भारतीय संस्कृति एक सभ्य और शालीन सुसंस्कृत संस्कृति है। इस संस्कृति में वेशभूषा का अपना महत्व है। मनोविज्ञान इस बात पर प्रकाश डालता है कि व्यक्ति के कपड़ों को देखकर उसकी मानसिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
आजकल तो फटे कपड़े पहनना फैशन बन गया है। कपड़े फाड़-फाड़ कर पहने जा रहे हैं। समाज के प्रतिष्ठित वर्ग के बच्चे या राजनेताओं के बच्चे ऐसी वेशभूषा पहनते हैं जिनको देखकर शर्म आ जाए। २-३ जगह कपड़े को फाड़ देते हैं और उसमें या तो थिगड़ा लगा हुआ है या नहीं लगा हुआ है। उसमें कई सारे जेब होते हैं। उनको देखकर लगता है कि ये आखिर क्या दिखाना चाहते हैं? क्या करना चाहते हैं? ये तो लोकतंत्र नहीं है। निमित्तज्ञानियों ने लिखा है-इस प्रकार यदि कोई फटा हुआ कपड़ा पहनता है, तो वह मंगलकारी नहीं होता, वह दरिद्रता लाता है। भले गंदा कपड़ा पहन लेना ठीक है, किन्तु फटा हुआ तो शुभ नहीं माना गया। आप सभी यदि सज्जन हैं, सज्जनता की कोटि में बने रहना चाहते हैं, तो बच्चों को ऐसे फटे हुए कपड़े की फैशन करने से रोकें, क्योंकि यह विदेशी कूटनीति हो सकती है कि भारतीय लोग फटे हुए कपड़े पहनेंगे तो भारत नीचे गिर जाएगा। संस्कार विहीन होकर संस्कृति को खो देगा और हमारा मार्केट तैयार हो जाएगा। विदेशी शिक्षा का यही फल है। मैं किसी की आलोचना नहीं करना चाहता, किन्तु सांस्कृतिक समालोचना से अपने आपको नहीं बचा पा रहा हूँ।
आज आप सब लोग संकल्प लें कि कोई भी व्यक्ति स्वयं और अपने बच्चों को फटे हुए वस्त्र; भले ही वे सस्ते क्यों न हों, या बहुत सुन्दर, बहुत अच्छे ही क्यों न हों, नहीं पहनेंगे, नहीं पहनाएँगे, क्योंकि आप सभी लोग अपना अमंगल नहीं चाहते हैं। अष्टांग निमित्त में फटे हुए वस्त्र भी एक निमित्त हैं। भारतीय वेशभूषा अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। कमर में यदि दर्द हो तो कमर कसो जैसे गांधी जी धोती पहनते थे। वे कहते थे भारत को भारत ही रहने दीजिए, उसको विदेश न बनाया जाए। आज जो कुछ भी बचाखुचा रह गया है उसको फैकफाक करके भारतीयता की ओर दृष्टिपात करें। मैंने जो कुछ भी कहा वह श्रुति के निमित से कहा। आप जागृत हो जाएँ।
-३१ जुलाई २०१६, भोपाल