पर्यावरण की दृष्टि से भी पशु पक्षियों का संरक्षण अनिवार्य है पशु पक्षी रहेंगे तो धरती पर हरियाली रहेगी, यदि पशु पक्षी समाप्त हो जायेंगे तो वनस्पति, हरियाली भी नहीं बचेगी। पेड़-पौधों, वनस्पति, हरियाली के बिना हम जीवित नहीं रह सकते, जीवन के लिए वनस्पति अनिवार्य है। पर्यावरण मनुष्य ने बिगाड़ा है पशुपक्षियों ने नहीं। प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए पशु-पक्षी, पेड़-पौधों की उपस्थिति अनिवार्य है। लेकिन यह कितनी बेतुकी विकासवादी प्रक्रिया है जो पर्यावरण को ही खतरे में डाल रही है। पशुओं का वध पर्यावरण का विनाश है, प्रकृति के लिए खतरनाक है फिर भी किसी को इसकी चिन्ता नहीं, मात्र विदेशी मुद्रा के लालच में हम अपने पशु धन को मिटाने में तुले हुए हैं। यदि यही स्थिति रही तो हमारा पर्यावरण ही हमारे लिए प्राणघातक सिद्ध होगा। हम प्रकृति को असन्तुलित कर अपने जीवन को खतरे में न डालें अपितु इसके लिए एक आंदोलन छेड़ें ताकि पशु-पक्षियों का संरक्षण हो सके और देश में हो रही अन्धाधुन्ध पशु हत्या पर अंकुश लग सके। मांस का निर्यात रुक सके।
देश में लोकतंत्र के स्थान पर पल रहे 'लोभतंत्र' को निकाल दें तो यह देश मांस नियति से होने वाली विदेशी कमाई के बिना ही उन्नत हो सकता है। विदेशी मुद्रा के लालच में पशु मांस निर्यात करना और काण्ड पर काण्ड तथा घोटाला करके देश को लूटना, देश को कर्जदार बनाना, यह कहाँ की कमाई है? उनति है? एक पेड़ काटने पर व्यक्ति को सजा और जुर्माना भुगतना पड़ता है लेकिन आज जो प्रतिदिन हजारों लाखों जिन्दा पशु, दुधारू जानवर कत्लखानों में काटे जा रहे हैं। सरकार ने उनको रोकने के लिए कोई कानून बनाया? कत्लखानों को बन्द करने के लिए अब कानून बनाने की आवश्यकता है, कत्लखाने के खोलने की योजना बनाने की जरूरत नहीं। एक ताजी जानकारी के अनुसार इस समय मध्यप्रदेश में २१३ पशु वध गृह कार्यरत हैं जिसमें से १८८ छोटे पशुओं के लिए तथा ३० बड़े पशुओं के लिए हैं।
अब इन तमाम कत्लखानों को बंद करने की आवश्यकता है ये कत्लखाने देश के लिए कलंक हैं। इनमें पशुओं को बेमौत मारा जा रहा है पशुओं को मारने की आवश्यकता नहीं उनको पालने की जरूरत है। सरकार का कर्तव्य है कि वह इन कत्लखानों को बंद करे, और गो-शालाओं का निर्माण करे, जहाँ इनका पालन हो। इस कार्य के लिए जनता का सहयोग भी अनिवार्य है। वह पशुओं की रक्षा के लिए उनके आहार, पानी, आवास चिकित्सा की व्यवस्था करे। पशु प्रेम मानवीय कर्तव्य है, कर्तव्य ही नहीं सेवा का कार्य है अभयदान परोपकार है महान् धर्म है। यह कौन सी नीति है? दुधारू जानवरों का कत्ल करके उनका खून मांस विदेश निर्यात किया जाये और वहाँ से गोबर,
