भारतीय संस्कृति में दृश्य का नहीं, दृष्टा का मूल्य है, जड़ का नहीं चेतन का मूल्य है, 'पर' का नहीं 'स्व” का महत्व है। आज हम अपनी संस्कृति को लुटा रहे हैं, मिटा रहे हैं, मात्र चंद चाँदी के टुकड़ों में। ये गाय, बैल, भैंस इत्यादि जो जानवर हैं ये जीव हैं, चेतन हैं। चेतन-धन को नष्ट करके जड़-धन की कमाई करना, राष्ट्र को समाप्त करना है। जीने का अधिकार सबकी है। यह हमारा स्वार्थ है कि हमने जानवरों को यूजलैस कह दिया। जीवन किसी का हो चाहे वह जानवर का हो या आदमी का, वह कभी यूजलैस नहीं होता। यूजलैस तो हमारा स्वार्थ होता है, हमारा अज्ञान होता, अन्याय होता है। हमारे यूजलैस स्वार्थ ने जानवरों को यूजलैस कह दिया जिसका परिणाम है कि भारत आज मांस का व्यापार करने लगा।
-१९९७, नेमावर