ये 'इण्डिया' नहीं ‘भारत है। आप अपने आप पर नियंत्रण रखी। आज स्वतंत्रता का दिन है। आप बताएँ कि आप भारतीय हो कि इण्डियन? जब आप भारतीय हैं तो आप 'इण्डियन" कहना, लिखना, बोलना, सुनना क्यों पसंद करते हैं? क्या किसी के कहने से आप इण्डियन हो गए। जब आपको प्राचीन ऋषि मुनियों ने भारतीय माना है, कहा है, तो उनकी बात को क्यों नहीं अपनाते? प्राचीनता से ही तो पहचान होती है और वही प्रामाणिक होता है। जिस पर आपकी श्रद्धा है, विश्वास है, आपका स्वाभिमान है, उसको छोड़ना और पराये को ग्रहण करना ये कहाँ की समझदारी है? अब कम से कम इण्डिया के जितने भी संकेत आदि हैं उसके ऊपर भारत लिखना प्रारम्भ कर दी, लेकिन इंग्लिश में नहीं, आप जिस प्रदेश में रह रहे हैं उस प्रदेश की भाषा में लिखें। हम इसलिए यह बात कह रहे हैं कि आप स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं, आप पूर्णत: स्वतंत्र हो जाएँ।
आज १५ अगस्त का दिन है; सभी भारतवासी इसे अच्छा मानते हैं क्योंकि इस दिन स्वतंत्रता मिली थी। इसका मतलब है कि स्वतंत्रता अच्छी है, जो सुख और शान्ति प्रदान करती है। जब आप स्वतंत्र हो गए तो भारत को भी स्वतंत्र करो, उसकी परतंत्र बना रखा है इण्डिया ने और इस इण्डिया से आप लोग ही स्वतंत्र कर सकते हैं भारत की। कुछ लोग कहते हैं भारत को बचाने से क्या होगा? वह तो भोगभूमि बनने वाला है। मैं कहता हूँ परिवर्तन तो होगा किन्तु समय से पहले क्यों? जब तक पूर्ण परिवर्तन नहीं होता तब तक यहाँ के रहने वाले भोगभूमिज नहीं माने जा सकते, क्योंकि उन्हें कर्म करना ही पड़ेगा और भारत की शान बचाना चाहते हो तो कर्म करना ही पड़ेगा, किन्तु सर्वप्रथम यह ध्यान रखना पड़ेगा। अपनी जो नीति है उसको छोड़े बिना सत्कर्म का पुरुषार्थ करना होगा। तभी आप अपने राष्ट्र की शान बचा पाएँगे। परतंत्र होने के कारण आपने विदेशी नीतियों को स्वीकार कर रखा है। मैं आप लोगों के सामने यह विचार रखना चाहता हूँ कि भारत के समान परतंत्र और भी देश थे किन्तु स्वतंत्र होते ही जापान और चीन जैसे देशों ने दूसरे दिन से ही अपनी सार्वभौमिक स्वतंत्रता के रूप में अपने देश के समस्त कार्य अपनी भाषा में करना शुरु कर दिए। भारतीयो, सुन रहे हो ना, ये स्वाभिमान की बात है। स्वाभिमान का अर्थ समझते हो?. ये अभिमान की बात नहीं है, ये मर्यादा की बात है। हमने कायिक और वाचनिक स्वतंत्रता ही नहीं ली अपितु मानसिक स्वतंत्रता भी ली है। जिस कारण अपनी सांस्कृतिक धरोहर को पुनः जीवित कर लिया संस्कृति भाषा से सम्बन्ध रखती है। जिसका आदान-प्रदान, शिक्षण, पठन-पाठन, चिन्तनमनन, लेखन-वाचन सब कुछ स्वभाषा में होने लगा। देखते ही देखते दोनों ही राष्ट्र पूर्णतः सक्षम बन गए। ये आप सब के सामने है। अब आप ही भारत की आजादी के बारे में बता दीजिए। आप आजाद हैं या नहीं?.... सारे कार्य इंग्लिश में हो रहे हैं। संसद और विधानसभाओं के कार्य या न्यायालयों के कार्य हों, उच्चशिक्षाओं के कार्य हों या फिर नौकरी पेशे के कार्य हों, सभी तो इंग्लिश में हो रहा है। जबकि पूरा देश इस भाषा के प्रति सर्व सम्मत नहीं है। सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में कितने लोग इंग्लिश भाषा को जानते हैं? उनसे राय ली ही नहीं गई और चंद लोगों ने इंग्लिश के माध्यम से सर्वतंत्र पर अपना अधिकार जमा रखा है। इससे देश का स्वाभिमान कैसे बढ़ सकता है? कुछ लोग इंग्लिश के जानकार हैं वह इंग्लिश में कार्य करने को अपना स्वाभिमान समझते हैं। क्या उनकी इस समझ को सही कहा जा सकता है?.....