैं वह जहरीला है क्योंकि उसमें भी जहरीले रासायनिक खादों का अंश मिला है। कीट-नाशक दवाएँ भी पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं। आज अनेक राष्ट्रों में अनेक जहरीली दवाएँ भी पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं। आज अनेक राष्ट्रों में अनेक जहरीली दवाओं एवं कीट-नाशकों पर प्रतिबन्ध लग चुका है, लेकिन यह तो भारत है जहाँ सब कुछ खुल्लम-खुल्ला है। हमारी बीमारियाँ इन्हीं जहरीली उर्वरकों का परिणाम है। आज भी आवश्यकता इस बात की है कि पर्यावरण को प्रदूषण से बचाया जाये, और इसके लिए तमाम रासायनिक खादों एवं कीट नाशक दवाओं के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये।


    ये रासायनिक खादें धरती को जला रही हैं, धरती की उपजाऊ शाक्त को नष्ट कर रही हैं, धरती के पास जो अपनी निजी शक्ति है उसको तबाह कर रही हैं। यदि इसी प्रकार इन रासायनिक खादों का प्रयोग होता रहा तो एक दिन सारी धरती बंजर हो जायेगी। जहाँ आज फसल उगती हैं वहाँ पर घास तक पैदा नहीं होगी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कोल्हापुर, सांगली (महाराष्ट्र) के पास की हजारों एकड़ जमीन जो आज बाँझ हो चुकी है वहाँ न तो फसल होती है और न ही मकान बना सकते क्योंकि दल-दल हो चुकी है, उसमें क्षार की मात्रा अधिक बढ़ चुकी है। भले आज इन खादों से फसल की मात्रा बड़ी है लेकिन आगामी समय में उन खेतों की स्थिति बड़ी खराब हो जायेगी।


    हम अपने खेत में इन जहरीली रासायनिक खादों को डालकर धरती के साथ अन्याय न करें, धरती को बीमार न करके उसके साथ खिलवाड़ न करें। धरती ही जीवन है यदि धरती बीमार हो जायेगी तो समझ लेना उसी क्षण यहाँ की हरियाली नष्ट हो जायेगी। याद रखो, हरियाली के नष्ट होने पर आदमी का जीना मुश्किल हो जायेगा, हरियाली के अभाव में आप खा नहीं सकेंगे, जी नहीं सकेंगे, सो नहीं सकेंगे। यदि जीवन की रक्षा चाहते हो तो हरियाली की रक्षा करो, पर्यावरण की रक्षा करो, धरती की रक्षा करो, बचाओ पर्यावरण नहीं तो अकाल मरण।


    जिस दिन देश की कृषि समाप्त हो जायेगी, वहाँ दाने-दाने की भुखमरी मच जायेगी। देश की जिन्दगी कृषि पर आधारित है मशीनों पर नहीं। सोना-चाँदी, हीरा-मोती से हम अपना पेट नहीं भर सकते, पेट भरने के लिए कृषि चाहिए, अनाज चाहिए, फसल चाहिए। जब खेत में फसल खड़ी नहीं होगी तब भारत का क्या होगा? फिर हमारा क्या होगा? हमारे खेतों में फसल खड़ी है इसलिए हम भी खड़े हैं यानि जीवित हैं फसल के अभाव में चारों ओर भुखमरी मच जायेगी। देश की रक्षा के लिए कृषि की रक्षा अनिवार्य है और वह कृषि की रक्षा इन कीटनाशक दवाओं, रासायनिक जहरीली खादों से नहीं होगी। कृषि की रक्षा के लिए हमको अपनी प्राचीन कृषि प्रणाली अपनाना होगी। पहले समय में हमारे यहाँ खेत में गोबर खाद का प्रयोग किया जाता था, वह गोबर खाद थी। गोबर की खाद डाली जाती है वहाँ फसल भी अच्छी होती है, और धरती की उत्पादन क्षमता भी कम नहीं होता। प्रयोगों से यह भी पता चला है कि गोबर की खाद देन से गरमी के दिनों में खेत में उतनी नमी रहती है, जितनी लगभग डेढ़ इंच पानी बरसने से रहती है।


