धर्म के अभाव में भारत को भारत नहीं कहा जा सकता, भारत बिल्डिगों, भवनों का राष्ट्र नहीं, भारत मशीनों का राष्ट्र नहीं, भारत बाँधों का राष्ट्र नहीं, भारत धर्म का राष्ट्र है। क्या मशीनों का नाम राष्ट्र है? क्या बिलिंडगों का नाम राष्ट्र है? क्या बांधों का नाम राष्ट्र है? यदि सात्विक जीवन जीने वालों का अभाव हो जायेगा तो राष्ट्र का कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा क्योंकि सात्विकता के अभाव में राष्ट्रीयता कैसे जिन्दा रह सकती है और जब राष्ट्रीयता का ही अभाव हो जायेगा तब क्या ये मशीन, ये भवन, ये बाँध राष्ट्र को सुरक्षित रख सकते हैं? नहीं, हमें भवनों की नहीं, सात्विकता की सुरक्षा करना है और वह सात्विकता मशीनों से सुरक्षित नहीं रह सकती, उस सात्विकता को सुरक्षित रखने के लिए अहिंसा चाहिए, संवेदना, सहानुभूति, विवेक चाहिए, करुणा चाहिए तभी राष्ट्र उन्नत हो सकता है। अत: आज हमको सात्विकता की आवश्यकता है, भवनों और मशीनों की नहीं। हमारे पास मशीन तो बहुत हैं, बिलिंडग भी बहुत हैं लेकिन सात्विकता की कमी है, संवेदना की कमी है, अहिंसा की कमी है।
-१९९७, नेमावर