जो रहीस का बच्चा होता है वो रहीसी के साथ पढ़ाई करता है। पड़ोस का बच्चा साधारण परिवार का था वो भी पढ़ाई करता था, उसके पास कोई विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं थी। बल्कि वह सरकारी बिजली के खम्बे की टिमटिमाती रोशनी में पढ़ाई करता था। जब परीक्षा का परिणाम आता है तो रईस बच्चा कमजोर परिणाम लाता है और गरीब बच्चा शतप्रतिशत परिणाम लाता है। आज लगभग भारत की यही स्थिति है। बिना श्रम के अच्छे परिणाम की कल्पना की जा रही है जबकि अच्छे परिणाम के लिए श्रम और पुरुषार्थ की सबसे ज्यादा महत्ता है।
सही दिशा में पसीना बहाते जाओ क्योंकि पसीना न बहे तो अस्पताल जाना पड़ता है। पसीना बहाने से स्वास्थ्य और मन दोनों अच्छे रहते हैं।
अपने जीवन में प्रयोग प्रारम्भ कर दें, प्रमाद न करें और कार्य का लक्ष्य और गति निर्धारित कर आगे बढ़ने का क्रम शुरु करें। विवेक पूर्ण निर्णय लें क्योंकि विवेक से ही सार्थक फल की प्राप्ति होती है। आज विवेक की बहुत कमी होती जा रही है क्योंकि वर्तमान शिक्षा में विवेक सिखाया ही नहीं जाता। स्पर्धा से नहीं बल्कि साफ मन से परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रयास करें, कोई सिफारिश न करें-न करवायें, कोई माँग न करें, बस, अपने उत्कृष्ट कार्य करने का पुरुषार्थ करें। मन का काम न करना बल्कि मन से काम लेना; यही विवेकवान होने का प्रमाण है। काम को रोकने से काम नहीं रुकता बल्कि मन को रोकने से काम होता है, अपने अनुसार मन को चलाओ, मन के अनुसार मत चलो। मन को कर्मचारी बनाओ, उसे अपने नियंत्रण में रखो। उसे अपने ऊपर हावी मत होने दो। मन का काम नहीं करना बल्कि मन से काम लेना। ये बात कौन सिखाए? माँबाप तो स्कूल में डाल देने के बाद निश्चिन्त हो जाते हैं और स्कूल वाले धन के सहारे हैं। बच्चा मन से काम लेने लगेगा, तो धन कहाँ से आएगा? विचार करो ये शिक्षा पद्धति क्या है?
-३० अगस्त २०१६, भोपाल