माँस निर्यात करना सबसे बड़ा घोटाला है लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि इस महा घोटाले को कोई घोटाला नहीं समझ रहा है और इसके विषय में कोई आवाज नहीं उठा रहा है। देशवासियों का यह पहला कर्तव्य है कि वे सबसे पहले माँस नियति के हिंसक घोटाले को बंद करवायें, जब तक पशु हत्या का घोटाला रुकेगा नहीं, तब तक यह भारत अपना विकास नहीं कर सकता। भारत का विकास पशु हत्या को रोकने में ही है।
इन जानवरों को मारकर हम कैसे जिंदा रह सकते हैं? इन गायबैल इत्यादि को फसल की तरह नहीं उगाया जा सकता। पेड़-पौधों को तो उगाया जा सकता है लेकिन इनको उगाया नहीं जा सकता। भारत के अपने आदर्श हैं लेकिन मांस बेचकर भारत ने अपने सारे आदर्श मिटा डाले। आदर्श के नाम पर उसके पास कुछ नहीं बचा। भारत को पुन: उन संस्कारों को जीवित करने की आवश्यकता है, जिनको वह भूल गया है, यदि इन अहिंसा के संस्कारों को जीवित नहीं किया गया तो हिंसा का प्रलय हम सबको तबाह कर देगा। अत: हमको मांस निर्यात बंद करके ही अहिंसा के संस्कारों को जीवित करना है।
भले आप राम, महावीर को याद न करो लेकिन दया को याद रखो क्योंकि जहाँ दया है वहीं राम हैं, वहीं महावीर हैं। दया ही राम है, दया ही महावीर है। आज भारत के पास दया नहीं रही इसलिए वह मांस निर्यात जैसे खूनी कर्म करने लगा अन्यथा दूध का देश खून क्यों बेचता?
-१९९७, नेमावर