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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • भारत हमारी पहचान, इण्डिया नहीं

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    पत्रकार - आचार्य श्री! एक बात लगातार चल रही है ' भारत' और ‘इण्डिया' की; इसमें आप क्या कहना चाहते हैं?

     

    आचार्य श्री - मैं आप लोगों से पूछना चाह रहा हूँ इण्डिया का उद्धव कब हुआ? किसके माध्यम से हुआ? और क्यों हुआ? कम से कम ये तीन बिन्दु हमारे सामने आते हैं। हमें इन सब पर विचार करना आवश्यक है। जब भारत अनेक भागों में विभाजित था तब भी हर राज्य अपना इतिहास रच रहा था और विश्व के ऊपर अपना प्रभाव स्थापित कर रहा था। जब ब्रिटिश-अंग्रेज लोग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापार के उद्देश्य से भारत में आए तब तक भारत का नाम इण्डिया के रूप में प्रचलित नहीं था। उन्होंने व्यापार के माध्यम से धीरे-धीरे पूरे देश पर अपना प्रभुत्व जमा लिया। भोले-भाले भारतीय लोग एवं राजसत्ताएँ उनके षड्यंत्र को समझ नहीं पाए तो उन्होंने व्यापार के माध्यम से भारत के इतिहास को परिवर्तित कर दिया। हम कहना चाहते हैं कि एक कम्पनी के नाम से देश का नामकरण होना असंभव-सा लगता है। आप लोगों ने इस ओर गौर नहीं किया। उन्होंने देश का नाम बदला उसके पीछे उनका क्या उद्देश्य हो सकता है? आप इसकी खोजवीन कर सकते हैं। उन्होंने अपने षड्यन्त्र में सफलता प्राप्त कर ली।

     

    दुनिया में अनेक प्रकार की भाषाएँ हैं। भारत में भी अनेक भाषाएँ हैं, लेकिन नाम का अनुवाद किस भाषा में किया जाता है?'भारत' का अनुवाद ‘इण्डिया' किस भाषा में होता है? आप मुझे बता दीजिए। यदि नहीं होता तो फिर 'इण्डिया' नाम रखने का क्या उद्देश्य हो सकता है? मैं 'इण्डिया' या 'इण्डियन' शब्द का निषेध नहीं कर रहा हूँ, अमेरिका आदि देशों में ये शब्द प्रचलन में हो सकते हैं। क्या उसी प्रकार भारत को एवं भारतवासियों को स्वीकारने का उद्देश्य तो नहीं था उनका? जैसे अमेरिका में ‘इण्डियन' हैं और उनके स्थान को इण्डिया कहते हैं तो उसके पीछे उनका कोई उद्देश्य होगा? उसका भी अवलोकन करना चाहिए। वहाँ तो एक प्रकार से उनको उसी रूप में स्वीकार करते हैं वे उन्हें कहते हैं। offensive मतलब दास। दास के रूप में स्वीकारा गया है। एक प्रकार से विरोधी तत्व के रूप में स्वीकारते हैं और Old Fasion ये शब्द रखते हैं। इसका सही अर्थ तो यह निकलता है पुराने ढर्रे के कोई विरोधी तत्व-आपराधिक तत्व। इसके साथ ही एक शब्द और आता है  old Fasion hamates perSon ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में इण्डिया के ये अर्थ बतलाए गए हैं। मैं आप लोगों से पूछना चाहता हूँ कि भारत पर इण्डिया शब्द लागू करने के पीछे क्या उद्देश्य था? क्या उनकी नजर में भारत के निवासी 'क्रिमिनल' या विरोधी तत्व हैं या dactive हैं? ये कुछ ऐसे बिन्दु हैं जिनके बारे में अभी तक गहराई से चिंतन नहीं किया गया। यदि कर रहे हैं तो बहुत विलम्ब किया जा रहा है। इसका बहुत जल्दी परिणाम घोषित किया जाना चाहिए। अब इसके पीछे भारत के किसी भी अंग को यह नहीं सोचना चाहिए कि नाम परिवर्तन करना ठीक नहीं है। जो अपने आप को भारतवासी मानता है उसे अपने देश का नाम ‘ भारत' स्वीकार कर लेना चाहिए। इससे किसी भी भाषा में हमारा विरोध नहीं होगा और ना ही किसी परम्परा से विरोध होगा। जब भारत नाम का अनुवाद किसी भी भाषा में इण्डिया के रूप में नहीं होता है तो फिर भारत की किसी भी भाषा में भारत ही लिखा जाना चाहिए, इससे किसी को कोई बाधा नहीं होना चाहिए, क्योंकि संज्ञा का किसी भी स्थिति में परिवर्तन नहीं हो सकता, जैसे आप सभी के नाम। अत: भारत एक व्यापक रूप में था, है और रहेगा। हमें भारत के रूप में ही स्वीकार करना होगा।

     

    मैं मानता हूँ कि विश्व में हिन्दुस्तान नाम भी प्रचलन में आया था, लेकिन वह भी किसी स्थान को लेकर। आप सब को मालूम है कि सिन्धु नदी को विदेशी लोग हिन्दु नदी कहते थे और हिन्दु नदी के तट पर रहने वाले को हिन्दुस्तान कहते थे। इसमें हमें ऐतराज नहीं क्योंकि वह स्थान को लेकर नाम है, किन्तु भारत का नाम अनादिकाल से है या यूँ कहना चाहिए कि कोई आदि नहीं, सभी को स्वीकृत है। इसलिए वही नाम चाहने में गलत क्या है?

     

    इण्डिया नाम अंग्रेजी भाषा का है जिस कारण भारतीय भाषा से लोग कट रहे हैं और आग्ल भाषा भारत देश की संस्कृति, इतिहास, जीवनदर्शन को नष्टकर हमारे स्वाभिमान गौरव आस्था को नष्ट कर रही है। साहित्य एवं संस्कृति समाज का दर्पण होता है। अंग्रेजी के कारण सब नष्ट हो रहा है। आप लोगों को १८वीं१९वीं शताब्दी का इतिहास पता नहीं है, शासन-प्रशासन में बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे हुए लोगों को भी भारतीय इतिहास का सही ज्ञान नहीं है। वर्तमान में ऐसे इतिहास की रचना कर दी गई है जो थोड़ी-थोड़ी बातों को बताता है, पूर्ण रहस्यों का उद्घाटन नहीं करता। यह सब बहुत गलत हो रहा है। भारत का अपना स्वर्णिम इतिहास है, अपनी वैज्ञानिक भाषाएँ हैं, किन्तु हमारी अज्ञानता के कारण सब कुछ उल्टा हो रहा है। इसलिए हम भारतवासियों से कहना चाहते हैं कि आपके प्राणों से देना चाहिए और सर्वप्रथम देश का नाम भारत लिखना, पढ़ना, बोलना प्रारम्भ कर देना चाहिए। यदि विलम्ब करते हैं तो कौन से प्रलोभन के कारण करते हैं, देश को इसका जवाब दीजिए।

    —पत्रकार वार्ता ९ सितम्बर २०१४, विदिशा चातुर्मास (क्षमावाणी पर्व)


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