जिस दिन देश की कृषि समाप्त हो जाएगी, वहाँ दाने-दाने की भुखमरी मच जाएगी। देश की जिन्दगी कृषि पर आधारित है, मशीनों पर नहीं। सोना, चाँदी, हीरा मोती से हम अपना पेट नहीं भर सकते, पेट भरने के लिए कृषि चाहिए, अनाज चाहिए, फसल चाहिए। जब खेत में फसल खड़ी नहीं होगी तब भारत का क्या होगा? फिर हमारा क्या होगा? हमारे खेतों में फसल खड़ी है इसलिए हम भी खड़े हैं, यानि जीवित हैं। फसल के अभाव में चारों ओर भुखमरी मच जाएगी। देश की रक्षा के लिए कृषि की रक्षा अनिवार्य है और वह कृषि की रक्षा इन कीटनाशक दवाओं से नहीं होगी, रासायनिक जहरीली खादों से नहीं होगी। कृषि की रक्षा के लिए हमको अपनी प्राचीन कृषि प्रणाली अपनाना होगी। पहले समय में हमारे यहाँ खेत में जिस खाद का प्रयोग किया जाता था, वह गोबर खाद थी। गोबर की खाद जहाँ डाली जाती है, वहाँ की फसल भी अच्छी होती है और धरती की उत्पादन क्षमता का हास नहीं होता। प्रयोगों से यह भी पता चला है कि 'गोबर की खाद देने से गरमी के दिनों में खेत में उतनी नमी रहती है, जितनी लगभग डेढ़ इंच पानी बरसने से रहती है।”
हम गोबर की खाद का प्रयोग करें, गोबर की खाद से जमीन कभी नष्ट नहीं हो सकती, गोबर की खाद का प्रभाव पर्यावरण पर बहुत अच्छा पड़ता है। जो कभी भी नुकसानदायक नहीं है। यदि हमने अपनी भारतीय कृषि व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया तो इसके परिणाम बहुत बुरे होंगे। गाय और गोबर दोनों पर्यावरण के संरक्षक हैं, ये पृथ्वी के भार नहीं है। गाय जितना खाती हैं, उससे अधिक खाद देती है। यह प्रयोग द्वारा सिद्ध हो गया है कि जहाँ गाय-बैल आदि रहते हैं, उस स्थान पर यदि टी.बी. के मरीज को बैठा दिया जाए तो उसकी बीमारी ठीक हो जाती है। इन जानवरों का हमारे जीवन में बहुत बड़ा योगदान है। ये जानवर पर्यावरण के संरक्षक हैं, हमारा कर्तव्य है कि हम पशुओं की सुरक्षा करें, पशुओं को सुरक्षित रखकर ही पर्यावरण की सुरक्षा हो सकती है।
-१९९७, नेमावर