अब निर्ग्रन्थों के भेद कहते हैं-
पुलाक-बकुश-कुशील-निर्ग्रन्थ-स्नातका निर्ग्रन्थाः ॥४६॥
अर्थ - पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक ये पाँचों निर्ग्रन्थ कहे जाते हैं। जिनके उत्तरगुणों की तो भावना भी न हो और मूलगुणों में भी कभी-कभी दोष लगा लेते हों, उन साधुओं को पुलाक कहते हैं। पुलाक नाम पुवाल सहित चावल का है। पुवाल सहित चावल की तरह मलिन होने से ऐसे साधु को पुलाक कहते हैं। जो बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह का त्याग करने के लिए सदा तत्पर हों और जिनके मूलगुण निर्दोष हों; किन्तु शरीर, पिच्छिका वगैरह उपकरणों से जिन्हें मोह हो, उन मुनि को बकुश मुनि कहते हैं। बकुश का अर्थ चितकबरा है। जैसे सफेद पर काले धब्बे होते हैं, वैसे ही उन मुनियों के निर्मल आचार में शरीर आदि का मोह धब्बे की तरह होता है। इसी से वे बकुश कहे जाते हैं। कुशील साधु के दो भेद हैं- प्रतिसेवना-कुशील और कषाय-कुशील। जिनके मूलगुण और उत्तर गुण दोनों ही पूर्ण हों किन्तु कभी-कभी उत्तर गुणों में दोष लग जाता हो उन साधुओं को प्रतिसेवना कुशील कहते हैं। जिन्होंने अन्य कषायों के उदय को तो वश में कर लिया है किन्तु संज्वलन कषाय के उदय को वश में नहीं किया है, उन साधुओं को कषाय-कुशील कहते हैं। जिनके मोहनीय कर्म का तो उदय ही नहीं है और शेष घाति कर्मों का उदय भी ऐसा है जैसे जल में लाठी से खींची हुई लकीर तथा अन्तर्मुहूर्त के बाद ही, जिन्हें केवलज्ञान और केवलदर्शन प्रकट होने वाला है, उन्हें निर्ग्रन्थ कहते हैं। जिनके घाति कर्म नष्ट हो गये हैं, उन केवलियों को स्नातक कहते हैं। ये पाँचों ही सम्यग्दृष्टि होते हैं और बाह्य तथा अभ्यन्तर परिग्रह के त्यागी होते हैं। इसलिए चारित्र की हीनाधिकता होने पर भी इन पाँचों को ही निर्ग्रन्थ कहा है।
English - Pulakah (observes primary vows, but lapses sometimes), Bakusha (observes primary vows perfectly, but cares adornment of the body and implements), Kushila (observes primary vows perfectly, but lapses in secondary vows or has controlled all passions except the gleaming ones), Nirgrantha (will attain omniscience within Antarmuhurta) and Snataka (Omniscient-Kevali) are the passionless saints.