बन्धन किसी को भी स्वीकार नहीं होता मुझे भी नहीं है लेकिन धर्म के लिए बन्धन भी मैं स्वीकार कर सकता हूँ क्योंकि धर्म का बन्धन कोई बन्धन नहीं है। यदि अहिंसा के लिए हमें बन्धन भी स्वीकार करना पड़े तो कर लेना चाहिए लेकिन हिंसा के लिए स्वतंत्रता भी ठीक नहीं है। देश में आज अहिंसा की धारा बहनी चाहिए थी, न्याय की धारा बहनी चाहिए थी लेकिन यह कहाँ हुआ? सत्ता की भूख सत्य को नष्ट कर देती है। आज बहुमत के माध्यम से देश चल रहा है, बुद्धिमत्ता के बल पर नहीं। पचास वर्ष का इतिहास हमारे सामने है अब आप लोगों को सोचना है कि क्या करना है, क्या उचित है? अहिंसा को भूलकर आजादी की स्वर्ण जयन्ती का जश्न मनाना कोई मूल्य नहीं रखता। आज
स्वर्ण जयन्ती की सार्थकता है।
-१९९७, नेमावर