शून्य का आविष्कार हमारे आचार्यों ने किया है, शून्य की कीमत तभी होती है जब उसके साथ कोई अंक लगाया जाता है। हमारे जीवन में शून्य के साथ अंक शील की तरह हैं। जीवन में यदि शील सदाचार, नीति-न्याय नहीं है तो वह जीवन कागज के फूल की तरह होता है जिसमें सुगंध नहीं होती।
-११ अक्टूबर २०१६, मगलवार, भोपाल