यह भारत भूमि है, यह कृषिप्रधान देश है। जहाँ वेदों, पुराणों की पूजा होती है, यहाँ प्रत्येक प्राणी को अभयदान दिया जाता है, यहाँ बीजों को भी बचाया जाता है क्योंकि उनमें भी अंकुर का जीवन होता है, वृक्ष का विकास होता है। जीवन की रक्षा ही भारतीय संस्कृति है लेकिन आज यह भारत किस उन्मार्ग पर जा रहा है इसका बड़ा दु:ख है। बीजों को भी कष्ट न पहुँचाने वाला यह भारत आज बड़े-बड़े गाय, बैल, भैंस इत्यादि जिन्दा जानवरों को कत्ल करके उनका मांस, खून बेच रहा है। यहाँ की गाय भी गीता से कम पवित्र नहीं है लेकिन इस भारत ने उस पवित्र गाय को भी कत्ल करने का घिनौना कुकृत्य प्रारंभ कर दिया है। गाय का खून, मांस बेचकर विदेशी मुद्रा कमा रहा है, यह हत्या का काम भारत को चौपट कर देगा। किसी की हत्या करके, खून करके हम अपने खून के जीवन को सुरक्षित नहीं रख सकते। इसके लिए हमको भारत से मांस का निर्यात तुरन्त बंद कर देना चाहिए।
भारत की अहिंसा का आदर्श आज भी हमारे शास्त्र पुराणों में सुरक्षित है। यह वह भारत है, जहाँ यज्ञ-हवन की पूजन सामग्री के लिए और अग्नि में होम के लिए भी यह कहा जाता था कि 'अजैर्यष्टव्यम्' अर्थात् यज्ञ की अग्नि में उन धानों (बीजों) की आहूति करो जो धान तीन वर्ष पुराने हैं, जिनमें ऊँगने, अंकुरित होने की शक्ति नहीं रही है, उन निर्जीव धानों (बीजों) का अग्नि में हवन करो। यह है भारतीय संस्कृति जहाँ बीजों को भी अग्नि में नहीं डाला जाता लेकिन आज भारत की वह आदर्श संस्कृति कहाँ गायब हो गई? आज तो जिन्दा जानवरों को यांत्रिक कत्लखानों में, मशीनों में काटा जा रहा है, ये कत्लखाने प्रतिदिन लाखों की संख्या में पशुओं की बलि ले रहे हैं, इतना ही नहीं करंट के द्वारा जानवरों को मारा जा रहा है और यह सब कर रही है हमारी सरकार। अनुमति देना ही कार्य करने के बराबर है।
सोना, चाँदी, हीरा, मोती का निर्यात करने वाला यह भारत, आज खून, मांस, हड्डी का निर्यात कर रहा है। इन जानवरों को मारकर के, उनका मांस निर्यात करके यह भारत कभी भी अपनी उन्नति नहीं कर सकता। राष्ट्र को कत्लखानों की आवश्यकता नहीं, भारत को पशुशालाओं की आवश्यकता है, गौशालाओं की आवश्यकता है, दुग्ध शालाओं की आवश्यकता है। गायों को मारकर सरकार विदेशियों के पेटों में गौमांस डाल रही है और यहाँ दूध की भुखमरी पड़ रही है, देश में नकली दूध का प्रचलन बढ़ रहा है। जिस नकली दूध से घातक बीमारियाँ बढ़ रही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने पशुओं को सुरक्षित रखें ताकि हमको शुद्ध दूध और खाद की प्राप्ति हो और जहरीले नकली दूध, घी, खाद से बचे रहें। बस, इस ओर आँखें खोलने की जरूरत है।
-१९९७, नेमावर