आज अपने बच्चों को हमें स्वयं ही सही शिक्षा का ज्ञान कराने की जरूरत है, क्योंकि यदि भारत का भविष्य उज्ज्वल और सुरक्षित बनाना है तो संस्कारों की मजबूत नींव तो हम सब को मिलकर ही डालनी होगी।
शिक्षा प्रणाली का जो व्यवसायीकरण हो रहा है वो भविष्य के लिए अच्छे परिणाम नहीं दे सकता। अच्छे और लुभावने विज्ञापन देकर शिक्षा संस्थाएँ अच्छी शिक्षा का ढिंढोरा पीटती हैं, वो दूर के ढोल सुहावने सिद्ध होते हैं। शिक्षा और दीक्षा ये दोनों बहुत महत्वपूर्ण बिंदु होते हैं। इनमें किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं होना चाहिए।
हम अपने बच्चों को स्वयं ही जहर देने का काम आँख मूँदकर कर रहे हैं और उनके स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। विद्यार्थियों को जब तक शुद्ध आहार नहीं मिलेगा उनका शारीरिक और मानसिक विकास सम्भव नहीं है। हम से अधिक विवेक तो मूक प्राणियों में होता है जो सोच समझकर सामग्री को खाते-पीते हैं। अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी इस दिशा में अज्ञानी बने हुए हैं। कुएं और नदी का शुद्ध जल छोड़कर बंद बोतल का तत्व रहित जल पीने के आदी स्वयं भी बने हैं और बच्चों को भी बना रहे हैं। ये कौन-से पढ़े लिखे होने की निशानी है? जिसे आप बिसलरी (शुद्ध पानी) बता रहे हैं वो धीमे विष का काम कर रहा है क्योंकि उसमें जरूरी तत्वों का अभाव है। प्रासुक और छने जल को रोग का कारण बताया जा रहा है और तत्व रहित जल को पीने की सलाह खुद चिकित्सकों द्वारा दी जा रही है। मेरे द्वारा किये गए इन जटिल प्रश्नों का हल आपको स्वयं ही खोजना होगा तभी रोग रहित और योग सहित स्वस्थ भारत और सशक्त समाज के निर्माण की दिशा में आप सार्थक कदम बढ़ा सकेगे। सरकार की तरफ टकटकी लगाकर देखने की अपेक्षा आप स्वयं ही सरकार बनकर सामाजिक तानेबाने को दुरुस्त करने का उपक्रम प्रारम्भ करें।
-२१ सितम्बर २०१६, बुधवार, भोपाल