ओवर कान्फीडेन्स मात्र मनुष्य में ही पाया जाता है, जानवरों में नहीं। जीवन के लिए कान्फीडेन्स चाहिए ओवर कान्फीडेन्स नहीं। पाप करने में मनुष्य जितना आगे बढ़ जाता है, उतना जानवर नहीं, सबसे अधिक क्रोध करने में, सबसे अधिक अहंकार करने में, सबसे अधिक छल कपट करने में और सबसे अधिक लालच करने में मात्र मनुष्य ही आगे रहता है जानवर नहीं, मनुष्य क्या-क्या नहीं करता, सभी कुछ तो करता हैं, इस मनुष्य ने सबको सुखा दिया है और स्वयं ताजा रहना चाहता है, यह कैसा मनुष्य है जो हरी को समाप्त करके हरियाली को चाहता है, स्वयं टमाटर की तरह लाल रहना चाहता है और दूसरों को काला करने की सोचता है। यह मनुष्य ही अतिक्रमण करता है फिर प्रतिक्रमण करता है। यह अनुसंधान तो करता है अतिसंधान भी करता है। इस प्रकार यह मनुष्य इस सृष्टि में नाश और विनाश के काम करता है। आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य को अतीत के समस्त पापों का प्रायश्चित कर लेना चाहिए और अपनी आत्मा को पाप से दूर कर लेना चाहिए और हमेशा-हमेशा पाप से घृणा करना चाहिए, पापी से नहीं।
-१९९७, नेमावर