दूध पाउडर यहाँ बुलवाया जाए। देश चलाने वालों को यह नीति बदल देना चाहिए क्योंकि यह अर्थनीति नहीं यह तो अनर्थ नीति है। दूध बेचो खून नहीं। जिसका हमने दूध पिया, घी खाया, जिसके घी से दीपक जलाकर परमात्मा की आरती उतारी ऐसी गौ माता का कत्ल करके उसका मांस निर्यात करे, ऐसी सरकार को बदल देना चाहिए क्योंकि भारत माता गौशाला चाहती है कत्लखाने नहीं। आज धरती के साथ अन्याय हो रहा है क्योंकि रासायनिक खादों के नाम पर उसकी जहर दिया जा रहा है जिससे फल, सब्जियाँ, अनाज विकृत हो चुके हैं और धरती बांझ होने के कगार पर है। धरती को आज गोबर की जरूरत है और वह गोबर किसी फैक्ट्री से नहीं मिलेगा गोबर के लिए तो गो-वंश की आवश्यकता है और वह गो-वंश कत्लखानों से नहीं गो-शालाओं से जिन्दा रहेगा।
घी का दीपक मंगल का प्रतीक है, घी के दीपक से आँख की ज्योति बढ़ती है, घी सात्विक होता है, स्वास्थ्यप्रद होता है, विदेशों में दूध तो है लेकिन घी नहीं। घी भारत की पहचान है लेकिन आज तो घी की जननी ही कटती जा रही है। याद रखो, गाय के अभाव में घी नहीं और घी के अभाव में सात्विकता-आरोग्यता भी नहीं, अत: गाय की रक्षा आरोग्यता की रक्षा है स्वास्थ्य की रक्षा है इसलिए कत्लखानों में कटते गौ-वंश को बचाना आज की पहली जरूरत है। जो राष्ट्र कभी अहिंसा और अध्यात्म के क्षेत्र में विश्व का गुरु था, विश्व में अग्रणी था, वही राष्ट्र आज मांस मंडियों में अग्रणी है। हीरा-मोती बेचने वाला भारत आज पशुओं का मांस बेच रहा है, यह महापाप भारत के लिए कलंक है। इस मांस निर्यात के महा पाप को मिटाने के लिए हम सबको एक जुट हो जाना चाहिए और इसके लिए देरी की आवश्यकता नहीं।
शाकाहार समाज को अब खुलकर अहिंसात्मक तरीके से अपना विरोध प्रकट करना चाहिए। मात्र कुछ विदेशी मुद्रा के लिए पशुओं की अप्रत्यक्ष रूप से योजना बनाना किसी भी शासक के लिए अधर्म है। यदि जनता में अहिंसा नहीं जागी तो देश में पशु धन समाप्त हो जायेगा। हमारा देश पशुओं से खाली न हो इसके पहले ही हमको जागृत हो जाना है और पशु वध रोकने के लिए हमको कटिबद्ध हो जाना है। एक संकल्प लेना है कि हम मांस निर्यात रोक कर ही बैठेगे। इसके पहले बैठना अपराध होगा।
अहिंसा एवं धर्म के संस्कारों से मुक्त भारत से मांस का निर्यात व मूक पशुओं की बलि देखकर भी हमारी चेतना नहीं जाग रही है। हम संवेदन शून्य हो गए हैं, यह लज्जा की बात है। सामूहिक अपराध में हम सब भागीदार बन रहे हैं तो क्या इसका दंड हमको नहीं मिलेगा? हमारे देश में मान्यता प्राप्त कत्लखानों में लाखों मूक पशुओं की हर दिन बलि दी जा रही है और अहिंसक जनता मूक दर्शक बनकर देख रही है। पशुओं के वध पर अहिंसक देश के नागरिकों की चुप्पी चिन्तनीय है चाहे वह कोई भी हो कांग्रेस हो या भाजपा, निर्दलीय हो या अन्य दल हो उन्हें इस
राष्ट्रहित के मुद्दे को ठुकराना नहीं है अपितु भारत से मांस के निर्यात को रोकना है। आप किसी भी पक्ष के रहो लेकिन राष्ट्र के पक्ष को कभी नहीं भूलना है। कत्लखाने, पशु हत्या, मांस निर्यात से राष्ट्र का हित नहीं होगा, राष्ट्र का हित तो इनको बन्द करने में है।
