अब विनय तप के भेद कहते हैं-
ज्ञान-दर्शन-चारित्रोपचाराः ॥२३॥
अर्थ - ज्ञान विनय, दर्शन विनय, चारित्र विनय और उपचार विनयये चार भेद विनय के हैं। आलस्य त्यागकर आदरपूर्वक सम्यग्ज्ञान का ग्रहण करना, अभ्यास करना आदि ज्ञान विनय है। तत्त्वार्थ का शंका आदि दोष रहित श्रद्धान करना दर्शन विनय है। अपने मन को चारित्र के पालन में लगाना चारित्र विनय है और आचार्य आदि पूज्य पुरुषों को देखकर उनके लिए उठना, सन्मुख जाकर हाथ जोड़कर वन्दना करना तथा परोक्ष में भी उन्हें नमस्कार करना, उनके गुणों का स्मरण वगैरह करना, उनकी आज्ञा का पालन करना, यह सब उपचार विनय है।
English - Reverence to knowledge, faith, conduct and the custom of homage are the four kinds of reverence.