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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • धर्म : हिंसा और अशान्ति का विरोधी है

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    धन साधन है जबकि धर्म साधना है, धन पेट के लिए है, धर्म शान्ति के लिए है, धन से तो हमारा पेट भरता है लेकिन शान्ति पेट भरने से नहीं मिलती क्योंकि पेट शान्ति का स्थान नहीं, शान्ति का स्थान तो आत्मा है और धर्म आत्मा की खुराक है। इसलिए जीवन में धन के साथ-साथ धर्म भी होना अनिवार्य है। धर्म और धर्म के स्वरूप को समझे बिना हम अपने इष्ट की प्राप्ति नहीं कर सकते।

     

    धर्म हमको गुनाहों से बचने का संकल्प देता है एवं आत्मिक उत्थान की ओर ले जाता है। धर्म हिंसा और अशान्ति का विरोधी है, वह हिंसा को कभी पसंद नहीं करता क्योंकि हिंसा अशान्ति देती है। दुनिया का कोई भी प्राणी हो उसकी पहली मांग आत्मशान्ति ही होती है। वह अतिरिक क्लेशों से बचना चाहता है, यह बात अलग है कि वह शान्ति के यथार्थ मार्ग को न समझ, अशान्ति की पगडंडी में भटकता रहता है। धर्म जीवन विज्ञान है। मानव जाति आज संकट में गुजर रही है क्योंकि उसने धर्म को ठुकराया है, इसीलिए वह ठोकर खा रही है। यदि हम अपना सर्वागीण चहुमुखी विकास चाहते हैं तो हमको अहिंसा धर्म की वेदी पर अपना माथा टेककर जीवन में उसको ट्रान्सलेट करना होगा।

    -१९९७, नेमावर


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