जो व्यक्ति अपने लिए रोता है, वह स्वार्थी कहलाता है लेकिन जो दूसरों के लिए रोता है, वह धर्मात्मा कहलाता है। यदि हम दूसरों के लिए रोना सीख लेते हैं तो बहुत से लोग हँसने लगेंगे। धर्म को समझने के लिए सबसे पहले मंदिर जाना अनिवार्य नहीं अपितु दूसरों के दु:खों को समझना पहले अनिवार्य है परन्तु जब तक हम हमारे दिल में किसी को जगह नहीं देंगे तब तक हम दूसरों के दु:खों को नहीं समझ सकते, चाहे वे मनुष्य हों या पशुपक्षी आदि। पहले दिल में जगह दें जमीन में नहीं, जमीन में जगह देना कोई जगह देना नहीं है; यह तो सभी दे सकते हैं लेकिन दिल में जगह देना सबके वश की बात नहीं। दिल में जगह वही दे सकता है जिसका हृदय विशाल है। छोटे दिल वाला तो मात्र जमीन में जगह देता है, दिल में नहीं।
-१९९७, नेमावर