शंकर का नन्दी कत्लखानों में कट रहा है और आप शंकरजी के मंदिर में पूजा कर रहे हैं। यह ठीक नहीं, अब मंदिर नहीं, कत्लखाने में कट रहे शंकर के नन्दी को बचाओ, यही सबसे बड़ी शंकर की पूजा है। पशु वध रोकना ही सबसे बड़ी पूजा है। पूजा के लिए मंदिर अनिवार्य नहीं। मंदिर तो हम अपने अंदर ही बना सकते हैं, यदि हमारे दिल में करुणा और अहिंसा की वेदी बनी है तो समझ लो अवश्य तुम्हारे अन्दर परमात्मा का मंदिर बना हुआ है और तुम उस परमात्मा की पूजा कर रहे हो। हम आज मंदिर में पूजा कर लेते हैं और समझ लेते हैं कि हमने परमात्मा को खुश कर लिया। नहीं, नहीं, जब तक हमारे अन्दर से हिंसा, क्रूरता, बर्बरता निकल नहीं जाएगी तब तक हम अपने भीतरी भगवान को नहीं समझ पायेंगे। अब मंदिर में जाकर भगवान की पूजा करने की अपेक्षा, जो कत्लखानों में पशु कट रहे हैं उन पशुओं की हत्या रोको, उनकी जान बचाओ, यही सबसे बड़ी पूजा है।
पशुओं की रक्षा के लिए उनके संरक्षण के लिए हमको अपने गांव में गौशाला का अवश्य निर्माण करना चाहिए। गौशाला भी मंदिर से कम नहीं है, उस गौशाला में भी आपको परमात्मा के दर्शन हो सकते हैं, वहाँ आपकी पूजा हो सकती है, वहाँ भी आपका भजन हो सकता है। अहिंसा के दर्शन आपको गौशाला में भी हो सकते हैं इसलिए आप गौशाला का अवश्य निर्माण करें। दूसरी बात यदि आपके घर में गाय, बैल, भैंस आदि जानवर हैं और जब वे वृद्ध हो जाते हैं तो आप उनको बेचें नहीं। यदि आप बूढ़े गाय-बैल आदि पशुओं को बेचते हैं तो अवश्य आप पाप के भागीदार हैं क्योंकि वे बूढ़े जानवर कसाई के यहाँ जावेंगे और वह उनका कत्ल करेगा और मांस बेचेगा। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हमने जिनसे जीवनभर काम लिया, उनसे खेती करवाई, उनका दूध पिया, अब उनको अपने माता-पिता के समान पालन पोषण करें, यही सबसे बड़ा धर्म है।
-१९९७, नेमावर