खून, मांस बेचकर, कत्लखाने खोलकर, पशुओं का कत्ल करके क्या आप ईश्वर से प्रार्थना करने के काबिल हैं? क्या आप ईश्वर से राष्ट्र की सुख समृद्धि की दुआएँ माँग सकते हैं? किस मुँह से माँगोगे? किस मन से माँगोगे? किन भावनाओं से माँगोगे? ईश्वर की उपासना करने वाले देश में कत्लखानों की क्या आवश्यकता है? ईश्वर की उपासना तो हिंसा, कत्ल से घृणा कराती है, सभी जीवों को जीने का सन्देश देती है, सभी से प्रेम, स्नेह, वात्सल्य सिखाती है। कत्लखाने खोलना, मांस का निर्यात करना तो धर्म का अपमान है। सरकार को किसी भी धर्म का अपमान करने का अधिकार नहीं, कोई भी हिंसा को अच्छा नहीं कहता, इन कत्लखानों से धार्मिकता कम हो रही है। इन कत्लखानों से समाज को क्या शिक्षा मिलेगी, समाज तो पशुओं की रक्षा के लिए, पशु सेवा के लिए पशु संरक्षणालय बनाता है, गौशाला बनाता है और सरकार कत्लखानों का लाइसेंस देती है। मांस नियति से धार्मिक भावनाएँ आहत हो रही हैं।