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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 9 : सूत्र 24

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    Vidyasagar.Guru

    अब वैय्यावृत्य तप के भेद कहते हैं-

     

    आचार्योपाध्याय-तपस्वि-शैक्ष्य-ग्लान-गण-कुल-संघ साधु-मनोज्ञानाम् ॥२४॥

     

     

    अर्थ - आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु और मनोज्ञ- इन दस प्रकार के साधुओं की अपेक्षा से वैय्यावृत्य के दस भेद हैं।जिनके पास जाकर सब मुनि व्रताचरण करते हैं, उन्हें आचार्य कहते हैं। जिनके पास जाकर मुनिगण शास्त्राभ्यास करते हैं, उन्हें उपाध्याय कहते हैं। जो साधु बहुत व्रत, उपवास आदि करते हैं, उन्हें तपस्वी कहते हैं। जो साधु श्रुत का अभ्यास करते हैं, उन्हें शैक्ष कहते हैं। रोगी साधुओं को ग्लान कहते हैं। वृद्ध मुनियों की परिपाटी में जो मुनि होते हैं, उन्हें गण कहते हैं। दीक्षा देने वाले आचार्य की शिष्य परम्परा को कुल कहते हैं। ऋषि, यति, मुनि और अनगार के भेद से चार प्रकार के साधुओं के समूह को संघ कहते हैं। अथवा मुनि, आर्यिका और श्रावक, श्राविका के समूह को संघ कहते हैं। बहुत समय के दीक्षित मुनि को साधु कहते हैं। जिसका उपदेश लोकमान्य हो अथवा जो लोक में पूज्य हो उस साधु को मनोज्ञ कहते हैं। इनको कोई व्याधि हो जाये या कोई उपसर्ग आ जाये या किसी का श्रद्धान विचलित होने लगे तो उसका प्रतिकार करना, यानि रोग का इलाज करना, संकट को दूर करना, उपदेश आदि के द्वारा श्रद्धान को दृढ़ करना वैय्यावृत्य है।

     

    English - Respectful service to the Head (Acharya), the preceptor, the ascetic, the disciple, the ailing ascetic, the congregation of aged saints, the congregation of disciples of a common teacher, the congregation of the four orders (of ascetic, nuns, laymen and laywomen), the long-standing ascetic and the ascetic of high reputation are the ten kinds of service.


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