यह भारत भूमि है, यह कृषि प्रधान देश है यहाँ वेदों पुराणों की पूजा होती है, यहाँ प्रत्येक प्राणी को अभयदान दिया जाता है। यहाँ बीजों को भी बचाया जाता है क्योंकि उनमें वृक्षों की आत्मा निवास करती है उनके पास भी जीवन होता है। लेकिन यह कितने खेद की बात है कि बीजों की भी रक्षा करने वाला देश आज जिन्दा जानवरों को मारकर उनका मांस बेच रहा है। मांस निर्यात के लिए पशुओं की हत्या मानवता के प्रति अपराध है। अत: पशु वध रोकने के लिए सब एक जुट हो जाओ। मांस निर्यात राष्ट्र का सबसे बड़ा घोटाला है। मांस का व्यवसाय बहुत बुरी चीज है। मांस निर्यात सामूहिक पाप की प्रक्रिया है। मांस निर्यात से आने वाला पैसा भी मांसाहारी है। मांस निर्यात की नीति भारत की नहीं है, मांस निर्यात भारतीय संस्कृति के खिलाफ है भारत का इतिहास अहिंसा और करुणा की कविता है, उसमें हिंसा का फल, क्रूरता की कोई जगह नहीं। मांस निर्यात राष्ट्रीय मुद्रा का अपमान है। जिसकी राष्ट्रीय मुद्रा में 'सत्यमेव जयते' का धर्म वाक्य लिखा है और वही राष्ट्र पशुओं का कत्ल करके उनका खून मांस निर्यात कर रहा है कत्लखाने खोल रहा है। राजनेताओं को अपनी राष्ट्रीय मुद्रा का अच्छी तरह से अध्ययन करना चाहिए और अशोक महान की उस मुद्रा को कलंकित नहीं करना चाहिए। वह उस सम्राट की मुद्रा है जिसने युद्ध का त्याग कर दिया था। हमने उसकी मुद्रा को अपना राष्ट्रीय चिह्न घोषित किया और मांस बेच रहे हैं यह राष्ट्रीय मुद्रा का अपमान है।
लोकतंत्र का कर्तव्य है कि वह भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए भारत से हो रहे मांस का निर्यात तत्काल बंद करे, और इसके लिए दलगत राजनीति से हटकर सभी राजनेताओं को एक जुट होना चाहिए। जिस प्रकार बहुमत के माध्यम से मंत्रिमंडल परिवर्तन किया जा सकता है उसी प्रकार देश के नीति निर्धारकों के सामने बहुमत एवं दृढ़ता के साथ अपना पक्ष रखें ताकि देश से मांस निर्यात पर अविलंब विराम लगे और वातावरण में सुखद परिवर्तन हो। भारत से मांस निर्यात पर रोक लगाना ही देश के विकास का मंगलाचरण होगा।
स्वतंत्रता देश के विकास के लिए प्राप्त की गई थी, विनाश के लिए नहीं। विकास किसका? आज तो ऋण का विकास देश में द्रुत गति से बढ़ता चला जा रहा है। देश विकासोन्मुखी है तो वह ऋण की अपेक्षा से है। जरा आप सोचें आपको क्या करना है देश को कर्जदार या ऋण मुत? याद रखिए! जितना-जितना पशु धन कटेगा यह भारत उतना ही कर्जदार, गरीब, गुलाम और बेरोजगार होगा। अत: मांस निर्यात रोकना ही राष्ट्र की सबसे बड़ी उन्नति है। देश के पशु धन को संहार करके
हिंसाचार के माध्यम से आज तक विश्व के किसी भी देश ने अपना विकास नहीं किया फिर भारत
पशु मांस की कमाई से भारत की गरीबी दूर नहीं हो सकती। देश की गरीबी का कारण हमारा विदेशों में रखा धन है। हम भारत में रहते हैं लेकिन अपना धन विदेशों में रखते हैं क्या भारत के ऊपर विश्वास नहीं? देश का धन विदेश में रखना ही देश की गरीबी और कंगाली का कारण है। भारत कंगाल हो रहा है। ऋण के भार से दब रहा है और देशवासियों का धन विदेशी बैंकों में सुरक्षित है। हम कैसे कहें कि हम अपने देश का विकास कर रहे हैं। अपने देश का धन यदि अपने देश में ही रहे तो आज की गरीबी नहीं है लेकिन मांस बेचकर विदेशी मुद्रा कमाने की लालच में देश को प्राकृतिक सम्पदा से खाली न करें। पशु धन को बचाए उसकी रक्षा करें यही आज की मौलिक आवश्यकता है।
