Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • राष्ट्रीय संवाद

       (1 review)

    (श्री दिगम्बर जैन चन्द्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़, (छ.ग.)

    जून २०१७ में राष्ट्रीय चिंतक संत शिरोमणि

    जैनाचार्य प.पू. गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज से

    प्रिंट मीडिया एवं दूश्य मीडिया के संवाद)

     

    पत्रकार - आचार्य श्री आप कन्नड भाषी हैं और आपने हिन्दी पर अपनी पकड़ बनाई, आप हिन्दी पर बहुत जोर दे रहे हैं, आपने प्रतिभास्थली शिक्षण संस्था में एवं अन्य दूसरे शिक्षण संस्थानों में भी हिन्दी माध्यम से पढ़ाई पर जोर दे रहे हैं, जबकि सम्पूर्ण देश या विश्व की बात करें तो वे अंग्रेजी भाषा की तरफ बढ़ रहे हैं, इससे आप कितने सफल हो पाएँगे?

     

    आचार्य श्री- जोर देने की बात नहीं है, वस्तुस्थिति है कि जो भी देश उन्नति कर रहे हैं वे अपनी भाषा के बल पर कर रहे हैं। अपनी भाषा को भुलाने से कभी भी उन्नति हो नहीं सकती। अपना भी एक इतिहास है सभी भारतीय भाषाएँ ऐतिहासिक हैं। विश्व में भारत एक ऐसा देश है जहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। उनको समाप्त करके एक विदेशी भाषा को ग्रहण करना, उसमें शिक्षा देना, संस्कार देना, जीवन बनाना संभव ही नहीं है। यह गलत धारणा है कि अंग्रेजी बहुत व्यापक है। उदाहरण आप सबके सामने है। रूस में, जर्मन में, जापान में, चीन में, इजराइल में, कोरिया में अनेकों ऐसे छोटे-बड़े देश हैं जहाँ पर अंग्रेजी नहीं है और वे विश्व में उन्नत श्रेणी में आते हैं। भारत को क्या हो गया? अपनी भाषा स्वीकारने में कौनसी बीमारी आ गई? ना अपनाने के कारण हमारा देश उन्नत नहीं हो पा रहा है। पढ़े लिखों की यह गलत धारणा बन गई है कि अंग्रेजी के बिना विकास नहीं हो सकता है, क्योंकि उन्होंने उसी भाषा में पढ़ा है। जब तक अपनी भाषा पर पकड़ नहीं होगी। तब तक आप उन्नत कैसे हो सकते हो? विचार करो जितने भी देश परतंत्र हुए थे वे स्वतंत्र होते ही उन्होंने अपनी भाषा पर पहला कदम रख दिया था और भारत को ७0 साल हो गए हैं, गलत धारणा में जी रहा है। यह आप भूल जाइए कि आपका चित अंग्रेजी भाषा में ही चल सकता है विदेशी भाषा में आपका चिंतन नहीं चल सकता। आप है। अपनी भाषा पर स्वाभिमान तो रखना ही चाहिए।

     

    पत्रकार - महाराज श्री! आपने मूकमाटी (महाकाव्य) हिन्दी में लिखा जबकि आप कन्नड़ भाषी होते हुए भी काव्य हिन्दी में लिख रहे हैं; इसके बारे में हम जानना चाहेंगे?

     

    आचार्य श्री - ऐसा है, हमने जहाँ शिक्षा-दीक्षा पाई वह स्थान हिन्दी का है। हमारे गुरुजी ने हमें हिन्दी एवं संस्कृत के माध्यम से पढ़ाई कराई, संस्कृत ग्रन्थों की हिन्दी में व्याख्या बताई तो हिन्दी में भाव बनते चले गए। हिन्दी अच्छे से पकड़ में आ गई, दूसरी बात यह सोची कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, उत्तरांचल, उत्तरप्रदेश, बिहार, में हिन्दी के माध्यम से अध्ययन चलता है। जब इन प्रान्तों में विधि-लाँ या न्याय-अन्याय की घोषणा हिन्दी भाषा में होती है तो फिर विचार आया कि इधर-उधर की भाषा में लिखने से क्या फायदा? जो अधिक लोग हैं उनको पहले तैयार करके देना श्रेष्ठ है। भारत की आधी आबादी इन प्रान्तों में ही बसती है। कन्नड़ में लिखेंगे तो उसमें संख्या कम है, कम लोगों को लाभ मिलेगा।इसलिए गुरु का ही अनुकरण किया।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now


×
×
  • Create New...