इसमें जो अभ्यस्त हो चुके हैं। वे हमें बताएँ कि इसमें आपका क्या है? अंग्रेजी का उपयोग नहीं करेंगे तो आपकी क्या हानि होगी? बस इतना ही ना कि हमने पढ़ाई उसी में की है तो हमें और कुछ आता नहीं। पर मैं इसको गलत समझता हूँ। माँ-पिता के साथ आप किस भाषा में बात करते हैं? परिवार के साथ आप किस भाषा में बात करते हैं? अपनी भावाभिव्यक्ति किस भाषा में करते हैं? मातृभाषा के बिना तो कर ही नहीं सकते। करते हैं तो आप घर के सदस्य कैसे माने जा सकते हैं? इंग्लिश सीख लेने से क्या आप इंग्लिश में रोते हो या इंग्लिश में हँसते हो? हमने जब से सुध लिया है देख लिया है कि किसी को भी इंग्लिश के ऊपर पूर्ण अधिकार नहीं है। गिने-चुने ही कुछ लोग होंगे जिन्हें ज्ञान अधिक हो सकता है।
आज पूरे देश के शहरों में जहाँ जाओ वहाँ भारतीय भाषाओं का लोप किया जा रहा है। सब जगह इंग्लिश-इंग्लिश इस कारण जहाँ देखी वहाँ घर-बाहर सभी जगह इंग्लिश का बोलबाला हो गया है। महिलाएँ भी संस्कार खो बैठीं हैं। वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन, शिक्षा-दीक्षा सब समाप्त हो गया। क्या इसका नाम स्वतंत्रता है?. में इसको स्वतंत्रता नहीं मानता, मैं इसका समर्थक न था, न हूँ न रहूँगा। यदि मेरी बात अच्छी लगती हो तो आप लोगों को इस दिशा में अभियान चालू कर देना चाहिए। यह कोई देशद्रोह नहीं होगा बल्कि देश की संस्कृति को सुरक्षित रखने का पवित्र अभियान होगा। स्वतंत्रता का झूठा अभिमान मत करो, किन्तु मर्यादा सिखाने वाली संस्कृति को सुरक्षित करने का स्वाभिमान जागृत करो, यही एक मात्र देशभक्ति है और कोई भक्ति नहीं। आप लोगों ने तो देश का नाम तक परिवर्तित कर रखा है। तो शिक्षा में परिवर्तन कैसे करोगे? किस प्रकार करोगे? जिस प्रकार बॉम्बे था उसको मुम्बई बनाया गया, 'मद्रास' था उसको 'चेन्नई' बनाया गया, 'कलकत्ता' था उसे 'कोलकाता' बनाया गया, इसी प्रकार इण्डिया को भारत बनाओ। जब तक इस प्रकार आप जागृति नहीं लाओगे, हम आपसे कौन-सी भाषा में बोलेंगे? मुझे बताओ। मुझे इंग्लिश आती भी हो तो मैं इंग्लिश का प्रयोग नहीं करना चाहता। क्यों करूं? हम अपनी भावाभिव्यक्ति जिस भाषा से कर सकते हैं उसमें करना मैं उचित समझता हूँ, क्योंकि वह हमारे लिए सहज, स्वाभाविक, मौलिक भाषा होगी तो हम अच्छे से अपने भाव व्यक्त कर सकते हैं। आप जिस भाषा में समझना चाहते हैं यदि वह भाषा मुझे नहीं आती तो हमारे भाव आप तक नहीं पहुँच पाएँगे। अत: इसमें किसी प्रकार की मर्यादा को तोड़े बिना आप अभियान को चलाएँ। पहला तो जो हस्ताक्षर का महत्व है उसको समझे और हस्ताक्षर को अपनी भारतीय भाषा में करें तो मैं समझेंगा कि आपने बहुत कुछ संकल्प ले लिया और एक दिन भारत अपनी भाषा के बलबूते अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त कर सकेगा।