आपके वोट में बहुत ताकत है आपके वोटों में ही सरकार बनती है क्योंकि यह प्रजातंत्र है। आप यह संकल्प करें कि हम वोट उसी को देंगे जो मांस निर्यात बंद करे, पशु वध रोके, कत्लखाने समाप्त करे। भारत प्रजातंत्रात्मक देश है जो अहिंसा और सत्यनिष्ठा के सिद्धांतों के आधार पर स्वतंत्र हुआ है। गणतंत्र व्यवस्था में प्रजा ही सरकार है, सरकार और अन्य कोई नहीं। आपको एक अहिंसावादी सरकार को चुनना है ताकि देश में हिंसा कत्ल का वातावरण न बने।
मांस निर्यात रोकने के मुद्दे को राजनीतिक मत बनाओ। यह तो राष्ट्रीय मुद्रा है, इनके पीछे राष्ट्र हित का सोच है व्यक्तिगत स्वार्थ का नहीं क्योंकि जहाँ स्वार्थ है वहाँ दुनियाँ की भलाई का विचार नहीं, स्वार्थी दुनियाँ का भला नहीं चाहता वह तो अपना मतलब साधता है दुनियाँ उसकी दृष्टि में नहीं। राष्ट्र के सच्चे हितैषी ही राष्ट्र की पीड़ा को समझ सकते हैं लेकिन जिनके पास स्वार्थी लिप्साएं हैं वे सत्ता पाकर के भी राष्ट्र की अस्मिता को कायम नहीं रख सकते। सरकार को सरकार चलाने के लिए हिंसा के तरीके नहीं अपनाना चाहिए क्योंकि सरकार हिंसा से नहीं चल सकती हिंसा से सरकार चलाने का तरीका सरकार को बेकार कर देगा। कत्लखाने खोलना क्या हिंसा नहीं है? मांस का निर्यात करना क्या हत्या नहीं है? अर्थ का इतना लालच मत करो कि देश की चेतन सम्पदा का ही विनाश हो जाए। सरकार को मांस निर्यात के खूनी व्यवसाय को बन्द कर देना चाहिए पशुओं को कत्ल करने का अधिकार हमको नहीं, हमको तो कर्तव्य के साथ उनका लालन-पालन करना चाहिए। मांस निर्यात से प्राप्त विदेशी मुद्रा के द्वारा भारत की गरीबी नहीं, अपितु गरीब अवश्य मिट रहे हैं। भारत के द्वारा ही आज भारतीयता नष्ट हो रही है क्योंकि आज भारत की दृष्टि धन पर है धर्म पर नहीं। मानवता का नाम धर्म है लेकिन धन मात्र नैतिकता है। जहाँ अहिंसा रहेगी वहाँ हरियाली रहेगी लेकिन आज तो हरियाली ही छिनती जा रही है हरियाली को खाने वाले जानवरों ने भी इतनी
हरियाली नहीं उजाड़ी जितनी की आदमी ने उजाड़ी। आज आदमी हरियाली भी खा रहा है और हरियाली को खाने वाले जानवरों को भी खा रहा है। कहाँ तक धरती में हरियाली रहेगी।
मनुष्य खचीला प्राणी है जानवर नहीं। यदि हम अपने खर्च कम कर लें तो उसी पैसे से इन तमाम पशुओं का संरक्षण हो सकता है। हमारी उन्नति के लिए इन मूकों का कत्ल मानवता के विरुद्ध है। मानवता का हनन करके राष्ट्र की उन्नति का कोई मायना नहीं है। जो व्यक्ति अधिकार की बात करता है उसको अधिकरण (आधार) की बात करना चाहिए। इस कृषि प्रधान भारत देश की एक लम्बी आबादी का अधिकरण (आधार) ही पशु सम्पदा है। बैलों से लगा किसान है और किसान से हिन्दुस्तान है, अत: किसी भी कीमत पर पशुओं का कत्ल उचित नहीं है। मांस का निर्यात भारत जैसे अहिंसा एवं अध्यात्मवादी राष्ट्र के लिए कलंक है। हमको आज अहिंसा और अध्यात्म की जरूरत है जिसके अभाव में हिंसा का दौर बढ़ रहा है।
Edited by admin