(श्री दिगम्बर जैन चन्द्रगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ (छ.ग.)
जून २०१७ में राष्ट्रीय चिंतक जैनाचार्य
प.पू. आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज से
प्रिंट मीडिया एवं दूश्य मीडिया का संवाद)
पत्रकार - आचार्य श्री! देश की बात करें, छत्तीसगढ़ की बात करें, तो ये नक्सलवाद-आतंकवाद की समस्या से जूझ रहे हैं। जो आदिवासी अंचल हैं वे जल-जंगल-जमीन की लड़ाई करने की बात करते हैं। क्या अध्यात्म के माध्यम से इस समस्या को दूर कर सकते हैं?
आचार्य श्री - देखिए, आपको अपनी समस्या दूर करने से पहले इनकी समस्या को दूर करने की बात पहले करना चाहिए। वो तो कर नहीं रहे हैं, मात्र समस्या दूर करने का चिंतन करते हैं। इस बारे में नेतृत्व क्या सोच रहा है? कुछ समझ में नहीं आ रहा है। उनकी आवश्यकता की पूर्ति के लिए केवल शिक्षा-शिक्षा करने से कुछ नहीं होगा? वे भूखे हैं, उनके पास अनाज नहीं है, धंधा भी नहीं है, चिकित्सा नहीं है; तो उनके जीवन का जो आधार है जल-जंगल-जमीन, उसको कैसे वे छोड़ सकते हैं और क्यों छोड़ें? अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझ रहे हैं वे लोग। इसके लिए आप क्या करना चाह रहे हैं? उनके हित का वातावरण बनाइए, उनमें हित का विश्वास पैदा कीजिए, तब वे आपकी बात मानेंगे। इस विषय में राजनीति नहीं होना चाहिए।
पत्रकार - आचार्य श्री ! संसार आपको किस दिशा में जाता दिख रहा है? क्या अच्छा और क्या बुरा हो रहा है? तत्काल किसे बदलना चाहिए?
आचार्य श्री - हमें संसार नहीं देखना है; जो बुरा हो रहा है उसे देखकर सम्भलना है। ७0 साल में हम इण्डिया तो आ गए और देश की क्या स्थिति है; उसको सब अनुभव कर रहे हैं। अब भारत की ओर लौटना है, जिससे सभी हाथ मजबूत बनें, सभी का जीवन सुखमय बनें। आप लोग भारत में लौटना नहीं चाहते हो; यही सब गड़बड़ हो रहा है।
पत्रकार - आचार्य श्री! आपकी दीक्षा को उनन्चास साल पूरे हो गए। उनन्चास साल में आप स्वयं अध्यात्म की ओर अग्रसर हुए और दीक्षा देकर अनेकों साधु-साध्वियों को भी अध्यात्म की ओर अग्रसर किया तथा देश, समाज, संस्कृति की सेवा कार्य के लिए अनेकों को जोड़ा इस कठिन कार्य को आपने कैसे किया?
आचार्य श्री - मैंने नहीं किया। यह तो होता चला गया, गुरु की कृपा थी और गुरु के संदेश से प्रेरणा लेकर हम आगे बढ़ते गए। सब कुछ गुरु की कृपा से हुआ है।
पत्रकार - आचार्य श्री! मानव जीवन को आप क्या संदेश देना चाहेंगे, जिससे सबका विकास हो और सब अध्यात्म की ओर बढ़कर सेवा कार्य की ओर बढ़ें?
आचार्य श्री - हमारा यही संदेश है कि सबको अपना कर्तव्य करना चाहिए। करने योग्य कार्य हम नहीं करें और दूसरे का हित चाहते रहें तो यह कभी भी संभव नहीं है। आप दूसरे के हित के बारे में सोचें और कर्तव्य करते जाएँ तो आपका प्रभाव अपने आप दूसरों के ऊपर पड़ता है और दूसरे आपके कार्य से आकृष्ट हुए बिना नहीं रह सकेंगे। जैसे सूरज बहुत दूर रहता है; वह अपना कर्तव्य करता है, पर का हित होता चला जाता है इसलिए उसे देखकर सब खुश होते हैं।
पत्रकार - आचार्य श्री! ऐसा देखने को मिलता है कि साधु-संत जगह-जगह घूमते हैं समाज के विकास के लिए और सरकार भी समाज हित में प्रयास करती है लेकिन बहुत बड़ा सामाजिक विकास या परिवर्तन देखने को नहीं मिलता; इस सम्बन्ध में आप क्या कहना चाहेंगे?
आचार्य श्री - देखिए, समाज में परिवर्तन लाने के लिए पहले स्वयं को बदलना पड़ता है। हम बदलें नहीं और समाज को बदलना चाहें तो यह सम्भव नहीं है। इकाई के बिना समूह नहीं बनता। हम भी समाज की एक इकाई हैं। पहले इकाई तो परिवर्तित हो तब बाद में परिवर्तन की लहर चल पड़ती है। इकाई पलटे बिना समूह का पलटना कैसे सम्भव है? प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि पहले स्वयं बदले, स्वयं अपने कर्तव्यों द्वारा अपने जीवन में परिवर्तन लाए। इसमें किसी का कोई हस्तक्षेप ही नहीं सकता, किन्तु यह तो हो नहीं रहा है और इस प्रकार की शिक्षा भी नहीं दी जा रही है; अब बताओ क्या होगा? अब पूछोगे क्या करना चाहिए? तो इतिहास पढ़ना चाहिए और उससे शिक्षा लेना चाहिए। देश के हालात के बारे में सोचते हैं तो श्रम करने वाला मूल किसान है। उसके बारे में आज सही ढंग से सोचा ही नहीं जा रहा है, सोचा भी जाता है तो बीच में व्यापारी आ जाता है तो गड़बड़ होने लग जाती है। जब तक किसान के हाथ में उपज रहता है तब तक उसका मूल्य अलग रहता है। ज्यों ही व्यापारी के हाथ में आता है तो वह आसमान छूने लग जाता है। कहने का मतलब है कि किसान दुर्भाग्यशाली और व्यापारी सौभाग्यशाली बन जाता है। इस फर्क को मिटाना होगा।
पत्रकार - आचार्य श्री! हम अन्तिम बात करते हैं कि हथकरघा,शिक्षा और गी सेवा के बारे में आप क्या चाहते हैं और सरकार को किस तरह मार्गदर्शन देना चाहते हैं? आचार्य श्री- हमने भोपाल में भी बताया था; अब फिर से बता देता हूँ व्यावसायिक नहीं होने देना चाहिए। इसी कारण से तो सब गड़बड़ हो रहा है और गौवंश को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि कृषि प्रधान भारत की वह पहचान है।