Jump to content
सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • मूकमाटी संगोष्ठी समापन सत्र और रविवारीय धर्मसभा

       (1 review)

    भोपाल। मूकमाटी संगोष्ठी का समापन सत्र सुभाष स्कूल मैदान में प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम प्रो. अमिता मोदी और प्रो. रश्मि जैन ने मूकमाटी के सन्दर्भ में विचार व्यक्त किए। प्रो. उमाशंकर शुक्ल ने कहा कि मानव मंगल की अनेक बातें इसमें कही गई हैं। प्रो. जे. के. जैन सागर ने कहा कि ये वैज्ञानिक तथ्यों से परिपूर्ण है। छत्तीसगढ़ राज्य शिखर सम्मान से विभूषित प्रो. चंद्रकुमार जैन राजनांदगाँव ने संचालन का कठिन और साहसपूर्ण कार्य अपने कन्धों पर दायित्व के रूप में सम्भाल रखा था। अगले वक्ता के रूप में डॉ. बारेलाल जैन ने आतंकवाद का जो सन्दर्भ मूकमाटी में दिया है वो दूरदर्शिता का परिणाम है। डॉ. सरोज गुप्ता ने भी अपने विचार रखे। डॉ. सुरेश सरल जी ने कहा कि गुरुवर ने इसमें धरती की तुलना माता की मार्दव गोद से की है। डॉ. शैलेन्द्र जैन ने कहा कि मूकमाटी में शैक्षणिक विचारों का समागम है।

     

    मूकमाटी गुजराती संस्करण के अनुवादक डॉ. भारत कपाड़िया ने भी विचार रखे। डॉ. सुदर्शनलाल जी बनारस ने इसमें धार्मिक तत्वों के समावेश की बात कही। वरिष्ठ समाजसेवी दिलीप मेहता की धर्मपत्नी डॉ. संगीता मेहता इन्दौर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मूकमाटी में जीवन का सम्पूर्ण सार है। अनुराधा शंकर ने कहा कि कवि सूर्य के समान होता है और निग्रन्थ, सत्य द्रष्टा के समान कवि हो तो वो महासूर्य के समान है। मूक भाषा का संगीत अद्भुत, अप्रतिम है, कुम्भ में प्रकृति, और समग्र सृष्टि है। साहित्यकार उज्ज्वल पाटनी ने इस अवसर पर कहा कि कुछ यक्ष प्रश्नों का सटीक उत्तर सिर्फ गुरुवर के ही पास है। ज्ञान के पथ पर आप से सभी आलोकित हैं फिर भी आप अभी भी प्रकाश की खोज में रहते हैं ये आपका बड़प्पन है। मूकमाटी महाकाव्य से परे है, काल खंड है। ऐसे महाकाव्य को पाने के लिए पात्रता होना जरूरी है। इस अवसर पर गुरुवर ने प्रवचनों में कहा कि इस गोष्ठी में विद्वानों ने तत्वों का उद्घाटन किया। जिह्वा लोभ के कारण रोग को निमंत्रण दिया जा रहा है और फिर चिकित्सकों को निमंत्रण दिया जा रहा है। जानबूझकर रोग को निमंत्रण देने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुणों के प्रति श्रद्धा भाव होना चाहिए, जो दुखित हैं, द्रवित हैं उनके प्रति आँखों में पानी आना चाहिए। पानी विज्ञान की देन नहीं है वो तो भीतर से प्रकट होता है। वो पानी एक सात्विक जल है जिसमें दया का प्रतिष्ठापन हुआ है। सब अपने अपने ढंग से रोते हैं, दूसरों को देखकर रोना प्रारम्भ कर देते हैं। ये मानसिक गतिविधियाँ कष्ट में हुए व्यक्ति को देखकर होनी चाहिए। अर्थ को कोशकारों ने द्रव्य कहा है, व्याकरणकारों ने उसे द्रवण शील बताया है। दूसरे दुखी व्यक्ति को देखकर भी द्रवित न होकर केवल अपने बारे में सोच रहा है। उन्होंने कहा कि पहले नामकरण भविष्य को उज्ज्वलता के हिसाब से किया जाता था। हमने भारत का नामकरण इण्डिया कर दिया। इण्डिया का अर्थ है अपराधी, क्रूर, लड़ाकू, पुराने ढर्रे का व्यक्ति, ये इसलिए जानबूझकर अंग्रेजों ने किया है। भरत चक्रवर्ती के नाम से ये भरत भूमि थी जिसे विदेशी प्रभावों ने गुलामी की मानसिकता वाला इण्डिया बना दिया। हम अपने नामकरण को, अपने प्राचीन इतिहास को स्वयं भुला रहे हैं। अंग्रेजियत मानसिकता के कारण प्रतिभा को दबा रहे हैं जो कार्य बुद्धि से करना चाहिए आज इंटरनेट के आदि बनकर कर रहे हैं।

