करुणा की तस्वीर यदि आपके हृदय पटल में छप जावे तो फिर कलेण्डर छपवाने की कोई आवश्यकता नहीं। लेकिन आज करुणा का तो अभाव हो गया, करुणा के अभाव में ही भारत गायों का वध कर रहा है। क्या यह भारत है? ऐसी-ऐसी गायें पकड़ी गई हैं जो कत्लखाने कटने जा रही थीं, जिन्होंने बाद में बछड़ों को जन्म दिया, वे आज दूध दे रही हैं। गर्भवती गायें भी कटने लगी भारत में!!! यह भारतीय संस्कृति नहीं, भारतीय संस्कृति में प्रत्येक प्राणियों पर अभय का वरदान दिया जाता है। कोई भी पार्टी हो, सत्ता हो, हमको मतलब नहीं लेकिन देश में हिंसा नहीं होना चाहिए। मांस निर्यात रुकना चाहिए। हमको चाहिए वह व्यक्ति जो देश का पक्ष लेता है। आज कोई इस पक्ष का है, कोई उस पक्ष का है, एक-दूसरे के लिए दोनों विपक्ष के हैं, पक्ष के कोई नहीं फिर भी आप किसी भी पक्ष के रहो लेकिन देश का पक्ष गौण नहीं होना चाहिए। आप देश का पक्ष मजबूत करो, पार्टी का नहीं।
भारत की दशा आज क्या हो गई? अहिंसा का नाम लेने पर लोग हँसते हैं, संस्कृति तो मिटी प्रकृति भी मिट रही है। संस्कृति से भी अच्छी प्रकृति मानी जाती है क्योंकि संस्कृति सभ्यता है और प्रकृति स्वभाव है। अपने स्वभाव को पहचानो, अपनी संस्कृति पर गौरव करो, अपनी सभ्यता पर गर्व करो। हमारी संस्कृति, प्रकृति और सभ्यता ये तीनों अहिंसा प्रधान रही हैं लेकिन आज हमने इन तीनों को हिंसक बना दिया है। हिंसा ही राजधर्म बन गया है। हम गरीबी मिटाने के नाम पर गरीबों को मिटा रहे हैं, धनी होने के वास्ते देश को कंगाल बना रहे हैं ठीक ही है हिंसा से हम कुछ भी अच्छा नहीं कर सकते, यदि हम कुछ अच्छा चाहते हैं तो हमको देश से हिंसा को निकालना होगा, जब तक हिंसा नहीं निकलेगी देश अपना सुधार नहीं कर सकता।
-१९९७, नेमावर