आपने कभी अपना दिमाग चलाया कि जब सभी देश के नाम जो उनके परम्परा से चले आ रहे हैं उन्हें ज्यों का त्यों लिखा जाता है। जब वे परिवर्तित नहीं हुए तो भारत के लिए क्या हो गया?. तो फिर परतंत्रता का प्रतीक नाम क्यों?....इण्डिया के नाम पर विचार करो, उन्होंने भारत का नाम परिवर्तन क्यों किया? यह परिवर्तन कब हुआ? किसकी सहमति से हुआ? जरा विचार तो करो। इंग्लिश में अनुवाद करना ही है तो भारत नाम के अर्थ का भाव आना चाहिए या फिर ज्यों का त्यों रोमन इंग्लिश में लिखना चाहिए। भारत का नाम ऐतिहासिक नाम है; जो आज का नहीं है, आदिब्रह्मा ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट् भरत के नाम से चला आ रहा है इसको बदलने वाले भारतीय संस्कृति से अनभिज्ञ थे और आज आप लोग पढ़े-लिखे हो इसके उपरान्त भी इंग्लिश बोलना, लिखना सौभाग्यशाली मानते हो।
भाषा की स्वतंत्रता जब तक नहीं तब तक देश की उन्नति आप कर नहीं सकते। आज देशी-विदेशी विद्वानों ने दार्शिनिकों ने, वैज्ञानिकों ने कहा है-जिस राष्ट्र में अपनी भाषा नहीं उसका कभी भी विकास नहीं हुआ, ‘न भूतो, न भविष्यति"। फिर किस विश्वास के साथ आप लोग इंग्लिश माध्यम का समर्थन करते हो? एक व्यक्ति आए थे उन्होंने अपने शोध के बारे में बताया कि उन्हें विदेश नीति पर अनुसंधान/शोधप्रबन्ध लिखना था तो उन्होंने उस समय के नेताओं से अनुमति माँगी कि मैं इसको अपनी भाषा में लिखेंगा, अंग्रेजी में नहीं, क्योंकि मैं शोधप्रबन्ध में अपने भावों की अभिव्यक्ति मातृभाषा में ही अच्छे से कर सकूंगा और मेरी मातृभाषा हिन्दी है मैं हिन्दी में लिखेंगा। तो उस समय के नेताओं ने मना कर दिया। इन्दिरा जी प्रधानमंत्री थीं उन्होंने भी इंग्लिश में ही लिखने का आग्रह किया और कहा कि इससे महत्व बढ़ेगा, गौरव बढ़ेगा, नाम होगा। तब शोधार्थी ने कहा-गौरव बढ़ता है काम से, नाम से नहीं, क्या मेरे पास भाषा नहीं है?, क्या हिन्दी में अनुसंधान नहीं हो सकता? उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, तक्षशिला विश्वविद्यालय आदि के बारे में बताया तो उन्हें हिन्दी में ही लिखने के लिए इन्दिरा जी ने अनुमति प्रदान की थी। पूर्व में महात्मा गाँधी जी ने भी इसके बारे में ललकारा था कि 'यह ठीक नहीं है, मैं इसका समर्थक नहीं हूँ।” इण्डिया नाम की बहुत बड़ी गुलामी चल रही है। इस दिशा में आप लोग सोचते हैं तो आपकी उन्नति पक्की है और उन्नति करना नहीं है सिर्फ भारत को लौटाना है। जो भारत अतीत में था वहाँ तक आने के लिए पसीना बहाना पढ़ेगा।
आपने स्वर्ण अक्षरों से लिखे हुए भारत के इतिहास को परतंत्रता के कारण खो दिया है। जब स्वतंत्रता मिली है तो हमें उस इतिहास को लौह अक्षरों से नहीं स्वर्ण अक्षरों से लिखने के लिए पुरुषार्थ करना होगा।
इतिहास को भूलने के कारण आज धूल खाना पड़ रही है, पुन: भूल न करिए। कम से कम अपने हस्ताक्षर अपनी मातृभाषा में अवश्य करें।
-१५ अगस्त २o१६, भोपाल