यद्यपि गुप्ति का पालक मुनि मन, वचन और काय की प्रवृत्ति को रोकता है, किन्तु आहार के लिये, विहार के लिये और शौच आदि के लिये उसे प्रवृत्ति अवश्य करनी पड़ती है। अतः प्रवृत्ति करते हुए भी जिससे आस्रव नहीं हो ऐसा उपाय बतलाने के लिये समिति को कहते हैं-
ईर्या-भाषैषणादान-निक्षेपोत्सर्गाः समितयः ॥५॥
अर्थ - ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेप और उत्सर्ग ये पाँच समितियाँ हैं। यहाँ पूर्व सूत्र से सम्यक् पद की अनुवृत्ति होती है, अतः पाँचों में सम्यक् पद लगा लेना चाहिए। अर्थात् सम्यक् ईर्या, सम्यक्भाषा, सम्यक् एषणा, सम्यक् आदाननिक्षेप और सम्यक् उत्सर्ग। सूर्य का उदय हो जाने पर जब प्रकाश इतना फैल जाये कि आँखों से प्रत्येक वस्तु साफ दिखायी देने लगे, उस समय मनुष्यों के पद संचार से जो मार्ग प्रासुक हो उस मार्ग पर चार हाथ जमीन आगे देखते हुए, सब ओर से मन को रोक कर धीरे-धीरे गमन करना ईर्या समिति है।
हित-मित और सन्देह रहित वचन बोलना भाषासमिति है। अर्थात् मिथ्या वचन, निन्दापरक वचन, अप्रिय वचन, कषाय के वचन, भेद डालने वाले वचन, निस्सार अथवा अल्पसार वाले वचन, सन्देह से भरे हुए वचन, भ्रम पैदा करने वाले वचन, हास्य वचन, अयुक्त वचन, असभ्य वचन, कठोर वचन, अधर्मपरक वचन और अतिप्रशंसा परक वचन साधु को नहीं बोलना चाहिए। दिन में एक बार श्रावक के घर जाकर नवधाभक्ति पूर्वक तथा कृत, कारित, अनुमोदना आदि दोषों से रहित दिया हुआ निर्दोष आहार खड़े होकर अपने पाणिपात्र में ही ग्रहण करना एषणा समिति है। शास्त्र, कमण्डलु आदि धर्म के उपकरणों को देखभाल कर तथा पिच्छिका से साफ करके रखना उठाना आदाननिक्षेपण समिति है। त्रस और स्थावर जीवों को जिससे बाधा न पहुँचे इस तरह से शुद्ध जन्तु रहित भूमि में मलमूत्र आदि करना उत्सर्ग समिति है। इस तरह ये पाँचों समितियाँ संवर की कारण हैं।
English - Iryasamity (to inspect ground in front while walking), Bhashasamity (to speak words which are beneficial, moderate, lovable, undoubtful, not to cause passions, not in conflict with the religion), Aishnasamity (to have pure food without any defects/shortcomings), Adan-Nikshepansamity (to carefully place, lite or handle everything) and Utsargasamity (to discharge stool, urin etc. at a lifeless place) are fivefold regulation of activities.
शंका - ये समितियाँ तो वचन गुप्ति और कायगुप्ति के ही अन्तर्भूत हैं, इन्हें अलग क्यों कहा ?
समाधान - काल का प्रमाण करके समस्त योगों का निग्रह करना तो गुप्ति है। और जो अधिक समय तक गुप्ति का पालन करने में असमर्थ हैं, उनका शुभ क्रियाओं में सावधानी पूर्वक प्रवृत्ति करना समिति है। यही दोनों में भेद है।