इसके बाद बारह अनुप्रेक्षाओं को कहते हैं-
अनित्याशरण-संसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्रव-संवर-निर्जरालोकबोधिदुर्लभ-धर्मस्वाख्याततत्त्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः ॥७॥
अर्थ - अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधि-दुर्लभ, धर्मस्वाख्यात इन बारहों के स्वरूप का बार-बार चिंतन करना अनुप्रेक्षा है। इन्द्रियों के विषय, धन, यौवन, जीवन वगैरह जल के बुलबुले के समान क्षणभंगुर हैं-ऐसा विचारना अनित्य अनुप्रेक्षा है। ऐसा विचारते रहने से इनका वियोग होने पर भी दु:ख नहीं होता ॥१॥ इस संसार में कोई शरण नहीं है। पालपोस कर पुष्ट हुआ शरीर भी कष्ट में साथ नहीं देता, बल्कि उल्टा कष्ट का ही कारण होता है। बन्धु-बान्धव भी मृत्यु से नहीं बचा सकते। इस प्रकार का विचार करना अशरण अनुप्रेक्षा है॥२॥ संसार के स्वभाव का विचार करना संसारानुप्रेक्षा है। संसार में मैं अनादिकाल से अकेला ही घूमता हूँ। न कोई मेरा अपना है और न कोई पराया। धर्म ही एक मेरा सहायक है। ऐसा विचारना एकत्व अनुप्रेक्षा है ॥४॥ शरीर वगैरह से अपने को भिन्न विचारना अन्यत्व अनुप्रेक्षा है। शरीर की अपवित्रता का विचार करना अशुचित्व अनुप्रेक्षा है ॥६॥ आस्रव के दोषों का विचार करना आस्रव अनुप्रेक्षा है ॥७॥ संवर के गुणों का विचार करना संवर अनुप्रेक्षा है ॥८॥ निर्जरा के गुण-दोषों का विचार करना निर्जरा अनुप्रेक्षा है ॥९॥ लोक के आकार वगैरह का विचार करना लोक अनुप्रेक्षा है। इसका विचार करने से ज्ञान की विशुद्धि होती है ॥१०॥ ज्ञान की प्राप्ति बहुत दुर्लभ है, अत: ज्ञान को पाकर विषय सुख में नहीं डूबना चाहिए। इत्यादि विचारना बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा है ॥११॥ अर्हन्त भगवान् के द्वारा अनुप्रेक्षा है ॥१२॥ इन बारह अनुप्रेक्षाओं की भावना करने से मनुष्य उत्तम क्षमा आदि दश धर्मों को भी अच्छी रीति से पालता है और आगे कही जाने वाले परीषहों को भी जीतने का उत्साह करता है। इसी से अनुप्रेक्षाओं को धर्म और परीषहों के बीच में रखा है।
English - Reflection is meditating on transitoriness, helplessness, trans-migration, loneliness, distinctness, impurity, influx, stoppage, dissociation, the universe, rarity of enlightenment and the truth proclaimed by religion.