पत्रकार वार्ता, ९ सितम्बर २०१४, विदिशा चातुर्मास
पत्रकार - आचार्य श्री! आज अच्छी प्रतिभाओं का देश से पलायन हो रहा है इसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
आचार्य श्री - इसके पीछे तीन कारण हैं-पहला तो यह कि आज इन प्रतिभाओं के सामने जो दृश्य लाकर रखा गया है या रखा जा रहा है जिससे वे उसी को पाना अपने जीवन की उन्नति मानते हैं उसे पाना ही वो लक्ष्य बनाते हैं। मतलब अंग्रेजी भाषा और उसके माध्यम से होने वाली शिक्षा और उससे पढ़ने वाले श्रेष्ठ होते हैं एवं उन्हें उच्च पदों की प्राप्ति, पैसों की प्राप्ति, चमकदमक, मौजमस्ती करते हैं ऐसी मान्यता के कारण वे उसे श्रेष्ठ जीवन का लक्ष्य मानते हैं। इस कारण वे पलायन कर जाते हैं। दूसरा कारण अभिभावक लोगों की भी गलत धारणा बन गई है कि अंग्रेजी भाषा सर्वश्रेष्ठ है और आज विदेश जाना अनिवार्य है तभी बच्चे अच्छे बन पाएँगे। वे अच्छे का मतलब नहीं समझते, सिर्फ पैसे को अच्छा समझ रखा है इसलिए वे लोग अपने बच्चों को विदेश भेजते हैं चाहे पढ़ने के लिए हों या नौकरी के लिए, जबकि भारत में पहले भी श्रेष्ठ अध्ययन होता था, आज भी होता है। इतिहास उठाकर देखलें नालंदा विश्वविद्यालय, तक्षशिला विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय आदि शोध अध्ययन के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय थे। इस सब के बारे में विदेशी लोगों ने अंग्रेजी में लिखा है, इन सबके साक्ष्य हमारे पास मौजूद हैं। पढ़ने से लगा कि यह इतिहास आज लोग बिल्कुल भी नहीं जानते। आप सभी लोगों को इस इतिहास को पढ़ना चाहिए, जानना चाहिए तभी आपका स्वाभिमान जागेगा। तीसरा कारण यह है कि सरकारों ने प्रतिभावान विद्यार्थियों के लिए योग्य व्यवस्थाएँ नहीं बनाई हैं। उनके योग्य नौकरियाँ नहीं दी जातीं हैं। सरकारों ने ऐसे उच्च संस्थान खोल दिए हैं कि जिनके विद्यार्थियों का ज्ञान देश के काम नहीं आ रहा है। इस कारण वे प्रतिभाएँ पलायन कर रहीं हैं और फिर उन प्रतिभाओं को लाखों करोड़ों रुपये दिख रहे हैं। उनके अंदर देशभक्ति, स्वाभिमान, आत्मसमान, इतिहास के प्रति गौरव जगाया ही नहीं गया। एक मात्र भौतिक ज्ञान देकर बिगाड़ा जा रहा है। संस्कृति-संस्कार ही नहीं दिए गए, तो वे लालच में पलायन कर रहे हैं। वे भूल जाते हैं इन चंद रुपयों के पीछे उन्हें निचोड़ा जा रहा है। आप सभी को जागना होगा।
पत्रकार- आचार्य श्री! बच्चों को किस प्रकार बिगाड़ा जा रहा है?
आचार्य श्री - मैं यह कहना चाह रहा हूँ कि बच्चों की बात करने से पहले बच्चों के अभिभावकों में ऐसा लालच क्यों आ रहा है? इसका कारण है भाषा। भारतीय भाषा में कहाँ-कहाँ क्या लिखा है? यह तो आपको ज्ञात ही नहीं है। भारत में पहले कोई भी वस्तु बाहर से नहीं आती थी। ऐसी कोई वस्तु नहीं थी जो यहाँ से निर्यात नहीं होती हो। अच्छी से अच्छी सस्ती से सस्ती चीजें निर्यात होतीं थीं और पूर्णतः मौलिक, प्राकृतिक, उत्तम गुण वाली होतीं थीं। यहाँ पर व्यक्ति ऐसा कार्य करते थे कि उन्हें कभी नौकरी करने की सोचना ही नहीं पड़ता था। हर कोई उद्यम करने में विश्वास रखता था। आज उद्यम सामाप्त करके नौकरी के लोभ से विदेश भेजा जा रहा है। लूटने की पद्धतियाँ ऐसी लाकर के रखीं हैं कि लोग समझ नहीं पा रहे हैं और अपने जीवन को उसमें फँसा रहे हैं। यह सब संस्कृति से दूर करने के रास्ते हैं। नौकरी करने वाला धर्म-समाज-संस्कृति-परिवार से कट जाता है इसलिए सर्वप्रथम 'इण्डिया' को हटाकर' भारत' नाम लाना चाहिए।
पत्रकार - आचार्य श्री! अब जो सरकार है वह तो काफी मजबूती से अपनी पॉलिसियाँ (नीतियाँ) ला रही है?
आचार्य श्री - हम सरकार की बात इसलिए नहीं करना चाहते क्योंकि सरकार को बनाया किसने? आप लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि आपने योग्य कार्य करने के लिए उन्हें चुना है। उनको इस बात से अवगत कराना होगा। महसूस कराना होगा। १८वीं शताब्दी में लिखा गया है कि भारतीय शिक्षा पद्धति क्या थी? और उन विदेशी लोगों ने लिखा है कि भारत में कितना परिष्कृत विज्ञान था। आज का जो विज्ञान है उसका बीज भारतीय विज्ञान है। कोई व्यक्ति माने या नहीं किन्तु विदेशी विद्वानों ने लिखा है तो उसे मानना ही पडेगा। पहले भारत में लोह धातु इस प्रकार से तैयार की जाती थी कि उसमें जग नहीं लगती थी इस कारण शल्य चिकित्सा के उपकरण इसी के द्वारा तैयार किए जाते थे। ऐसा लोह तत्व का विज्ञान भारत के अलावा कहीं नहीं था और न है। उस समय भारत में 20-20 हजार लोह भट्टियाँ काम करतीं थीं। ऐसा नहीं था कि खदान खोदते जाओ और देश का माल विदेश भेजते जाओ। हर क्षेत्र में भारत की शक्ति अपरम्पार थी।
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