     

    उन्होंने कहा कि पश्चाताप के पूर्व ही जागृत होना आवश्यक है। हम पूरब वाले हैं, ये पश्चिम वाले हैं, ये दक्षिण वाले हैं, सही दिशा का बोध हो जाए, सोई चेतना जग जाए, ये पुरुषार्थ तो करना ही पड़ेगा। स्वाभिमान के सूत्र, संस्कार की तरफ कदम बढ़ाने की जरूरत है। आस्था साहस की जननी होती है, परन्तु विदेशी शिक्षा की वजह से हम खान-पान, शुद्ध आहार से भी दूर हो रहे हैं। आपका तो संध्याकाल पूर्ण हो रहा है किन्तु नई पीढ़ी का प्रभातकाल प्रारम्भ हुआ है। आपकी यात्रा पूर्ण होने से आने वाली पीढ़ी की यात्रा पूर्ण नहीं होती। संध्या की लाली सुलाने वाली होती है और सुबह की लाली जगाने वाली होती है। मूकमाटी ने सबको बोलना सिखाया है खुद मौन रहकर। उसने रक्त का संचार चलायमान रखने के सूत्र दिए हैं। पेट ने पीठ से जब से मैत्री की है जिह्वा दु:खी हो गई है अर्थात् ज्यादा पेट हो जाए तो पीठ की तरफ देख नहीं पाते, बीमार हो जाते हैं, फिर जिह्वा भूखी रह जाती है।

     

    उन्होंने आगे कहा कि आज जो परिग्रह की होड़ लगी है, जो विदेशी बैंकों में धन जमा किया जा रहा है वो अन्धकार की ओर ले जाने वाला है। लज्जाजनक कार्य है काला धन जमा करना। आज हम लोगों के प्रमाद के कारण ही शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी का थोपा जाना भी लज्जाजनक है, पहले सारे शोध हिन्दी में किये जाते थे, आज अंग्रेजी में किये जा रहे हैं। वेद प्रताप वैदिक एक साहित्यकार हैं जिन्होंने विदेश में हिन्दी भाषा में शोध प्रबंध किया है क्योंकि अभिव्यक्ति, जो हिन्दी में हो सकती है वो दूसरी विदेशी भाषा में नहीं हो सकती है। पिता की भाषा  नहीं होती मातृभाषा होती है क्योंकि माता द्वारा जो ९ माह गर्भ में रखकर संस्कार दिए जाते हैं वो पिता से नहीं मिल पाते। सभी को अपनी मातृभाषा के प्रति अडिग रहना चाहिए। गवेषणा का अर्थ है चिंतन की धारा, गहराई तक पहुँचना। जो देशभक्त होता है वो चिंतन को मातृभाषा में ही प्रस्तुत करता है। हजारों ग्रन्थ जिस भाषा में लिखे गए हैं उस भाषा को लोप कर दोगे तो अपनी संस्कृति से युवा पीढ़ी को विमुख कर दोगे।

    -१६ अक्टूबर २०१६, भोपाल


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    रतन लाल

      

    हजारों ग्रन्थ जिस भाषा में लिखे गए हैं उस भाषा को लोप कर दोगे तो अपनी संस्कृति से युवा पीढ़ी को विमुख कर दोगे।

    • Like 1
    Link to review
    Share on other sites


×
×
  • Create New...