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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 9 : सूत्र 35

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    Vidyasagar.Guru

    अब रौद्रध्यान के भेद और उनके स्वामियों को बताते हैं-

     

    हिंसानृत-स्तेय-विषय-संरक्षणेभ्योरौद्रमविरतदेशविरतयोः ॥३५॥

     

     

    अर्थ - हिंसा, झूठ, चोरी और परिग्रह संचय करने की चिन्ता करते रहने से रौद्रध्यान होता है। यह रौद्रध्यान पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे गुणस्थान वालों के तथा देशविरत श्रावकों के होता है। किन्तु संयमी मुनि के नहीं होता; क्योंकि यदि कदाचित् मुनि को भी रौद्रध्यान हो जाये तो फिर वे संयम से भ्रष्ट समझे जायेंगे।

     

    English - Cruel meditation relating to injury, untruth, stealing and safeguarding of possessions occurs in the case of laymen with and without partial vows.

     

    शंका - जो व्रती नहीं हैं, उनके रौद्रध्यान भले ही हो, किन्तु देशव्रती श्रावक के कैसे हो सकता है?

    समाधान - श्रावक पर अपने धर्मायतनों की रक्षा का भार है, स्त्री, धन वगैरह की रक्षा करना अभीष्ट है, अत: इनकी रक्षा के लिए जब कभी हिंसा के आवेश में आ जाने से रौद्रध्यान हो सकता है। किन्तु सम्यग्दृष्टि होने के कारण उसके ऐसा रौद्रध्यान नहीं होता, जो उसको नरक में ले जाये।


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