गाँधी जी को याद कर लीजिए, वे विदेश से वकालत पढ़कर आए थे, उसके बावजूद भी उन्होंने भारत की मर्यादा को नहीं छोड़ा। पढ़कर आए तो अपनी वेशभूषा को अपना लिया। अब सुनते हैं विदेशों में गांधी ड्रेस फैशन के रूप में अपनाई जा रही है, क्योंकि गांधी ड्रेस पहनने से हर तरह की स्वतंत्रता रहती है। उस ड्रेस में कहीं किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है। कब भागना पड़े, उठना-बैठना पड़े और हर मौसम में वह उपयुक्त रहती है, लेकिन पाश्चात्य ड्रेस जींस पहनने वाले न तो सही ढंग से बैठ सकते हैं, न उठ सकते हैं, न भाग सकते हैं, नीचे बैठने पर फटने का अंदेशा बना रहता है, किन्तु भारतीय संस्कृति की वेशभूषा में व्यक्ति हर हाल में निर्विकल्प बना रहता है और मर्यादा बनी रहती है। जिसमें किसी को भी शर्म नहीं आती है। आज आपकी क्या स्थिति हो गई है, न हाफ पेंट है, न फुल पेंट, देखने वालों को शर्म आती है, पहनने वाले बेशर्म बन रहे हैं। कई लोगों को ऐसे पहनावे के कारण रोग हो रहे हैं। युवाओ! जागो, स्वतंत्रता मिल गई है तो हाथ से बनी खादी जिसको हथकरघा से बने कपड़े कहते हैं, जो अहिंसक हैं, जो आरोग्यकारी हैं, स्वरोजगारी हैं, स्वतंत्रता के प्रतीक हैं, हर मौसम में उपयुक्त हैं, बेरोजगारी को हटाने वाले हैं, स्वाभिमान के प्रतीक हैं; ऐसे वस्त्र आप लोगों को तैयार करना चाहिए और उपयोग करना चाहिए।
हथकरघा से देश में रोजगार बढ़ेगा, बेरोजगारी कम होगी। बड़ी-बड़ी पढ़ाई करके चपरासी बनने की अपेक्षा श्रम करो, श्रमिक बनी, स्वाभिमान से जियो, न शोषित होओ, न शोषण करो। इसी कारण तो भारत सोने की चिड़िया था। बिना परिश्रम के वह पिंजड़े की चिड़िया बन गई है, जो पर के आश्रित हो गई है और भीख माँग रही है। माँगना भारतीय संस्कृति में अभिशाप माना गया है। भारतीय संस्कृति तो देने की संस्कृति रही है और दान को धर्म माना गया है किन्तु आप परिश्रम नहीं करेंगे, स्वयं उत्पादन नहीं करेंगे, स्वयं योग्य नहीं बनेंगे तो आप पर को क्या दे सकेंगे? परिश्रम करो और 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' जैसे सूत्रों के आश्रय से एक-दूसरे को सहयोग देकर अपने मानव जीवन को सार्थक करो।
ध्यान रखें, भारत का अर्थशास्त्र है। हथकरघा, कृषि, गौपालन, आयुर्वेद, प्राचीन शिक्षा, इसी से हम अपने देश की अर्थ व्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं।
-१५ अगस्त २o१६, भोपाल