(शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नईदिल्ली एवं श्री दिगम्बर जैन पंचायत कमेटी ट्रस्ट, भोपाल के सम्मिलित आयोजकत्व में ४ नवम्बर २o१६ को आचार्य श्री विद्यासागर के ससंघ सान्निध्य में शुभारम्भ जैन मन्दिर हबीबगंज, भोपाल)
चित्र अनावरण राज्यपाल बिहार श्री रामनाथ जी कोविन्द,रमेशचंद जी अग्रवाल, अतुल कोठारी जी ने किया और फिर दीप प्रज्ज्वलित किया। श्रीमती और श्री कोविन्द जी तथा अन्य अतिथियों ने गुरुवर के चरणों में श्रीफल समर्पित कर आशीष ग्रहण किया। सभी अतिथियों ने गुरुवर के करकमलों में शास्त्र भेंट किया। विद्या की परछाईयाँ नामक कृति का विमोचन किया गया। मंगलाचरण प्रतिभास्थली की बहनों ने किया।
कार्यक्रम संयोजक प्रो. वृषभप्रसाद जी जैन ने परिचर्चा की विषयवस्तु पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षक और छात्र दोनों ही लगातार सीखने का प्रयत्न करते हैं। आज की भौतिक शिक्षा ने संस्कारों को छिन्न-भिन्न कर दिया। प्राचीन परम्पराओं पर कुठाराघात किया गया इस प्रणाली के माध्यम से। सरकार नयी शिक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन करे उसके लिए ये दो दिवसीय मंथन का आयोजन है।
शिक्षा परिषद् के अतुल कोठारी ने कहा कि भारत में ही शिक्षा निहित है। शिक्षा के विभिन्न आयामों को सीखने दुनियाभर के लोग यहाँ आते थे आज विदेशों में जाते हैं। जब हम भीतर की ओर झाँकने का प्रयास करते हैं तो सभी समस्याओं का समाधान मिल जाता है, एक दूसरे पर दोषारोपण करते हैं जबकि सभी की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है शिक्षा की इस दशा के लिए। जातिवाद, भाषावाद की गांठों को खोलने की जरूरत है। सबका कल्याण हो ऐसी शिक्षा नीति बननी चाहिए। प्रत्येक नागरिक को राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, ऐसी शिक्षा की जरूरत है। शिक्षा की नींव को मजबूत बनाने की जरूरत है। शिक्षा को बदलना है तो पहले मातृभाषा को मजबूत बनाना होगा, विदेशी भाषा को थोपाना देश के नागरिकों के अधिकारों पर कुठाराघात है। जिस देश को अपनी मातृभूमि, मातृभाषा पर अभिमान नहीं होगा वो देश कभी विकास नहीं कर सकता है। जैन धर्म के इतिहास को शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। इस मंथन से हम अच्छा समाधान लेकर ही उठे ये भावना है।
लेखक संक्रान्त सानू ने कहा कि अभिभावक चाहते हैं कि बच्चे का भविष्य उज्ज्वल हो। अंग्रेजी प्रगति की नहीं दुर्गति की भाषा है। सभी विकसित देश अपनी मातृभाषा के आधार पर ही विकास की धारा में बह रहे हैं। हमें शिक्षा में मातृभाषा का विकल्प खोलना होगा तभी शिक्षा में क्रान्ति आएगी।
कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री रमेशचंद्र अग्रवाल ने कहा कि ये शिक्षा प्रणाली हमने नहीं बनाई अंग्रेजों ने थोपी है। अंग्रेजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना हम गर्व का विषय समझते हैं। भारत राजनीति के जाल में फैंस गया है इसलिए अंग्रेजी से मुक्त नहीं हो पा रहा। आज शिक्षा के साथ रोजगार की चिंता भी करना पड़ेगी। हम स्वयं अपनी भाषा में बड़े मंचों पर अपनी बात कहना प्रारम्भ करेंगे तभी तस्वीर को बदल सकते हैं। आज युवा योग्य हैं परन्तु भाषा की हीनभावना से जूझ रहे हैं। अपनी भावनाएँ अपनी मातृभाषा में ही अच्छे तरीके से कर सकते हैं। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल और आला अधिकारी आज गुरुवर के पास आ रहे हैं उसका एक ही कारण है सब भारतीय आध्यत्मिक ज्ञान को प्राप्त करना चाहते हैं।
