अब व्युत्सर्ग तप के भेद कहते हैं-
बाह्याभ्यन्तरोपध्योः॥२६॥
अर्थ - त्याग को ही व्युत्सर्ग कहते हैं। उसके दो भेद हैं- बाह्य उपधि त्याग और अभ्यन्तर उपधि त्याग। आत्मा से जुदे धन-धान्य वगैरह का त्याग करना बाह्य उपधि त्याग है और क्रोध, मान, माया आदि भावों का त्याग करना अभ्यन्तर उपधि त्याग है। कुछ समय के लिए अथवा जीवन भर के लिए शरीर से ममत्व का त्याग करना भी अभ्यन्तरोपधि त्याग ही कहा जाता है। इसके करने से मनुष्य निर्भय हो जाता है, वह हल्कापन अनुभव करता है तथा फिर जीवन की तृष्णा उसे नहीं सताती।
English - Giving up external and internal attachments are two types of renunciations.