    हम गोबर की खाद का प्रयोग करें, गोबर की खाद से जमीन कभी नष्ट नहीं हो सकती, गोबर की खाद का प्रभाव पर्यावरण पर अच्छा पड़ता है। जो कभी भी नुकसानदायक नहीं है। यदि हमने अपनी भारतीय कृषि व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया तो इसके परिणाम बहुत बुरे होंगे। गाय और गोबर दोनों पर्यावरण के संरक्षण हैं ये पृथ्वी के भार नहीं है, गाय जितना खाती है उससे अधिक खाद देती है, यह प्रयोग द्वारा सिद्ध हो गया है कि जहाँ गाय बैल आदि रहते हैं उस स्थान पर यदि टी.बी. के मरीज को बैठा दिया जाये तो उसकी बीमारी ठीक हो जाती है। इन जानवरों का हमारे जीवन में बड़ा योगदान है। ये जानवर पर्यावरण के संरक्षक हैं हमारा कर्तव्य है कि हम पशुओं की सुरक्षा करें। पशुओं को सुरक्षित रखकर ही पर्यावरण की सुरक्षा हो सकती है


    यह कौन सी अर्थ नीति है? दुधारू जानवरों को कत्ल करके उनका खून मांस निर्यात किया जा रहा है और गोबर विदेशों से बुलवाया जा रहा है। हमको विदेश से गोबर बुलवाने की आवश्यकता नहीं, हम इन दुधारू जानवरों का पालन करें, उनसे दूध भी मिलेगा और गोबर भी। गायों, भैसों, का पालन करें, उनसे लाभ ही लाभ है, उनसे हमको शुद्ध दूध-दही-घी की प्राप्ति होगी जिससे हमारा स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अत: आदमी का स्वास्थ्य और धरती का स्वास्थ्य दोनों को ठीक रखने के लिए पर्यावरण की रक्षा अनिवार्य है, गाय की रक्षा ही पर्यावरण की सुरक्षा है।
     

    अर्थ पुरुषार्थ करो लेकिन अनर्थ पुरुषार्थ मत करो। मांस निर्यात अर्थ नहीं अनर्थ पुरुषार्थ है। उद्योग करने में हिंसा होती है लेकिन हिंसा का उद्योग नहीं होता, उद्योगी हिंसा अलग है और हिंसा का उद्योग अलग है। इसलिए तो उद्योग करो लेकिन हिंसा का उद्योग मत करो। मांस का उद्योग मत करो। मांस के उद्योग का अर्थ है निरपराधी जीवों की हत्या। यह कौन सा न्याय है कि जो निरपराध है उसको दण्ड दिया जाये? निरपराध को दण्ड देना यह कौन सा लोकतन्त्र है। दण्ड संहिता होना चाहिए लेकिन अपराधी के लिए, निरपराधी के लिए नहीं। देश की पशु सम्पदा का नाश देश की कंगाली का कारण है। भारत में धन गाय, बैल, भैंस, घोड़ा इत्यादि को माना जाता था, और उनकी सुरक्षा की जाती थी। अनुपयोगी कहकर पशुओं को काटना छल है, कोई भी जीव, किसी का जीवन कभी अनुपयोगी नहीं होता। यदि मनुष्य पशुओं को अनुपयोगी कहता है तो क्या आदमी पशुओं के लिए अनुपयोगी नहीं है?


    जनता का भी कर्तव्य होता है कि वह ऐसे व्यक्ति का चयन करे जो अहिंसक हो। पापों का समर्थन करने वाले व्यक्ति का चयन नहीं करना चाहिए। यह प्रजातन्त्र है। यहाँ प्रजा ही अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है। अत: जनता को बड़े सोच विचार कर, विवेकपूर्वक उस व्यक्ति का चयन करना चाहिए जो प्रजा को सुख समृद्धि, देश की गरिमा को कलंकित न करे, जो पशु हत्या रोके, कत्लखाने बंद कर पशुओं का संरक्षण करे, एवं अहिंसा, दया, न्याय का पालन करे। आपके वोट में बहुत शक्ति है। आप जरा विचार करो कि जिनको आपने चुना है फिर उनसे यह क्यों नहीं कह रहे हो। तुमने शासन को बनाया है, शासक से माँग करो कि इस देश से मांस का निर्यात तुरंत बंद करे। यह बात आज के लिए नहीं हमेशा के लिए याद रखें आपका अपना वोट उसी को दें जो मांस निर्यात बंद करे। देश की हरियाली और खुशियाली की रक्षा करे। जंगल, जमीन, जानवर, जल और जनता की रक्षा करे। देश में अधर्म और हिंसा को न होने दे।

    Edited by admin


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    रतन लाल

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    प्रर्यावरण संरक्षण अति आवश्यक

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