एक बार में कोई भिखारी से अमीर नहीं बनता बल्कि धीरे-धीरे काम बनते हैं और प्रयासों से बनते हैं। भूमिका बनाने की आवश्यकता है, चिंतन की आवश्यकता है और उसके साथ ही अपने आदशों को जीवन के सामने रखने से काम में जल्दी सफलता मिलती है। महापुरुषों ने सभी तूफानों, बाढ़ों और वेगों में अपने पुरुषार्थ से सामना करके उन्हें दरकिनार किया है। जो आदर्शवादी जीवन हमारे पूर्वजों ने जिया है वही हमें संघर्षों के लिए प्रेरित करता है। उनके अनुभव, सूझबूझ, संकल्प, दृढ़ता; उनकी अनुपस्थिति में भी हमारे काम आ रही है, उनके विचार, उनके द्वारा बताए गए संकेत और सूचनाएँ हमारे लिए पथ-प्रदर्शक का काम कर रही हैं।
सावधानी पूर्वक चलते जाएँ वातावरण आपके अनुकूल स्वयं ही निर्मित होता जाएगा। अच्छे मार्ग का अनुकरण करने पर ही मंजिल को पाया जा सकता है। जो प्रवाह है, परम्परा है उसकी गति रुकनी नहीं चाहिए निरन्तर चलायमान रहें पीछे लौटने का या बदलने का उपक्रम न करें।
-१ सितम्बर २०१६, भोपाल प्रवचन