इस अवसर पर बिहार के राज्यपाल श्री रामनाथ कोविन्द ने कहा कि मैं यहाँ आचार्य श्री की अमृतमयी वाणी सुनने आया हूँ। आज नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला हमारी प्राचीन शिक्षा के केन्द्र रहे हैं जिसमें दुनिया के लोग आते थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति को जाना और दुनिया में विस्तारित किया। तीर्थ परम्परा को आचार्य श्री आगे बढ़ा रहे हैं। मैं भी शिक्षा न्यास से जुड़ा रहा हूँ ये अच्छा काम कर रहे हैं। जिनका वजूद नहीं है वे देश को अपना अधिकार समझते हैं। सही मायने में भारतीय परम्परा में पढ़ने और गढ़ने की परम्परा रही है। जो हुनर सीखने मिल रहा है उसे आचरण में लाने की परम्परा रही है। आज शिक्षा के सुधारों में समाधान की जरूरत है और आचार्य श्री ने कहा है कि जो भारत का अतीत रहा है उसे छोड़ना नहीं है तभी शिक्षा को मजबूत बनाया जा सकता है। समाधान अतीत में ही छिपा है बस उसे उजागर करने की जरूरत है। भारतीय जब गाँव से शहर की ओर जाता है तो अपनी सजगता को, संस्कृति को लेकर चलता है।
अस्तित्व क्या है, उत्पत्ति कैसे है, ये जानना जरूरी है। लोग कहते हैं कि सरकार सुनती नहीं है, आपकी आवाज में दम होगा तो बहरी सरकार भी सुन लेती है। स्वर के मिलते ही व्यंजन में गति आ जाती है, आप स्वर बन जाएँ तो सरकार व्यंजन बन जाएगी। कर्ता यदि सरकार है तो कार्य की अनुमोदना आपको करना है। ७० वर्षों में सरकार ने यदि शिक्षा की दिशा में नहीं सोचा तो आप ही सरकार को बनाने बाले हैं। विद्यालय का अर्थ नहीं जान पाये तो ये चल क्या रहा है? क्यों स्कूल चलाए जा रहे हैं। आज बाबू बनने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका अभिप्राय मानसिक रूप से गुलामी करना है। सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी माँ को पत्र लिखकर कहा था कि ‘बाबू बनने से अच्छा है, मैं राष्ट्र सेवा करूं।' आज नौकरी में पैकेज दहेज की तरह बन गया है जिसे पाने के लिए युवा लालायित हो रहे हैं। जिस वाक्य में कर्ता स्वतंत्र न हो उस वाक्य का कोई अर्थ नहीं है। बुद्धि यदि खराब हो जाए तो फिर ठीक नहीं हो सकती। ज्ञान को सही विषय मिल जाए तो ज्ञान को सही दिशा मिल जाती है, नहीं तो विकृति आने से ऊपर वाला भी नहीं रोक सकता है।
हमारे यहाँ अंक से नहीं चलता, अनुभव से चलता है इसलिए अनुभव जरूरी है। सरकार सिंधु है जनता बिंदु है। बैठने का नाम सरकार नहीं होता है उसे तो जनता के हित में चलते रहना चाहिए। अपने अतीत को पुन: जागृत करने की जरूरत है। केवल वाणी का मंथन करने से नवनीत नहीं मिल सकता। विदेशी शिक्षा नीति ने भारत के इतिहास को पीछे धकेल दिया है। ७० वर्षों में भी मंथन से यदि कुछ नहीं निकला तो चिंता का विषय है। कर्ता का काम करने का है। जो अनुभवी लोग हैं उन्हें आगे आकर इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए। अनुभवी शिक्षाविद् इस दिशा में कार्य करें परन्तु इतिहास को सामने रखकर करें, अपने इतिहास की अच्छाईयों को उजागर करें तो स्वतंत्रता के साथ न्याय हो सकेगा। संस्कृति को संरक्षित करने पर ही सुख-शान्ति का अनुभव कर सकते हैं। आज श्रमिक बनकर ही हम राष्ट्र कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। भारत की युवा शक्ति विराट है उसे केन्द्रित करने की जरूरत है, उसे मूल तत्व से जोड़ने की जरूरत है। हम समय को भी बाँध सकते हैं यदि प्रतिभा का सही उपयोग करें तो।
-४ नवंबर २०१६, भोपाल