जो जितना नपा-तुला होता है उसका उतना महत्व होता है।सीमा रेखा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। जो निर्धारित मापदंड बनाए गए हैं उनका पालन होना चाहिए। जो सीमा का उल्लंघन करता है उसे दंड का भागी बनना पड़ता है। अतिथि सत्कार आपका परम धर्म है परन्तु आगंतुक अतिथि या भिक्षुक सीमा रेखा पार करे तो सावधान हो जाना चाहिए।
लक्ष्मण जी सीमा रेखा बनाकर गए, उसकी मर्यादा को पार किया सीता ने; तो उसका अपहरण हो गया। वैसे ही हम यदि सरकार की सीमा रेखा का उल्लंघन करते हैं तो हमारे सुख-चैन का अपहरण हो जाता है। यदि हम प्रकृति की सीमा रेखा को तोड़ते हैं तो हमारे मानव जीवन का हरण हो जाता है। हमारी सृष्टि को नुकसान पहुँचता है। प्रत्येक क्षेत्र में सावधानी-मर्यादा को रखना अनिवार्य है चाहे परिवार हो, समाज हो, नगर हो देश हो या विश्व हो तभी वहाँ शान्ति रह सकती है।
कर्म की रेखा के कारण संसार में महापुरुषों को भी बहुत कुछ भोगना पड़ता है। ये सीख हमें रामायण की कुछ घटनाओं से मिलता है। सबके जीवन में परिवर्तन पुरुषार्थ के अन्तर्गत किया जा सकता है। अपने पुरुषार्थ से कर्म के लेखे को भी परिवर्तित किया जा सकता है, परन्तु वो पुरुषार्थ तभी प्रारम्भ हो सकता है जब परमार्थ प्रारम्भ होता है। आदर्श महापुरुषों के मार्ग का अनुसरण करके हम अपने जीवन को आदर्शमयी बना सकते हैं।
जब शनिवार आएगा तभी तो रविवार आएगा। कभी सोमवार के बाद रविवार नहीं आता इसलिए अच्छे समय का भी इंतजार करो क्योंकि वो भी निर्धारित समय परं आता है। समय से पहले महाप्रलय को नहीं बुलाना चाहिए, वरना अपनी आँखों के सामने अपने मानव जीवन को मिटते देख नहीं पाओगे।
-२२ अगस्त २o१६, भोपाल