अब संवर के कारण बतलाते हैं-
स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः ॥२॥
अर्थ - वह संवर गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय और चारित्र से होता है। संसार के कारणों से आत्मा की रक्षा करना गुप्ति है। प्राणियों को कष्ट न पहुँचे इस भावना से यत्नाचार पूर्वक प्रवृत्ति करना समिति है। जो जीव को उसके इष्ट स्थान में धरता है, वह धर्म है। संसार, शरीर वगैरह का स्वरूप बार-बार विचारना अनुप्रेक्षा है। भूख प्यास वगैरह का कष्ट होने पर उस कष्ट को शान्ति पूर्वक सहन करना परीषहजय है। संसारभ्रमण से बचने के लिए, जिन क्रियाओं से कर्मबन्ध होता है, उन क्रियाओं को छोड़ देना चारित्र है।
English - Stoppage is effected by control, carefulness, virtue, the meditation about self etc., conquest over afflictions by endurance and conduct.
विशेषार्थ - संवर का प्रकरण होते हुए भी जो इस सूत्र में संवर का ग्रहण करने के लिए ‘स' शब्द दिया है, वह बतलाता है कि संवर, गुप्ति वगैरह से ही हो सकता है, किसी दूसरे उपाय से नहीं हो सकता; क्योंकि जो कर्म राग, द्वेष या मोह के निमित्त से बंधता है वह उनको दूर किये बिना नहीं रुक सकता।