अग्रेजों के जमाने में मांस का निर्यात नहीं होता था लेकिन आज स्वतंत्र भारत में मांस का निर्यात हो रहा है, अंग्रेज विदेशी थे लेकिन हम तो देशी हैं। फिर भी अपने देश की स्थिति खराब कर डाली। मांस निर्यात भारत के लिए बहुत बड़ा कलंक है। स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर इस कलंक को धोने का संकल्प ले लेना चाहिए, यही भारत को सुधारने का सही संकल्प है। भारत इतना क्रूर बन गया है, भारत के पास आज दया का अभाव हो चुका है, दया के अभाव में ही यहाँ प्रलय का वातावरण तैयार हो रहा है। हम अपने देश की तरक्की दया के रहते ही कर सकते हैं, दया के अभाव में क्रूरता से किसी का भला नहीं होता, दया जीवन है, क्रूरता मौत है, क्रूरता को छोड़ो, दया को अपनाओ। देश में सुभिक्ष हो ऐसी कामना करो, भावना करो।
दुनिया में सुभिक्ष हो, मंगल हो लेकिन उसके पहले यह बात ध्यान रखो कि सुभिक्ष के लिए किसी की हत्या न करना पड़े, किसी का वध न करना पड़े, किसी को कष्ट-दु:ख देना न पड़े। आज हम अपने देश में सुभिक्ष लाना चाहते हैं, आदमी का जीवन सुरक्षित रखना चाहते हैं लेकिन यह होगा कैसे क्योंकि हमारे पास मानवता नहीं है। दूसरों की हत्या करके, दूसरों का खून करके हम अपने देश की उन्नति कैसे कर सकते हैं। क्या यही मानवता है, यही अहिंसा है, यही सत्य है। मांस निर्यात करने वाला देश अहिंसा का सन्देश कैसे दे सकता है? यदि हम अहिंसा, सत्य, करुणा का सन्देश देना चाहते हैं एवं मानवीय चेतना जागृत करना चाहते हैं, राष्ट्र को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो इसके लिए हमको एक मानवीय क्रान्ति लाना होगा। वह मानवीय क्रान्ति सभासमारोहों में नहीं, उसके लिए जीवन परिवर्तित करना होगा, देश में हिंसा के सारे कार्य रोकने होंगे। जो देश अहिंसा के सहारे आजाद हुआ, वही देश आज हिंसा प्रधान हो रहा है। हिंसा से हमारी स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं रह सकती। देश को सुरक्षित रखने के लिए भारत को हिंसा से मुक्त करना होगा और मांस निर्यात वर्तमान की सबसे बड़ी हिंसा है, इसको रोकना होगा।
-१९९७, नेमावर