(श्री दिगम्बर जैन चन्द्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़, (छ.ग.)
जून २o१७ में राष्ट्रीय चिंतक संत शिरोमणि
जैनाचार्य प.पू. गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज से
प्रिंट मीडिया एवं दृश्य मीडिया का संवाद)
पत्रकार - आचार्य श्री जी हथकरघा को लेकर आपने बहुत बड़ा प्रयोग स्वावलंबन बनाने के लिए किया। इस दिशा में काम को और बेहतर बनाने के लिए क्या किया जा सकता है?
आचार्य श्री - इस दिशा में काम बहुत आगे बढ़ सकता है, आवश्यकता है योग्य प्रशिक्षित प्रशिक्षकों की। उन योग्य प्रशिक्षकों की पूर्ति के लिए ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारणियाँ आगे आ रहे हैं और दान-दातार भी आगे आ रहे हैं। यह बहुत अच्छा काम है। सरकार स्वयं चाहती है कि इसको (हथकरघा को) आगे कैसे बढ़ाया जाए, किन्तु कहने मात्र से तो यह कार्य आगे बढ़ने वाला नहीं है और यह कार्य सरकार मात्र का नहीं है। वह कहाँ तक करेगी, किन्तु जो समाजसेवा करना चाहते हैं या कर रहे हैं उनके लिए ये दिशा निर्देश देना चाहता हूँ कि जो महिलाएँ घर से बाहर काम पर निकलती हैं तो उनके लिए समस्या खड़ी हो जाती है। बच्चों को सँभालना, शिक्षा देना, घर का काम करना, रिश्तों में सामंजस्य बनाना आदि कार्य सुनियोजित नहीं हो पाते और उनके जीवन में अशान्ति आ जाती है। यदि महिलाओं को प्रशिक्षण दे दिया जाए और वे घर बैठे आजीविका का काम करें तो उनके लिए सब कार्य सहज और सरल हो जाएगा। उनके जीवन के लिए बहुत बड़ा सहयोग हो जाएगा। ऐसे विचार आने पर समाज वालों को प्रेरित किया। ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारणियों को भी यह कार्य अच्छा लगा, तो सभी लोग इस कार्य को करने के लिए तैयार हो गए। अपनी सेवा, सहायता या दान योग्य व्यक्ति को दो ताकि वह खड़ा हो जाए, लेकिन पैसे से सहयोग कब तक देते रहेंगे? सरकार भी यही चाहती है कि बेरोजगारों को काम, श्रम या रोजी जिसे काम-धंधा कहते हैं वह मिलना चाहिए। साथ ही धंधा मात्र देने से भी काम नहीं चलेगा। उनका काम आगे चले और वे व्यवस्थित हो जाएँ। इसके लिए सहकार समिति की जरूरत है। समाज ने यह काम किया। इस क्षेत्र में प्रतिभास्थली शिक्षण संस्था की प्रतिभामणि शिक्षिकाओं ने भी इस काम को आगे बढ़ाने के लिए कौशल प्राप्त किया और प्रशिक्षण देना प्रारम्भ कर दिया है। शुरुआत में ९ हथकरघा खुले, फिर ४0 तक पहुँच गए। उनके उत्साह ने १o८ हथकरघा का विचार कर लिया और सीखने के लिए महिलाओं की संख्या बहुत आ रही है। इस उत्साह को देखते हुए जैन समाज ने उनकी आने-जाने की व्यवस्था बनाई। सब की समय की पाली बनाकर उन्हें काम दिया। प्रतिभास्थली के बच्चे भी हथकरघा सीखने में रुचि ले रहे हैं। उनमें ये प्रेरणा जागृत होना अच्छी बात है। १२वीं कक्षा के बाद वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकतीं हैं और माता-पिता की चिंता को दूर कर सकतीं हैं जिससे उनका महाविद्यालयीन अध्ययन सतत चलता रहे। घर में रहकर यह सब संभव है। बस, समाज में इस प्रकार की व्यवस्था बनाना आवश्यक है।इसी प्रकार चिकित्सा की भी बात है।