'शिक्षा और भारत'राष्ट्रीय परिचर्चा से पूर्व पत्रकार वार्ता
३ नबम्बर २o१६, भोपाल
आयोजक-शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नईदिल्ली एवं
श्री दिगम्बर जैन पंचायत कमेटी ट्रस्ट, भोपाल
पत्रकार - महाराज श्री! आज की जो शिक्षा है उसमें माँ बाप अपने बच्चे को ज्यादा से ज्यादा पढ़ा-लिखाकर नौकर बनाना चाहते हैं, उस पर प्रकाश डालेंगे क्या आप?
आचार्य श्री - हम यह कहना चाहेंगे कि ज्यादा पढ़ाई क्या होती है? पढ़ाई तो पढ़ाई है, जितनी शिक्षा आवश्यक है उतना पर्याप्त है। कुछ काम करोगे तो उम्र के हिसाब से अपने आप उसमें विकास होता चला जाएगा। मैं पढ़ाई का निषेध नहीं कर रहा हूँ, अभिभावकों को जितना पढ़ाना हो पढ़ाएँ, किन्तु यह विवेक अवश्य लगाएँ कि आपकी स्थिति-परिस्थिति क्या है? कुल-समाज-धर्म की परम्पराएँ-संस्कार क्या हैं? जीवन का उद्देश्य क्या है? जो शिक्षा नौकर बनाए वह शिक्षा शिक्षा नहीं कहलाती। शिक्षा तो वही है जो स्वाभिमान से जीने की कला सिखाए। नौकरी में स्वाभिमान कहाँ रहता है? सम्यक् शिक्षा वही है जो स्वावलम्बी बनाए, स्वावलम्बी के लिए व्यवसाय जरूरी है।
पत्रकार - आचार्य श्री ! आज की शिक्षा में प्रतिस्पर्धा होने के कारण युवक-युवतियाँ असामयिक काल-कवलित हो रहे हैं?
आचार्य श्री - यह प्रतिस्पर्धा आप लोगों ने तैयार की है शिक्षा में इस प्रकार की प्रणाली बना दी गई है कि बच्चे मनोवांछित सफलता न पाने के कारण घबरा जाते हैं, अवसाद में चले जाते हैं, क्योंकि उनके सामने माँ-बाप का भय बना रहता है। आप लोगों ने उनसे बहुत सारी अपेक्षाएँ जोड़ रखीं हैं। आप लोग इस प्रकार की प्रणाली छोड़ दीजिए तो अपने आप सब ठीक हो जाएगा।
पत्रकार - महाराज श्री! आज शिक्षा बहुत मँहगी हो गई है और सरकारी स्कूलों में पढ़ाई हो नहीं रही है? ऐसे में क्या करें?
आचार्य श्री - यह समस्या पैदा हो गई है, या कर दी गई है, यदि हो गई है तो मैं हिंदी भाषा को ठीक नहीं समझता हूँ। क्या अपने आप हो गई है? क्या भगवान की कृपा से हो गई है? हो कहाँ गई? शिक्षा को व्यवसाय बनाया गया है तो फिर मेंहगी कहाँ हो गई। वह तो की गई है और सरकारी स्कूलों में पढ़ाई हो नहीं रही है; यह कथन भी गलत है। जब पैसे वालों ने अपने बच्चे उन स्कूलों से निकाल लिए और स्टेंडर्ड के चक्कर में अंग्रेजी स्कूलों में डाल दिए है तो उन सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के बच्चे, डॉक्टरों और इंजीनियरों के बच्चे, नेताओं के बच्चे, बड़े अधिकारियों के बच्चे नहीं होने के कारण उन स्कूलों पर किन्हीं का ध्यान ही नहीं है कि पढ़ाई कैसी हो रही है और पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी कोई डर-भय नहीं है; इसलिए ऐसा हो रहा है।